खरपतवार, नैनो उर्वरक और तेल की गुणवत्ता: सरसों की उन्नत खेती के अहम सूत्र
15 दिसंबर 2025, भोपाल: खरपतवार, नैनो उर्वरक और तेल की गुणवत्ता: सरसों की उन्नत खेती के अहम सूत्र – सरसों की फसल में शुरुआती 30 से 45 दिन खरपतवार नियंत्रण के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इसी अवधि में खरपतवार फसल से पोषक तत्व, नमी और रोशनी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 45 दिन के बाद फसल की बढ़वार इतनी हो जाती है कि वह खरपतवारों को दबा देती है।
सरसों में पोस्ट-इमरजेंस शाकनाशी के सीमित विकल्प होने के कारण निराई-गुड़ाई सबसे प्रभावी उपाय है। इसके साथ ही thinning या विरलीकरण करने से पौधों की संख्या संतुलित रहती है। एक गंभीर समस्या परजीवी खरपतवार ओरोबैंकी है, जो विशेष रूप से हल्की मिट्टी और वर्षा आधारित क्षेत्रों में पाई जाती है। इसके दिखते ही हाथ से निकालकर नष्ट करना बेहद जरूरी है, क्योंकि इसके बीज कई वर्षों तक जीवित रहते हैं।
हाल के वर्षों में नैनो उर्वरकों का उपयोग भी चर्चा में है। पारंपरिक उर्वरकों की 75 प्रतिशत अनुशंसित मात्रा के साथ नैनो यूरिया या नैनो
डीएपी के दो छिड़काव करने से पोषक तत्वों की उपयोग दक्षता बढ़ती है। पहला छिड़काव इस अवस्था पर और दूसरा 60–65 दिन की अवस्था पर किया जा सकता है। इससे फसल की जैविक क्रियाएं सक्रिय होती हैं और उपज लगभग समान बनी रहती है।
सरसों के तेल की गुणवत्ता बढ़ाने में सल्फर का विशेष योगदान है। यदि फास्फोरस की पूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट से की जाए तो फसल को सल्फर भी मिलता है, जिससे दानों में तेल की मात्रा 3 से 5 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन से न केवल उपज बल्कि तेल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।
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