राज्य कृषि समाचार (State News)

वैदिक समय परंपरा और डॉ. मोहन यादव का दूरदर्शी दृष्टिकोण

(कृषक जगत विशेष) 

03 सितम्बर 2025, भोपाल: वैदिक समय परंपरा और डॉ. मोहन यादव का दूरदर्शी दृष्टिकोण – भारत की पहचान केवल अपनी सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं से नहीं, बल्कि उस ज्ञान से भी है जिसने समय को मापने और व्यवस्थित करने की अद्वितीय पद्धतियाँ दीं। वैदिक कैलेंडर और वैदिक घड़ी उसी ज्ञान-संपदा का हिस्सा हैं, जो सूर्य, चन्द्रमा और नक्षत्रों की गति के आधार पर समय का निर्धारण करती हैं। यह केवल तिथियों की गणना का साधन नहीं, बल्कि प्रकृति, ऋतुचक्र और जीवनशैली का जीवंत मार्गदर्शन है।

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वैदिक कैलेंडर का महत्व

वैदिक पंचांग में निहित तिथि, नक्षत्र, योग, करण और वार भारतीय जीवन के हर पहलू से जुड़े हैं। आज भी दीपावली, होली, नवरात्र, जन्माष्टमी जैसे पर्व पंचांग की गणना से ही तय होते हैं। किसान ऋतु परिवर्तन, बुआई और कटाई का समय पंचांग देखकर निर्धारित करते हैं। यह आस्था और विज्ञान का संगम है, जो भारतीय संस्कृति को जीवित रखता है।

वैदिक घड़ी की उपयोगिता

वैदिक घड़ी समय को घटी, प्रहर, मुहूर्त, नाड़ी जैसी इकाइयों में बाँटती है। यह मनुष्य की दिनचर्या को प्रकृति की जैविक लय के साथ जोड़ती है।

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  • योग और आयुर्वेद में मुहूर्त आधारित दिनचर्या का विशेष महत्व है।
  • किसानों और ग्रामीण जीवन के लिए यह घड़ी अधिक स्वाभाविक और उपयोगी हो सकती है।
  • आधुनिक तकनीक के साथ वैदिक घड़ी को मोबाइल एप, डिजिटल क्लॉक और स्मार्टवॉच में भी जोड़ा जा सकता है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का उत्साह

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जिस उत्साह और गर्व के साथ वैदिक कैलेंडर और वैदिक घड़ी की ओर ध्यान आकर्षित किया है, वह सराहनीय है। यह केवल सांस्कृतिक पहल नहीं, बल्कि वैज्ञानिक चेतना और सांस्कृतिक आत्मविश्वास का संगम है।

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उनकी पहल से यह विश्वास जागता है कि मध्यप्रदेश न केवल कृषि और उद्योग के क्षेत्र में, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक तकनीक से जोड़ने में भी अग्रणी भूमिका निभा सकता है।

निष्कर्ष

वैदिक कैलेंडर और घड़ी हमें यह स्मरण कराते हैं कि समय केवल घड़ियों की सुइयों से नहीं चलता, बल्कि प्रकृति की गति और मानवीय जीवन के संतुलन से जुड़ा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का यह रुझान एक संस्कृति-सम्मत और भविष्य-दृष्टा नेतृत्व का उदाहरण है।

यदि इस दिशा में ठोस प्रयास होते हैं, तो मध्यप्रदेश न केवल भारत, बल्कि विश्व को भी यह संदेश देगा कि परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चल सकती हैं।

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