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वर्षा आधारित फसलों की उत्पादकता के लिए भी कुछ करना होगा

देश के किसी न किसी क्षेत्र में असंतुलित वर्षा के कारण सूखा हर वर्ष पड़ता है। जिसका सबसे अधिक प्रभाव फसलों के उत्पादन पर पड़ता है और यह रहन-सहन पर भी अपने प्रभाव छोड़ जाता है। देश के अधिकांश भागों में खरीफ फसलों की खेती वर्षा पर भी निर्भर करती है। वर्षा का समय से नहीं आना, वर्षा वितरण सामान्य न होना, अति वर्षा आदि सभी फसल के उत्पादन पर प्रभाव डालते हैं। वर्षा के पूर्वानुमान में होने वाली चूक भी किसान को फसलों के उचित प्रबंधन में बाधा पहुंचाती है। देश में सिंचित क्षेत्र के रकबे में पिछले कुछ वर्षों में अच्छी प्रगति हुई है फिर भी वर्षा पर आधारित क्षेत्र अभी भी सिंचित क्षेत्र से अधिक है। सरकार की किसानों की आमदनी वर्ष 2022 तक दुगनी करने की राह में वर्षा आधारित खेती करने वाले किसानों की आय दुगना करना एक बड़ी बाधा बनी रहेगी। इसके लिए हमें हर खेत में पानी पहुंचाने के लिये प्रयास करने होंगे। ऐसे क्षेत्रों में आमदनी बढ़ाने के लिए क्षेत्रवार ऐसी फसलों का चयन करना होगा जो अधिक मुनाफा दे सके। क्षेत्र जलवायु के लिये उपयुक्त हो तथा प्रति एकड़ परम्परागत फसल से और वर्षा के पानी का उपयोग कर उन्हें लिया जा सके। पिछले कुछ वर्षों से मौसम का बदलाव भी फसलों की उत्पादकता पर असर डाल रहा है। जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में धान व गेहूं के उत्पादन में कमी के रूप में देखा जा रहा है। इसलिये अब यह आवश्यक हो गया है कि वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए हमें बदलते मौसम को भी देखते हुए लचीली तकनीक का विकास करना होगा जिससे फसलों की उत्पादकता में टिकाऊपन रहे और किसान की आय में संतुलन बना रहे। इसके लिए हमें अपनी पुरानी परम्परागत फसलों की जातियों में दुबारा आने पर भी कोई संकोच नहीं करना चाहिए। जिसने हमें अधिक उत्पादन की होड़ में बिना सोचे-समझे छोड़ दिया था। इन परम्परागत जातियों को यदि हम आधुनिक जातियों के बराबर पोषक तत्वों के समतुल्य उगाते तो उनकी सही उत्पादक क्षमता को आंक पाते। वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों में वर्षा के पानी का संरक्षण तथा प्रबंधन की ओर भी हमें पुन: ध्यान देना होगा। इसके लिए वर्षा के पानी के संरक्षण तथा खेत की स्थिति अनुसार खेत में पानी के संरक्षण के लिये उपलब्ध सभी विधियों को अपनाने के लिये किसानों को प्रेरित तथा इस संबंध में उन्हें परामर्श देने की व्यवस्था भी करना होगी जिससे फसलों की उत्पादकता में टिकाऊपन तथा किसान की आय में वृद्धि हो सके।

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