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सोयाबीन उत्पादन में बीज है खास

विगत वर्ष खरीफ में अधिक वर्षा के कारण सोयाबीन बीज की गुणवत्ता की काफी हानि हुई है। अधिक वर्षा तथा वातावरण में अधिक नमी के कारण सोयाबीन तथा बीज मेंं विभिन्न रोगों का प्रकोप देखा गया है। इन रोगों के कारण सोयाबीन बीज की गुणवत्ता प्रभावित हुई है तथा इसकी अंकुरण क्षमता को नुकसान पहुंचा है। सोयाबीन के बीज में उच्च प्रोटीन एवं तेल होने के कारण जल्द नमी शोसित करता है एवं अधिक तापमान होने पर जल्द नमी छोड़ता भी है। जिसके कारण सोयाबीन बीज के रसायनिक गुणों का हृास होता है एवं बीज का अंकुरण भी कम हो जाता है। पिछले साल सोयाबीन फसल के पकने के समय वर्षा होना सोयाबीन बीज के हृास होने का और एक मुख्य कारण है। ऐसे में सोयाबीन के बीज का अच्छा अंकुरण होने के लिए एवं उपयुक्त पौध संख्या पाने के लिए निम्रलिखित विषय पर ध्यान देने की आवश्यकता है-
उत्तम बीजों की विशेषताएं एवं आवश्यकता
भौतिक शुद्धता
बीज में संंबंधित किस्म के बीजों के अतिरिक्त अन्य फसलों व खरपतवारों के बीज तथा धूल, कंकड, मिट्टी व भूसी आदि भी सम्मिलित रहते हैं। जिसकी मात्रा अच्छे बीज में 2 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। भौतिक शुद्धता अच्छी होने से बीजों के साथ मिश्रित खरपतवारों के बीज एवं मिट्टी में उपस्थित हानिकारक जीवाणु के फैलने की आशंका नहीं होती है।
अनुवांशिक शुद्धता
बीज की अनुवांशिक शुद्धता सही मात्रा मेंं होना चाहिए। बीजोत्पादन के फसल में यदि दूसरी कोई किस्म मिश्रित रहती है तो दूसरे किस्म के पौधे को उखाड़ के निकाल दें। आधार बीज की अनुवांशिक शुद्धता की मात्रा 99 प्रतिशत एवं प्रमाणित बीज की मात्रा 98 प्रतिशत होनी चाहिए।
अंकुरण
एक बीज की अंकुरण, बीज की उस क्षमता के रुप में परिभाषित किया गया है जहां एक बीज से एक अंकुर बनता है जो एक स्वस्थ पौधा बनने के लिए सक्षम है। नमी और ऑक्सीजन के अनुकूल हालत में, बीज से अंकुर का उत्पादन होता है जिसके सभी भागों का समान विकास होता है और जो एक स्वस्थ पौधा बना सकता है। अंकुरण क्षमता बीज का सबसे महत्वपूर्ण गुण है। अंकुरण क्षमता बीज ढेर का बुआई मान निर्धारित करता है। उच्च महत्वपूर्ण गुण है। अंकुरण क्षमता बीज ढेर का बुआई मान निर्धारित करता है। उच्च अंकुरण क्षमता वाली ढेर खेतों में अच्छी पौध संख्या आश्वस्त करता है जिससे अधिकतम उत्पादन मिलता है। सोयाबीन बीज की अंकुरण क्षमता न्यूनतम 70 प्रतिशत होना चाहिए। अंकुरण क्षमता कम होने पर प्रति वर्ग यूनिट जमीन पर पर्याप्त संख्या में पौधे नहीं रहते जिसके चलते उत्पादकता में कमी आती है। सोयाबीन का बीज काफी नाजुक होने के चलते इसकी अंकुरण क्षमता जल्द ही घट जाती है।
अंकुरण परीक्षण
बीज अंकुरण बुआई के पहले अवश्य करें। यह 70 प्रतिशत या उससे अधिक होनी चाहिए। अंकुरण परीक्षण हेतु एक बड़े ट्रे में बालू भरकर उसमें 50 प्रतिशत तक पानी डाल कर भीगा दें। भीगे बालू में 400 सोयाबीन की बीज 2 सेंमी गहराई में बुआई करें। दो बीज के बीच दूरी 2 सेंमी एवं दो लाइन के बीच की दूरी लगभग 5 सेंमी होनी चाहिए। ध्यान रखे की बालू सूखे ना अत: जरुरत के हिसाब से बालू में पानी के फुहार दें। 5 से 7 दिन में अंकुरित स्वस्थ पौधों को गिने। यदि 280 या उससे ज्यादा स्वस्थ पौधे अंकुरित हो गए हंै तो बीज उत्तम है। अंकुरित पौधे की सही जांच के लिए उसे बालू से बाहर निकाले। जड़ एवं पौधे का वृद्धि को ध्यान से देखें। पौधे की वृद्धि सीधी होना चाहिए। जड़ एवं तने की वृद्धि सही एवं उचित अनुपात में होनी चाहिए।
बीज स्वास्थ्य
रोगमुक्त बीज से ही स्वस्थ पौधे का जन्म संभव हैं। अधिक वर्षा एवं तापमान के कारण सोयाबीन फसल में विभिन्न रोग जैसे चारकोल रॉट, राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट, एंथ्रेक्नोज, पाड ब्लाईट, बेक्टीरियल पश्चुल, पीला मोजेक वायरस, सोयाबीन मोजेक वायरस का प्रकोप देखा गया है। इन रोगाों के कारण सोयाबीन बीज की गुणवत्ता प्रभावित होती है। तथा इसकी अंकुरण क्षमता हृास होती है। इसका असर आने वाली फसल में होने की आशंका है। यदि बीज रोगकारी जीवों व कीड़ों से संक्रमित है तो उससे खेत में पादप संख्या में कमी के साथ उपज कम होगी और रोगग्रस्त पौधों के नियंत्रण हेतु रोगनाशक दवाईयों पर खर्च ज्यादा होता है।
बीज में विभिन्न रोग छिपा हो सकता है। रोगग्रस्त बीज से रोग पौधा में फैलता है बाद में संक्रमित पौधे से रोग दूसरे पौधे में फैलता है। रोगमुक्त बीज पाने के लिए रोग मुक्त बीजोत्पादन जरुरी है। फसल के बीमारी रोकने के लिए बीज उपचार से शुरू करके फसल के रोग नियंत्रण के सारे उपाय सही मात्रा में और सही समय पर प्रयोग करें।
बीज उपचार
बीज में बीमारियों को फैलने से रोकने तथा बीज का अंकुरण स्तर बनाएं रखने के लिए बुआई से पहले बीज उपचार आवश्यक है।
मिट्टी में विभिन्न प्रकार के जीवाणु रहते हंै। बिना बीज उपचार किये बोनी करने से बीजों में रोग की संक्रमण या बीज सडऩे का खतरा रहता है। बीज के अंदर भी पहले से रोग का संक्रमण रह सकता है। सही तरह बीज उपचार करने से बीज को रोग संक्रमण एवं सडऩे से बचाया जा सकता है एवं स्वस्थ पौधे से अधिक उपज का लाभ उठाया जा सकता है।
इसके बाद ब्रेडिराईजोबियम 5 ग्राम/किलो बीज व पीएसबी कल्चर 5 ग्रा.किलो दर से बीज उपचारित कर छाया में सुखाकर बोने में उपयोग करें। उपर्युक्त जैविक खादों को विश्वसनीय संस्था से प्राप्त कर सूखी एवं ठंडी जगह पर रखें। यह सुनिश्चित कर लें कि कल्चर के उपयोग करने की तिथि निकल न गयी हो। जैविक खाद का क्रय बीजोपचार के समय ही करें और पहले खरीद कर न रखें। कल्चर एवं कवकनाशकों एवं साथ मिलाकर कभी भी उपयोग में नहीं लाना चाहिए।
बीज उपचार सही तरीके से किया जाना चाहिए जिससे हर बीज में प्रयोग किये गए दवा लगे। बीज उपचार के लिए बाजार में विभिन्न प्रकार के बीज उपचार यंत्र उपलब्ध हैं। बीज उपचार के लिए उन्नत तकनीकी की इस्तेमाल से अच्छे लाभ मिलता है। सोयाबीन का बीज काफी चिकना एवं गोलाकार होता है जिस कारण बीज के ऊपर उपचारित दवा सही तरीके से लगगभ नहीं पाती है। बीज उपचार पाउडर बीज में लगाते समय बहुत ही कम मात्रा में पानी की फुहार दे कर बीज उपचार कर सकते हंै। ध्यान रखें पानी की प्रयोग से बीज उपचार करने के बाद बीज को छाया में सुखा लें या तुरंत बुआई करें। ज्यादातर समय देखा जाता है कि किसान सीड ड्रिल से बीज बुआई के समय बीज ढेर के ऊपर अंदाज से बीज उपचार पाउडर डालकर बुआई करते है। इस तरह बुआई से बीज उपचार का सही फल नहीं मिल पाता है।
सोयाबीन जैसे चिकने बीज में उन्नत तकनीकी जैसे सिंथेटिक पॉलिमार के माध्यम से दवाईयों को बीजों में उपचार करने से बीज के ऊपर दवा का एक पतला आवरण बन जाता है। बीजों को सिंथेटिक पॉलिमार से बीज उपचार करने के बाद बीज को छाया में सुखा लें। बीज को उपचार के बाद सुखा लेने से किसान अपने हिसाब से कभी भी बुआई कर सकते हैं। इस तरह बीज उपचार करने से बीजों के ऊपर दवा स्थायी रुप से चिपका रहता है। बुआई के समय दवा बीज से झड़ नहीं जाता और अंकुरण के समय पानी के साथ दवा बीज के अंदर प्रवेश कर जाता है एवं सही तरीके से बीज को सुरक्षा प्रदान करता है। साधारणत: 1 किलो बीज उपचार के लिए 2 ग्राम सिंथेटिक पॉलिमार के साथ अनुसंशित दवा की मात्रा और 5 मिलीलीटर पानी पर्याप्त होता है।

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