Uncategorized

गन्ना उत्पादन के लिए भी कुछ करना होगा

Share

भारत में गन्ने की खेती लगभग 50.6 लाख हेक्टर में की जाती है। मध्यप्रदेश में इसका क्षेत्र मात्र 1.01 लाख हेक्टर है जो देश के गन्ने के कुछ क्षेत्र का मात्र लगभग 2 प्रतिशत है। मध्यप्रदेश में गन्ने की उत्पादकता मात्र 43.78 मीट्रिक टन प्रति हेक्टर है जो देश के गन्ना उत्पादन प्रांतों में सबसे कम है। जबकि गन्ने की उत्पादकता पश्चिमी बंगाल में 111.45 व तमिलनाडु में 104.10 मीट्रिक टन प्रति हेक्टर है, जो मध्यप्रदेश की गन्ने की औसत उत्पादकता भी मात्र 67.43 मीट्रिक टन प्रति हेक्टर है, जबकि ब्राजील भारत के गन्ने के कुल क्षेत्र के लगभग दुगने क्षेत्र में गन्ना लगाकर 75.17 मीट्रिक टन गन्ने का उत्पादन प्रति हेक्टर ले रहा है। मध्यप्रदेश में उष्णकटिबंधीय जलवायु होने के बाद भी गन्ने की उत्पादकता कम है। इसकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रयास करने होंगे, सर्वप्रथम उन कारणों का पता लगाने के प्रयास करने होंगे जिनके कारण गन्ने के उत्पादन में किये गये प्रयासों के बाद भी उत्पादन में वृद्धि नहीं हो पा रही है और प्रदेश के किसान गन्ने की खेती के प्रति उदासीन क्यों है। जहां तक गन्ने से चीनी की प्राप्ति का संबंध है, यह मध्यप्रदेश में 9.936 प्रतिशत है जो कई राज्यों से अधिक है। यह तीन राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक व गुजरात से ही कम प्राप्त होती है जहां इसका प्रतिशत क्रमश: 11.448, 10.888 व 10.642 है।
मध्यप्रदेश में गन्ने के विकास के लिये नये सिरे से प्रयास करने की आवश्यकता है। गन्ने पर मध्यप्रदेश में अनुसंधान लगभग समाप्त ही हो गया है। गन्ने की नई जातियां निकालने का कार्य कोयम्बटूर तथा शाहजहाँपुर में होता है वहां से निकली जातियों का अनुकूलता परीक्षण के लिये मध्यप्रदेश में कम से कम दो अनुसंधान केंद्र होने चाहिए जो प्रदेश के उत्तरी तथा दक्षिणी क्षेत्र के लिये उपयुक्त जातियों का परीक्षण करें तथा उपयुक्त जातियों का उत्पादन कर गन्ना किसानों तक उनके बीज उपलब्ध कराये तथा किसानों की गन्ना बीज की समस्या हल हो सकती है। अनुसंशित जातियों के पोषक तत्वों तथा उनको पानी की आवश्यकता पर भी अनुसंधान करने की आवश्यकता है। गन्ने में पौध संरक्षण एक जटिल समस्या है। गन्ने के कीटों का जैविक नियंत्रण उपलब्ध है। इसके लिये प्रदेश के गन्ना क्षेत्रों में जैविक कारकों पर अनुसंधान तथा उनके उत्पादन के लिए प्रयोगशालायें भी आरंभ करने की आवश्यकता है ताकि ये जैविक उत्पाद किसानों को उनकी आवश्यकतानुसार प्राप्त हो सके।

गेहूं में खरपतवार प्रबंधन समस्यायें एवं निदान

Share
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *