दस माह में गिरी यूरिया-डीएपी की बिक्री
भोपाल। वित्तीय वर्ष 2016-17 के दस माह अप्रैल से नवम्बर तक में प्रमुख उर्वरकों डीेएपी व यूरिया की बिक्री में गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट गत वित्तीय वर्ष की समान अवधि की तुलना में डीएपी में जहां 6 प्रतिशत है वहीं यूरिया में यह 20 प्रतिशत है। इन दस माह में ही खरीफ, रबी दोनों सीजन के लिये इन उर्वरकों की बिक्री सर्वाधिक होती है। मध्य प्रदेश में उर्वरकों की बिक्री संस्थागत एवं निजी विक्रेताओं के माध्यम से होती है। अप्रैल से नवम्बर माह की अवधि में गत वित्तीय वर्ष 2015-16 की तुलना में इन दोनों ही माध्यमों से इस वित्तीय वर्ष में यूरिया की बिक्री में क्रमश: 15 प्रतिशत एवं 24 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है जबकि डीएपी की संस्थागत बिक्री में आश्चर्यजनक रूप से 32 प्रतिशत की कमी आई है लेकिन निजी क्षेत्र में डीएपी 44 प्रतिशत अधिक बिका है। उर्वरक उद्योग के सूत्रों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में इन दस माहों में यूरिया की कुल बिक्री साढ़े चौदह लाख मीट्रिक टन हुई। इसी अवधि में डीएपी 7 लाख मीट्रिक टन बिका।
गत वित्तीय वर्ष में इसी अवधि में यूरिया की बिक्री 18 लाख मीट्रिक टन हुई थी और डीएपी की बिक्री साढ़े सात लाख मीट्रिक टन हुई थी। गत वित्तीय वर्ष में निजी क्षेत्र से यूरिया 10 लाख मीट्रिक टन बिका जबकि इसकी संस्थागत बिक्री लगभग आठ लाख मीट्रिक टन रही। इस वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा क्रमश: 8 लाख मीट्रिक टन तथा साढ़े छ: लाख मीट्रिक टन रहा। इसी तरह वित्तीय वर्ष 2015-16 में डीएपी की बिक्री निजी क्षेत्र में ढाई लाख मीट्रिक टन व संस्थागत क्षेत्र में 5 लाख मीट्रिक टन थी। वित्तीय वर्ष 2016-17 में यह क्रमश: 4 लाख मीट्रिक टन तथा 3 लाख मीट्रिक टन रही।
उर्वरक उद्योग के विश्लेषकों का मानना है कि डीएपी की बिक्री में संस्थागत हिस्सेदारी में कमी का एक प्रमुख कारण कुछ क्षेत्रों में उर्वरक प्रदाय पर मार्कफेड का प्रतिबंध रहा। मार्कफेड प्रदेश के कुछ जिला सहकारी बैंकों से भुगतान में विलम्ब के चलते उन जिलों में कुछ समय के लिए उर्वरक प्रदाय प्रतिबंधित कर दिया था। इन उर्वरकों की बिक्री पर नोटबंदी के प्रभाव को नकारते हुए सूत्र बताते हैं कि नोटबंदी की अवधि नवम्बर-दिसम्बर 2016 में उर्वरकों की बिक्री सामान्य ही रही। वैसे भी इस अवधि में मुख्य रूप से यूरिया की ही खपत होती है। हालांकि विभागीय आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर से दिसम्बर तक की अवधि में गत वर्ष की तुलना में लगभग 4 प्रतिशत यूरिया की बिक्री कम हुई है। लेकिन डीएपी की बिक्री में लगभग 48 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
इन उर्वरकों की बिक्री में कमी के कारण चाहे जो भी हो लेकिन मौसम की अनुकूलता के बावजूद यह कमी प्रदेश की उर्वरक खपत पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है जिसका असर उत्पादन वृद्धि दर पर भी पड़ सकता है।