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पशुओं का हवादार घर

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आधुनिक पद्धति से किये जाने वाले पशुपालन में आवास प्रबंधन एक महत्वपूर्ण पहलू है। आवास की विभिन्न पद्धतियां होती हैं। लेकिन ज्यादातर दो पद्धतियां प्रमुखता से इस्तेमाल होती हैं जिनमें एक है बंद आवास या बाड़ा पद्धति तथा दूसरी खुला बाड़ा पद्धति।

खुला बाड़ा पद्धति क्या है?

खुला बाड़ा पद्धति में पशुओं को चारो ओर से खुले एक बाड़े में रखा जाता है जिसके ऊपर अंस्बेस्टांस (सिमेंट की चादरों) से बनी छत होती है। बाड़े के खम्बे या स्तंभ होते हैं लेकिन दीवारें नहीं होती । फर्श बनवाते हैं तथा बाड़े से काफी दूर चारों ओर बाड़ (फेंसिंग) होती है जो बुने हुए तार या अन्य योग्य चीजों से बनी होती है। बाड़े के ईर्द-गिर्द बड़ा प्रांगण आंगन होता है जहां बड़े पेड़/ वृक्ष (जैसे बरगद या आम या पीपल या अन्य घनी पत्तियों से युक्त छायादार फैलने वाले वृक्ष) लगे होते हंै। पशु इस खुले प्रांगण में मुक्त विचरण करते हैं तथा जहां-चाहे जब-चाहें घूम फिर सकते हैं। जब चाहे तब चराई के बाद पेड़ की छाया में बैठकर आराम से जुगाली कर सकते है। जब चाहें तब प्रांगण में स्थित पानी की टंकी के पास आकर पानी पी सकते हैं।

खुला बाड़ा पद्धति का महत्व तथा फायदे

  • खुले बाड़े में पशु जब चाहे जितना चाहे पैदल घूम फिर सकते हैं अत: उन्हें काफी व्यायाम मिलता है इससें उनका चाराग्रहण बढ़ता है, चारे कीे दूध में रूपांतरण क्षमता बढ़ती है, पाचनशीलता बढ़ती है जिसमें उनके दूध उत्पादन में 5 से 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है। इसके अलावा उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति में बढ़ोत्तरी होने से उनके इलाज पर कम खर्च होता है।
  • खुले बाड़े में पशुओं की निगरानी तथा निरीक्षण सहजता से कर सकते है। इससें जो मादा पशु गर्मी में (ताव में) हैं वह आसानी से पहचाने जा सकते हैं। इससे उन्हे समयपूर्वक गर्भित किया जा सकता है इससे वह जल्दी ब्याते हैं ओर जल्दी दूध उत्पादन शुरू करते हैं। इससे उनके उत्पादन काल के कम से कम दिन बर्बाद होते हैं । जिससे मुनाफा बढ़ता है।
  • खुले बाड़े में स्वतंत्र/मनमाने ढ़ंग से टहलने के कारण तथा अन्य पशुओं के साथ रहने से पशुओं का मन और स्वास्थ्य एकदम खुशगवार रहता है जिससे उनकी कुल कार्यक्षमता बढ़ती हैं, तथा दूध उत्पादन बरकरार रहने के साथ उसमें बढ़ोत्तरी होती है।
  • खुला बाड़ा पद्धति में पशु जब चाहे जितना चाहें पानी भी सकते हैं तथा चारा भी खा सकते हैं इससे उनके दूध उत्पादन तथा स्वास्थ्य में सुधार आता है।
  • बंद बाड़े की तरह एक ही जगह गोबर के ढ़ेर तथा मूत्र का जमाव नहीं होता। इससे पशु साफ-सुथरे रहते है। इसके अलावा बाकी जगह सुखी होती है। वहाँ वे आराम से बैठ सकते है। इससे उन्हे विश्राम मिलता है और वे तरोताजा होते हैै।
  • खुले बाड़े मेंं स्थित छायादार वृक्ष की शीतल छाया में बैठकर पशु जुगाली कर सकते हैं जो उनके स्वास्थ्य तथा उत्पादन बरकरार रखने तथा उसमें सुधार हेतु अत्यंत सहायक सिद्ध होता है। इससे उनके दूध उत्पादन में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी होती है।
  • खुला बाड़ा पद्धति में पशु खुद ही चारा खाते हैं तथा खुद पानी की टंकी के पास जाकर पानी पीते हंै अत: श्रम की बचत होती हैं। गोबर मूत्र अलग अलग जगह गिरता है और कीचड़ नहीं होती।
  • पशु का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहने से वे अप्राकृतिक बर्ताव नही करते जैसे जीभ गोल घुमाना, रस्सी चबाना, फर्श या दीवारें चाटना, पेशाब चाटना, दूध कम मात्रा में देना आदि। इस प्रकार हम पशुओं को खुले बाड़े में रखकर उनका बारीकी से निरीक्षण करें तो हमें और भी कई लाभ महसूस होंगे। ऐसे में जरूरी है कि  किसान  तथा पशुपालक भाई पशुओं को पालने के लिए खुला बाड़ा पद्धति अपनाएं।
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