रबी फसलों में जल प्रबंधन
लेखक: दीपक चौहान (वैज्ञानिक-कृषि अभियांत्रिकी), डॉ. मृगेन्द्र सिंह ( वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख), डॉ. अल्पना शर्मा (वैज्ञानिक), डॉ., बृजकिशोर प्रजापति (वैज्ञानिक), भागवत प्रसाद पंद्रे (कार्यक्रम सहायक), कृषि विज्ञान केन्द्र शहडोल, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय, जबलपुर, deepakchouhan22@gmail.com
13 नवंबर 2024, भोपाल: रबी फसलों में जल प्रबंधन – जल ही जीवन है, यह अटल सत्य है, क्योंकि जल मानव, पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं के जीवन-यापन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं आवश्यक अंग है। जल कृषि बागवानी के उत्पादन में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण आदान है, जन जीवों की कोशिकाओं में जल 70-90 प्रतिशत तक पाया जाता है। जल पादपों के अन्दर होने वाली समस्त चयापचय क्रियाओं के सुचारु रूप से संचालन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया, जोकि समस्त ब्रह्माण्ड की अकेली प्रतिक्रिया है, हेतु माध्यम का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त जल औद्योगिक उत्पादन, ऊर्जा स्रोत एवं यातायात में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सिंचाई का महत्व
- पौधों का 80-90 प्रतिशत भाग पानी का बना होता है और रसायनिक रूप में पानी, पौधों का एक अंग होता है।
- कोशिका द्रव का मुख्य भाग (80-90 प्रतिशत) पानी है। अत: कोशिका विभाजन बिना जल के सम्भव नहीं है। कहने का अभिप्राय यह है कि पौधों की पूर्ण वृद्धि जल पर ही निर्भर है।
- बीज के अन्दर भ्रूण का अंकुरण बिना जल के नहीं हो सकता है।
- पौधों में जल वाहक का कार्य भी करता है। जड़ें पोषक तत्वों को घोल के रूप में चूसती हैं व जल के माध्यम से चूसे गये पोषक तत्व ही पौधों के अन्य आवश्यक भागों में पहुँचते हैं।
- प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया में जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड कच्चे पदार्थ के रूप में प्रयोग होते हैं, जो प्रकाश की उपस्थिति में पर्णहरित द्वारा कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित हो जाते हैं अर्थात् पौधों के लिये कार्बोहाइड्रेट आवश्यक पदार्थ भी जल की उपस्थिति में ही बनते हैं।
- पत्तियों में निर्मित होने वाले कार्बोहाइड्रेट का पत्तियों से दूसरे भागों में स्थानान्तरण भी जल द्वारा ही होता है।
- जल पौधों की कोशिकाओं को फुलाकर रखता है, जिसके फलस्वरूप कोशिकाएँ आकार में वृद्धि करके फसलों के पकने के समय में वृद्धि कर सकती हैं जिसके फलस्वरूप बाजार की मांग के अनुसार फसलें काटी जा सकती है।
- खेत में पानी लगाने से फसलों के हानिकारक कीट जैसे दीमक आदि को नष्ट किया जा सकता है।
- जल पौधों की जलोत्सर्जन क्रिया के लिये भी आवश्यक है। इस प्रक्रिया में पौधे अपने आप को वातावरण के अधिक तापमान (लू), कम तापमान (पाला) आदि से सुगमता से बचा सकते हैं।
- निरन्तर भूमि की सिंचाई करने से मृदा कणों के आकार में कमी होती है, जो फसलों की बढ़वार के लिये उपयुक्त है।
- भूमि में फसलों की वृद्धि हेतु अनेक लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु जैसे राइजोबियम, जीवांश पदार्थ को सड़ाने वाले सूक्ष्म जीवाणु जैसे नाइट्रोसोमोनास, नाइट्रोसो को कम करके अनेक लाभदायक फफूंदियाँ, एलगी, एंजाइम भी मृदा नमी की उपयुक्त अवस्था पर ही पनपते हैं।
- लवणीय या ऊसर मृदा के सुधार के लिये विषैले प्रभाव के तत्वों का उदीलन सिंचाई द्वारा ही सम्भव है या सिंचाई जल में घोलकर इन विषैले लवणों को खेत से बाहर निकालते हैं।
सिंचाई कब करें ?
रबी फसलों में सिंचाई योजना बनाते समय मिट्टी का प्रकार, फसल, फसल की किस्म, वृद्धि काल, मिट्टी में जीवांश पदार्थ की मात्रा और खेत में विगत वर्ष बोई गयी फसल आदि का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। जब भूमि में जल की इतनी कमी हो जाए कि पौधों की वृद्धि एवं विकास दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे की सम्भावना हो, उस अवस्था में आवश्यकता अनुसार सिंचाई कर दें। अधिकतर फसलों की सिंचाई मृदा में 50 प्रतिशत उपलब्ध जल रहने पर करें।
सिंचाई कैसे करें?
रबी फसलों की सिंचाई के लिये जल की क्षमता में वृद्धि हेतु यह नितान्त आवश्यक है कि सिंचाई हेतु उपयुक्त सिंचाई विधि का चयन किया जाए, जो कि भूमि की सतह, भूमि की किस्म, पानी की उपलब्धता, सिंचाई जल में लवणों की मात्रा और सिंचाई जल की वितरण पद्धति पर निर्भर करता है। फसलों की सिंचाई हेतु उपयुक्त सिंचाई विधि का चयन नितान्त आवश्यक है। अत: स्रोत से पानी सीधे खेत में नहीं छोड़ें, इसके लिये खेत को लंबाई ढलान की ओर 4-6 मीटर की नालियों का निर्माण कर लें और मेड़ के सहारे मुख्य नाली के क्रम से सिंचाई जल छोड़ें और भूमि ऊँची-नीची हो तो बौछारी सिंचाई करें। इससे कम जल से अधिक क्षेत्र की सिंचाई की जा सकती है।
सिंचाई का समय
जब पौधों की वृद्धि एवं विकास में उपलब्ध नमी के कारण महत्वपूर्ण कमी आनी शुरू हो जाए, तब ही सिंचाई कर दें। खेत में सिंचाई करने का अनुमान निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर भी लगाया जा सकता है:-
पौधों की बाहरी दशा के आधार पर:- विभिन्न पौधों में सिंचाई की आवश्यकता विभिन्न लक्षणों जैसे पत्तियों का मुरझाना, पत्तियों का रंग बदलना अथवा कम या अधिक गहरा हरे रंग आदि को देखकर लगाया जा सकता है।
मिट्टी के गुण:- मिट्टी के भौतिक गुणों को देखकर सिंचाई के समय का पता लगाया जा सकता है। चिकनी मिट्टी में नमी की कमी के कारण दरारें पडऩी शुरू हो जाती हैं।
मृदा नमी माप कर:- फसल की सिंचाई का सही पता लगाने हेतु रेपिड मोयस्चर और टेनशियोमीटर का उपयोग किया जा सकता है।
पौधों के जीवन में क्रान्तिकारी अवस्थाओं के आधार पर:- समस्त फसलों के पौधों के जीवन काल में कुछ ऐसी क्रान्तिकारी अवस्थाएँ होती हैं जिनमें पौधे भूमि से पानी अधिक मात्रा में चूसते हैं। यदि इन अवस्थाओं में भूमि में पानी की कमी हो जाती है तो पौधों के विकास, बढ़वार एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन अवस्थाओं को सिंचाई की दृष्टि से क्रान्तिक अवस्थायें कहते हैं।
विभिन्न फसलों की क्रान्तिक अवस्थाओं के आधार पर सिंचाई कब और कितनी करें, इसका उल्लेख नीचे किया गया है –
खाद्यान्न फसलें
गेहूं
सामान्यत: बौने गेहूं की अधिकतम उपज प्राप्त करने हेतु हल्की भूमि में जल की उपलब्धता के आधार पर सिंचाइयाँ निम्न अवस्थाओं में करें, अन्यथा इन अवस्थाओं में जल की कमी का उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ेगा। सिंचाई सदैव हल्की (6 सें.मी. गहरी) करें।
पहली सिंचाई- ताज मूल वृद्धि अवस्था में करें, यह अवस्था आमतौर पर बीज बोने के 20-25 दिन बाद आ जाती है।
दूसरी सिंचाई- कल्ले फूटने की अवस्था में करें। यह अवस्था आमतौर पर बीज बोने के 40-50 दिन बाद आ जाती है।
तीसरी सिंचाई- दीर्घ संधि अथवा गाँठ निर्माण की अवस्था में करें यह अवस्था बीज बोने के 60-65 दिन बाद आती है।
चौथी सिंचाई- पुष्पावस्था में सिंचाई करें। यह अवस्था बीज बोने के 80-85 दिन बाद आती हैं।
पाँचवी सिंचाई- दुग्धावस्था में सिंचाई करें। यह अवस्था बीज बोने के 100-105 दिन बाद आ जाती है।
छठी सिंचाई- दाने भरने की अवस्था में सिंचाई करें। यह अवस्था बीज बोने के 115-120 दिन बाद आ जाती है।
जौ
पहली सिंचाई- कल्ले फूटने के समय अर्थात् बीज बोने के 30-35 दिन बाद।
दूसरी सिंचाई- दुग्धावस्था में सिंचाई करें।
दलहनी फसलें
चना
पहली सिंचाई- बोने के 45-60 दिन बाद, फूल आने से पूर्व करें।
दूसरी सिंचाई- फलियों में दाने बनने के समय करें। यदि जाड़ों में वर्षा हो जाए, तो दूसरी सिंचाई न करें।
नोट:- फूल आने पर सिंचाई न करें अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो जायेगी।
मटर
पहली सिंचाई- फूल आने के समय पर सिंचाई करें।
दूसरी सिंचाई- दाने भरते समय एक सिंचाई करें। ऐसा करने से अधिक उपज मिलती है।
मसूर
पहली सिंचाई- फूल आने के समय सिंचाई करें।
दूसरी सिंचाई- फलियों के निर्माण के समय सिंचाई करें। शरद कालीन वर्षा हो तो सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं है।
तिलहन राई/सरसों
इन फसलों को फसल अवधि में 25-30 सें.मी. पानी की आवश्यकता होती है और केवल 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती है।
पहली सिंचाई- फूल आने की अवस्था में बोने के 40-45 दिन बाद सिंचाई करें।
दूसरी सिंचाई- फली निर्माण की अवस्था में बोने के 80-85 दिन बाद सिंचाई करें।
तीसरी सिंचाई- फलियों में दाने भरने की अवस्था में बोने के 105-110 दिन बाद सिंचाई करें।
(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़, टेलीग्राम, व्हाट्सएप्प)
(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)
कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
www.krishakjagat.org/kj_epaper/
कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: