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पशुपालन (Animal Husbandry)

वर्षा ऋतु में दुग्ध पशुओं का आहार और प्रबंधन

’“स्वस्थ पशु = अधिक दूध = खुशहाल किसान”’

लेखक: डॉ. महेन्द्र सिंह मील और डॉ. श्रुति गर्ग, वेटरनरी कॉलेज, नवानिया, वल्लभनगर, उदयपुर

09 जून 2025, भोपाल: वर्षा ऋतु में दुग्ध पशुओं का आहार और प्रबंधन – 

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क्यों है बरसात का मौसम चुनौतीपूर्ण?

वर्षा ऋतु जहां खेतों में हरियाली लाती है, वहीं पशुपालन के लिए कई चुनौतियाँ भी लेकर आती है। इस मौसम में नमी, कीचड़, मक्खी-मच्छर, फफूंद और परजीवी रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। यदि इस समय दुग्ध पशुओं की देखभाल ठीक से न की जाए, तो दूध उत्पादन घट सकता है, पशु बीमार हो सकते हैं और प्रजनन पर भी असर पड़ सकता है। अतः बरसात में दुग्ध पशुओं को ’’क्या खिलाएं’’ और ’’कैसे रखें’’, ताकि उनका स्वास्थ्य और उत्पादन बना रहे, यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

वर्षा ऋतु में आहार प्रबंधनः क्या और कैसे खिलाएं?

हरे चारे की बहुलता का लाभ उठाएं

बरसात में हरा चारा जैसे नेपियर, बरसीम, ग्वार, मूंग, लोबिया आदि भरपूर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इनमें पोषक तत्व, पानी और विटामिन्स प्रचुर होते हैं।
लेकिन याद रखेंः

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  • अधिक पानी वाला चारा (जैसे ज्यूसी नेपियर या जलभरी घास) अत्यधिक मात्रा में न दें, वरना पशु को दस्त या अफारा हो सकता है।
  • हरे चारे को सूखे भूसे के साथ मिलाकर देना चाहिए।

सूखे चारे की कमी की पूर्ति

बरसात में सूखे चारे की कमी हो जाती है। इस कारण पहले से साइलोज बनाकर’या भूसा भंडारण करके रखें।

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  • बरसीम और ग्वार जैसी दालों का सूखा चारा (हे) अत्यंत पौष्टिक होता है।
  • पशु को दिन में एक बार भूसा जरूर दें, ताकि उसका जठर तंत्र संतुलित रहे।

संतुलित खल-चोकर आहार दें

प्रोटीन, ऊर्जा, मिनरल और विटामिन युक्त संतुलित खल-चोकर मिश्रण जरूरी हैः

  •  चारा और दाना अनुपात 60ः40 रखें।
  •  दूध उत्पादन अनुसार दाना मात्रा निर्धारित करें – सामान्यतः प्रति लीटर दूध के लिए 400-500 ग्राम दाना।

खनिज मिश्रण और नमक देना न भूलें

बरसात में चारे में खनिजों की मात्रा घट जाती है, जिससे पशु में चूषण, कमजोरी और बांझपन हो सकता है।

  • मिनरल मिक्सचर और सादा नमक रोज आहार में मिलाएं।
  • ट्रेस मिनरल ब्लॉक्स (ज्डठ) को पशु बाड़े में रखें।

बीमारियों से बचावः बरसात में विशेष सावधानी

परजीवी नियंत्रण करें

  • बरसात में कीचड़ और गीली मिट्टी में पेट के कीड़े (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परजीवी) तेजी से पनपते हैं।
  • प्रत्येक 6 महीने में कृमिनाशक दवा (TMB) अवश्य दें – विशेषकर जून-जुलाई में।

खुरपका-मुंहपका और गलघोंटू से बचाव

  • जुलाई-अगस्त में FMD HS व BQ के टीके अवश्य लगवाएँ।
  • बीमारी के लक्षण दिखें तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें।

वर्षा ऋतु में प्रबंधनः कैसे रखें पशु को सुरक्षित?

बाड़े को साफ, सूखा और हवादार रखें

  • पशु शेड की छत टपकनी नहीं चाहिए।
  • जमीन पर पक्का फर्श और ढलान रखें, जिससे पानी जमा न हो।
  • दिन में दो बार गोबर और गंदगी साफ करें।

कीट व मक्खी नियंत्रण करें

  • मक्खियों और मच्छरों से बीमारियाँ फैलती हैं, इसलिए कीटनाशक स्प्रे करें।
  • बाड़े में नीम की पत्तियां या नीम तेल का प्रयोग करें।

पशुओं को गीला न रहने दें

  • यदि पशु भीग जाए, तो सूखे बोरे से पोंछें।
  • गीला रहने से गलघोंटू, थनैला और निमोनिया जैसे रोग हो सकते हैं।

दूध उत्पादन बनाए रखने के टिप्स

  • दूध देने वाले पशु को अधिक प्रोटीन और खनिज दें।
  • थन साफ करें दृ दूध दोहन से पहले और बाद में हल्के गुनगुने पानी से धोएँ।
  • थनैला से बचाव के लिए दूध निकालने के बाद थनों में टिकिया या थन डिप सॉल्यूशन का प्रयोग करें।

वर्षा में सावधानी ही सुरक्षा है

वर्षा ऋतु में दुग्ध पशुओं की देखभाल थोड़ी अधिक मेहनत वाली होती है, लेकिन सही आहार और साफ-सुथरे वातावरण से आपः

  • पशुओं को बीमार होने से बचा सकते हैं,
  • दूध की मात्रा और गुणवत्ता बनाए रख सकते हैं,
  • और लंबी अवधि तक पशु का स्वास्थ्य अच्छा रख सकते हैं।

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