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तारामीरा की उन्नत खेती कैसे करें

भूमि का चुनाव – तारामीरा हेतु हल्की दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। अम्लीय एवं ज्यादा क्षारीय भूमि इसके लिये बिल्कुल उपयोगी नहीं है।
खेत की तैयारी एवं भूमि उपचार – तारामीरा की खेती अधिकांशत: बारानी क्षेत्रों में, जहां अन्य फसल सफलतापूर्वक पैदा नहीं की जा सकती हो, वहां की जा सकती है। खरीफ की चारे, उड़द, मूंग, चौंला, मक्का, ज्वार आदि की फसल लेने के बाद यदि नमी हो, तो एक हल्की जुताई करके सफलतापूर्वक इसे बोया जा सकता है। जहां तक सम्भव हो वर्षा ऋतु में तारामीरा की बुवाई हेतु खेत खाली नहीं छोडऩा चाहिये। दीमक और जमीन के अन्य कीड़ों की रोकथाम हेतु बुवाई से पूर्व जुताई के समय क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खेत में बिखेर कर जुताई करेें।
उपयुक्त किस्में – टी – 27 (1976) – यह किस्म बारानी क्षेत्रों में बुवाई के लिये उपयुक्त हैं। इसकी औसत उपज 6-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा पकाव अवधि 150 दिन है। इसमें 35-36 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है व सूखे के प्रति सहनशील है।
टार.एम. टी – 314 – यह किस्म बारानी क्षेत्रों में बुवाई के लिये उपयुक्त हैं। इसकी औसत उपज 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा पकाव अवधि 130-140 दिन है। इसमें 36.9 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है। इसके हजार दानों का वजन 3-5 ग्राम व इसकी शाखाएं फैली हुई होती है।
बीज की मात्रा एवं उपचार – एक हैक्टेयर भूमि हेतु 5 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। बुवाई से पहले 2.5 ग्राम मैंकोजेब प्रति किलो बीज की दर से बीज को उपचारित करें।
बुवाई – बारानी क्षेत्र में तारामीरा की बुवाई का समय मिट्टी की नमी व तापमान पर निर्भर करता है। नमी की उपलब्धता के आधार पर इसकी बुवाई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक कर दें। बीज कतारों में बोये एवं कतार से कतार की दूरी 40-45 सेंटीमीटर रखें।
उर्वरक – फसल में 30 किलोग्राम नत्रजन एवं 15 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देना चाहिये। उर्वरकों को बुवाई के समय ही ऊर देें।
सिंचाई – जहां सिंचाई के साधन उपलब्ध हों, वहां प्रथम सिंचाई 40 से 50 दिन में, फूल आने से पहले करें। तत्पश्चात् आवश्यकता पडऩे पर दूसरी सिंचाई दाना बनते समय करें।
निराई – गुड़ाई – फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई करें। यदि पौधों की संख्या अधिक हो तो बुवाई 20-25 दिन बाद अनावश्यक पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सेन्टीमीटर कर दें।
फसल संरक्षण
मोयला – माहू कीट लगते ही 5 प्रतिशत या मैलाथियान 5 प्रतिशत मिथाइल डिमटोन 25 ई.सी. सवा लीटर या डायमिथिएट 30 ई.सी. 875 मिलीलीटर का पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
सफेद रोली, झुलसा व तुलासिता – इन रोगों के लक्षण दिखाई देते ही डेढ़ किलो मैन्कोजेब या जाईनेब का पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। यदि प्रकोप ज्यादा हो तो यह छिड़काव 20 दिन के अन्तर पर दोहरायें।
फसल कटाई – फसल में जब पत्ते झड़ जायें और फलियां पीली पडऩे लगें तो फसल काट लेें अन्यथा कटाई में देरी होने पर दाने खेत में जड़ जाने की आशंका रहती है।

  • डॉ. बी.एस. राठौड़
    email : rathorebs1957@rediffmail.com
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