Animal Husbandry (पशुपालन)

बछड़ों के आहार में खीस का महत्व एवं आहार प्रबंधन

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  • डॉ. प्रमोद शर्मा, मो. : 9754306792
    सहायक प्राध्यापक
    पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा

4 जुलाई 2022, बछड़ों के आहार में खीस का महत्व एवं आहार प्रबंधन पशुपालन व्यवसाय की सफलता और भविष्य में उसका विकास बहुत हद तक नवजात बछड़ों के स्वास्थ्य एवं समुचित प्रबन्ध पर निर्भर करता है क्योंकि यही बछड़े आगे चलकर दुधारू और कामकाजी पशुओं की जगह ले लेते है। अपने देश में अधिकांश स्थानों पर पशुपालक नवजात बछड़ों के शुरूआती पालन पोषण जैसे उचित मात्रा और उचित समय पर खीस पिलाना, ऐसी जरूरी बातों पर ध्यान नहीं देते है। उनका उपयोग पशुओं को दुहने से पहले बस दूध स्राव प्रेरित करने के लिए होता है। इन्हीं लापवाहियों के कारण बहुत से बछड़ों की मौत जन्म से 1 से 3 महिने के अंदर अधिकतर 0 से 15 दिन में ही हो जाती है। खीस जिसे अंग्रेजी में कोलस्ट्रम कहते है, यह स्तनधारी पशुओं में प्रसव के तुरन्त बाद स्रावित होने वाला दूध है, जो अनेक लाभदायक पोषक तत्वों से समृद्ध होता है। इसमें रोग विरोधी इम्यूनोग्लोबूलीन प्रोटीन्स भी प्रचुर मात्रा में होते है, जो बछड़ों को रोग प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करके संक्रामक रोगों से उनका बचाव करते है।

बछड़ों के आहार में खीस का महत्व

खीस में विविध पोषक तत्व जैसे प्रोटीन्स, वसा, विटामिन्स, खनिज लवण, इम्यूनो-ग्लोब्यूलीन्स, प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं, जो बछड़ों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • खीस में प्रोटीन की मात्रा 17 प्रतिशत होती है, वहीं दूध में सिर्फ 3 प्रतिशत प्रोटीन होता है। खीस में इम्यूनोग्लोबूलीन प्रोटीन सबसे ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होता है, जो बछड़ों में प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न करती है।
  • विटामिन्स जैसे विटामीन ए, डी और ई खनिजों जैसे कैल्शियम, मैग्निशियम, आयरन और फास्फोरस भी खीस में ज्यादा मात्रा में पाये जाते हंै। विटामिन्स और खनिज तत्व बछड़ों के विकास के साथ-साथ उनकी रोगों से बचाव में भी सहायता करते है।
  • खीस नवजात बछड़ों के आंत में फंसे हुए मल को निकालने में भी मदद करता है। अन्यथा किण्वन क्रिया से उसमें विविध विषैले घटक पैदा हो जाते हैं, जो या तो बछड़ों को बीमार बना देते हैं या उनकी मौत का कारण बन जाते हैं।
खीस पिलाने का उचित समय और प्राशन-विधि

वैज्ञानिकों की माने तो नवजात बछड़ों को जन्म के बाद पहले आधे घण्टे में ही खीस पिलाना जरूरी होता है, क्योंकि जैसे-जैसे समय बीतता जाता है बछड़ों के (छोटी आंत से) शरीर में इम्यूनोग्लोबूलीन्स का शोषण कम होता जाता है। समान्यत: नवजात बछड़ों के जन्म के बाद चार से छह घण्टे के अंदर खीस पिलाया जा सकता है। जन्म के बाद पहले 24 घण्टे में नवजात बछड़ों को उनके वजन के 12 से 15 प्रतिशत तक खीस पिलाना जरूरी होता है। यह खीस की पूरी मात्रा दो या तीन हिस्सों में बांटकर बछड़ों को दिन में दो या तीन बार पिलायी जानी चाहिये। दूसरे, तीसरे और चौथे दिन तक बछड़ों के वजन के 10 प्रतिशत तक खीस पिलायें। खीस पिलाते समय हमेशा एक बात का ध्यान रखे के खीस को कभी उबालना नहीं चाहिए क्योंकि इससे वो फट जाती है और उसकी पोषकता घट जाती है। अगर बछड़ों को बहुत ज्यादा दस्त हो रहा है, तो खीस या दूध की मात्रा कम कर सकते हैं, लेकिन इसे पूर्णत: बंद नहीं करें।

खीस आवश्यक मात्रा में उपलब्ध न हो तो क्या करें?

अगर किसी कारणवश जैसे कि नवजात बछड़े की माँ की मृत्यु हो जाए या वह किसी संक्रामक रोग से ग्रसित हो तो खीस उपलब्ध नहीं होता और पशुपालकों की चिन्ता बढ़ जाती है। ऐसे समय में हम ‘कृत्रिम खीस’ बनाकर उसे पिला सकते हंै। कृत्रिम खीस बनाने के लिये निम्न पदार्थों का उपयोग किया जाता है:-

गरम पानी 275 मिली, दूध गरम 525 मिली, एक कच्चे अंडे के घटक 55 ग्राम, अरंडी का तेल 3 मिली, विटामिन ए 10,000 यूनिट, ऑरीओमायसीन 80 मि.ग्राम। इन सब घटकों को दूध और गरम पानी में अच्छी तरह घोलकर नवजात बछड़ों को खीस के बदले पिलाया जा सकता है। आम तौर पर गाय-भैंस, बछड़ों की जरूरत से ज्यादा खीस का उत्पादन करती है। विदशों में ऐसे बचा हुआ खीस डीप फ्रिजिंग तकनीक से संरक्षित करते हैं और ये खीस का उपयोग खीस के अभाव होने में होता हैं। खीस की गुणवत्ता ‘कोलस्ट्रोमीटर’ नामक उपकरण से जांचते हैं। इस तरह जिन बछड़ों को उचित समय और उचित मात्रा में खीस पिलाकर वैज्ञानिक पद्धति से आहार खिलाया जाता है, वह 18 से 20 महिने तक गाभिन हो जाती है और 28 से 30 महिने तक दूग्ध उत्पादन शुरू कर देती है।

घटक पानी प्रोटीन वसा खनिज
घटक पानी (प्रतिशत) प्रोटीन (प्रतिशत) वसा (प्रतिशत) खनिज (प्रतिशत)
दूध 87 3.3 4 0.7
खीस 74.5 17.6 3.6 1.7

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