State News (राज्य कृषि समाचार)

वर्मीवाश एक जैविक तरल खाद

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  • सांवर मल यादव , विनोद कुमार यादव
    एमएससी, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग
  • लेखराज यादव एमएससी
    कीट विज्ञान विभाग
    सैम हिगनिबाटम कृषि प्रौद्योगिकी और विज्ञान विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

वर्मीवाश एक प्रकार का तरल पदार्थ है जो केंचुओं के शरीर से रिसाव व धोवन का मिश्रित रूप है जो फसलों व सब्जियों पर छिडक़ने के रूप में काम आता है। केंचुओं के वर्मीवाश से मुख्य पोषक तत्व व अन्य सहायक तत्व प्राकृतिक रूप से प्राप्त होते हैं जिसकी सहायता से भूमि भुरभुरी व फसल स्वस्थ होती है वर्मीवाश के उपयोग से न केवल उत्तम गुणवत्ता युक्त उपज प्राप्त कर सकते हैं बल्कि इसे प्राकृतिक जैव कीटनाशक के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। वर्मीवाश शहद के रंग के जैसा एक तरल जैव खाद है, जिसका उत्पादन केंचुआ खाद उत्पादन के दौरान या अलग से भी किया जाता है। केंचुए का शरीर तरल पदार्थों से भरा होता है एवं इनके शरीर से लगातार इनका उत्सर्जन होता रहता है। इस तरल पदार्थों का संग्रहण ही वर्मीवाश है। इसमें बहुत सारे पोषक तत्व, हार्मोन्स जैसे साइटोकिनीन, आक्सीटोसिन, विटामिन्स, एमिनो एसिड, एन्जाइम्स, उपयोगी सूक्ष्मजीव जैसे बैक्टीरिया, कवक, एक्टीनोमाइसिटिस इत्यादि पाए जाते हैं। इसमें सभी पोषक तत्व घुलनशील रूप में उपस्थित होते हैं जो पौधों को आसानी से उपलब्ध होते हैं।

वर्मीवाश का उपयोग
  • एक लीटर वर्मीवाश को 10 ली. पानी में मिलाकर फसलों की विभिन्न अवस्थाओं में 15 दिन के अंतराल पर पत्तियों पर शाम के समय छिडक़ाव करें।
  • एक ली. वर्मीवाश को एक ली. गोमूत्र में मिलाकर उसमें 10 ली. पानी मिलाएं एवं रात भर के लिए रख कर ऐसे 50-60 ली. वर्मीवाश का छिडक़ाव एक हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों में करने पर जैव कीटनाशी व तरल खाद का काम करती है।
  • ग्रीष्मकालीन सब्जियों में शीघ्र पुष्पन एवं फलन के लिए पर्णीय छिडक़ाव किया जाता हैं, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।
वर्मीवाश के लाभ
  • वर्मीवाश के प्रयोग से पौधे की अच्छी वृद्धि होती है व पादप रोग होने की संभावना कम हो जाती है।
  • इसके प्रयोग से जल की लागत में कमी तथा अच्छी खेती सम्भव है।
  • इसके उपयोग से पौधो में पोषक तत्वों की कमी नहीं होती जिससे रसायनिक उवरकों का उपयोग न होने से पर्यावरण स्वस्थ रहता है।
  • कम लागत पर भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ती है और मृदा के भौतिक, रसायनिक एवं जैविक गुणों को बढ़ाती है।
    वर्मीवाश तैयार करने की विधि
घड़ा विधि
  • एक मिट्टी के घड़े के तले में छोटा छेद कर उसमें पतला पाईप लगा दें।
  • घड़े के अन्दर सबसे पहले बालूरेत की पतली परत बिछा दें। जिससे तरल पदार्थ का निकास हो सके।
  • इसके पश्चात घड़े में 15-20 सेमी 25 दिन पुराने गोबर की परत बिछा दें।
  • गोबर की परत के ऊपर 15 सेमी हल्के सूखे जैविक पदार्थ की परत बिछा दें व इसके ऊपर पुन: गोबर की परत बिछा दें।
  • इस प्रकार घड़े के ऊपर तक भर जाने पर 10-15 दिन बाद लगभग 1000-1200 वयस्क केंचुए घड़े में छोड़ दें।
  • बड़े घड़े के ऊपर एक 2-3 लीटर क्षमता का छोटा छेद युक्त बर्तन लटका दें जिससे बूंद-बूंद पानी केचुएं वाले घड़े में गिरता रहे। बड़े घड़े (केचुओं वाला) व पानी के बर्तन को किसी जाल या डोरी की सहायता से छायादार पेड़ की टहनी पर लटका दें।
  • बड़े घड़े के नीचे एक बर्तन रख दें। जिसमें वर्मीवाश (तरल) रूप में एकत्रित होगा।
  • केंचुए डालने के 15-20 दिन उपरांत केंचुए वाले घड़े से प्राप्त वर्मीवाश (तरल) एकत्र हो जाने पर संग्रह कर सकते हैं।
सावधानियाँ
  • केंचुए के घड़े के ऊपर रखे पानी के बर्तन से बूंद-बूंद पानी टपक रहा है या नहीं नियमित अंतराल पर देखते रहें।
  • घड़े से बूंद-बूंद वर्मीवाश तरल एकत्र हो रहा है या नहीं।
  • वर्मीवाश पूर्ण विकसित वयस्क केंचुओं से तैयार किया जाता है इस कारण वर्मीवाश के बर्तन में न्यूनतम 1000 वयस्क केंचुए रखें।
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