मुर्गीयों का एस्परगिलोसिस रोग
लेखक- डॉ. स. औदार्य (सहायक प्राध्यापक), डॉ. अं. निरंजन (सहायक प्राध्यापक) और डॉ. नी. श्रीवास्तव (सह प्राध्यापक), पशुचिकित्सा सूक्ष्म-जीव विज्ञान विभाग, पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय, नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, कुठुलिया, रीवा, मध्य प्रदेश
09 जुलाई 2024, भोपाल: मुर्गीयों का एस्परगिलोसिस रोग – एस्परगिलोसिस एक फफूंद या कवक जनित रोग है जो आमतौर पर युवा चूजों में निमोनिया (फेफड़ों के संक्रमण) का कारण बनता है, इसलिए इसे अक्सर युवा चूजों में फेफड़ों का संक्रमण या “ब्रूडर्स निमोनिया” कहा जाता है। एस्परगिलोसिस रोग मुख्य रूप से मुर्गियों, टर्की और कभी-कभी बत्तख, कबूतर, कैनरी और गीज़ जैसी अन्य पक्षी प्रजातियों की श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है। मुर्गीयों के अंडे सेनेवाले यंत्र (इनक्यूबेटर) में स्फुटन के समय नए चूज़ों में “ब्रूडर्स निमोनिया” (नए चूज़ों में फेफड़ों का संक्रमण) नामक बीमारी होती है। यह बीमारी “एस्परगिलस फ्यूमिगेटस” नामक कवक के कारण प्राथमिक रूप से होती है। हालांकि अन्य फफूंद प्रजातियां जैसे ए. फ्लेवस, ए. नाइजर, राइजोपस प्रजातियाँ, और म्यूकर प्रजातियाँ भी शामिल हो सकती है, यद्यपि सामान्यतः कम फेफड़ों का संक्रमण तथा वायुकोष सम्बन्धी दोष जो मुर्गियां छह हफ़्तों से ज्यादा उम्र की होती है उनमे आमतौर पर होती है। “सामान्यीकृत एस्पेरगिलोसिस” श्वसन तंत्र से फफूंद संक्रमण के शरीर के अन्य भागों में फैलाव के कारण होता है।
“ब्रूडर्स निमोनिया” बीमारी में “एस्परगिलस फ्यूमिगेटस” के बीजाणु जब अधिक मात्रा में होते है और स्फुटन के समय नए चूज़ों को ग्रसित करते है तब होती है। बीमारी से ग्रसित चूज़ों
में तन्द्रा, भूख की कमी पायी जाती है और ये अधिक संख्या में मर जाते है। फेफड़ों और वायुकोष तथा कभी-कभी अन्य अंगों में “पिली गांठें” मिलती है। ऊतकों में फफूंद के फैलाव का पाया जाना तथा घाव से “एस्परगिलस फ्यूमिगेटस” नामक कवक को उत्पन्न कर पाना यह बीमारी को पुष्ट करने में सहयोगी है। अंडे सेनेवाले यंत्र का नित्य धूम्रीकरण और पूरी तरह से
स्वच्छता “ब्रूडर्स निमोनिया” रोग के नियंत्रण हेतु कारगर है।
नैदानिक लक्षण जैसे की श्वसन संकट और अन्य लक्षण पाये जाते है। एस्परगिलोसिस से प्रभावित पक्षी श्वसन संकट में फेफड़ों और वायु कोष, वायु थैली एयरसैक में कवक आक्रमण के कारण सांस लेने में कठिनाई (डिस्पेनिया) प्रदर्शित करते हैं। अन्य लक्षण में: बुखार, भूख न लगना और क्षीणता आम हैं। कुछ मामलों में, तंत्रिका संबंधी (न्यूरोलॉजिकल) रूप टेढ़ी गर्दन (टॉर्टिकोलिस) और कंपकंपी के साथ उपस्थित हो सकता है। फुफ्फुसीय घावों की विशेषता सफेद से पीले रंग की पट्टिकाएं और गांठें होती हैं, जिनका व्यास कुछ मिलीमीटर से लेकर कई सेंटीमीटर तक होता है। ये गांठें व्यापक रूप से वितरित होते है।
परिपक्व पक्षियों में संक्रमण प्राय: दूषित कूड़े या चारे से निकलने वाली बीजाणु-युक्त धूल के अंतःश्वसन (श्वास नलिका द्वारा) से होता है। कुक्कुट और बंदी पेंगुइन, शिकारी पक्षी और तोते जैसा एक पक्षी इस रोग से प्रभावित हो सकते है। पेंगुइन को अनुपयुक्त उच्च परिवेश के तापमान पर रखा जाता है तो वो “एस्परगिलस फ्यूमिगेटस” संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील होते है। जबकि शिकारी पक्षियों में संक्रमण के लिए “एस्परगिलस फ्यूमिगेटस” बीजाणु जो पक्षीशाला में फर्श पर कटे हुए लकड़ी की छाल से निकलते है, उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया है। नैदानिक लक्षण, जो की परिवर्तनशील हैं उनमे दमा और क्षीणता शामिल है।“पिली गांठों” जैसे घाव जो की पक्षीय क्षय रोग में पाए जाते है, ऐसी गांठे फेफड़ों और वायुकोष में पायी जाती है। अन्य आंतरिक अंगों में संक्रमण का प्रसार हो सकता है। निदान की पुष्टि ऊतकों में फफूंद के फैलाव का पाया जाना तथा घाव से विशेष कवक को उत्पन्न कर पाना इससे होती है। एस्परगिलोसिस रोग मनुष्यों और अन्य जानवरों में भी होता है। यह कवक पर्यावरण में बढ़ सकता है जो घर के अंदर और बाहर रहता है। अधिकांश लोग बिना बीमार हुए प्रतिदिन एस्परगिलस बीजाणुओं को सांस द्वारा अंदर लेते हैं (मर्क पशु चिकित्सा नियमावली) ।
एस्परगिलोसिस रोग जोखिम को कम करने में मदद-
- स्वच्छता: साफ बिस्तर, धूल नियंत्रण और सुविधाओं की नियमित सफाई सहित उचित प्रबंधन प्रथाएं, बीजाणु के जोखिम को कम करने में मदद करती हैं।
- वायु-संचालन (वेंटिलेशन): संदूषण को रोकने के लिए बार-बार होने वाले संक्रमण वाली सुविधाओं में वायु प्रबंधन प्रणाली (एयर हैंडलिंग सिस्टम) की जांच करें।
- जैवसुरक्षा: अन्य स्रोतों से दूषित सामग्री या पक्षियों के आगमन को रोकें।
याद रखें, मुर्गीयों के स्वास्थ्य पर एस्परगिलोसिस के प्रभाव को कम करने के लिए शीघ्र पहचान और निवारक उपाय महत्वपूर्ण हैं।
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