टमाटर : रोग एवं नियंत्रण
- प्रीती, मृदा विज्ञान संभाग
- ज्ञानेंद्र कुमार राय, जैव प्रौद्यौगिकी स्कूल
- प्रदीप कुमार राय, मृदा विज्ञान संभाग
- शेर ए कश्मीर कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू
- रंजीत रंजन कुमार, जैव रसायन संभाग भाकृअनु. संस्थान, नई दिल्ली
14 दिसम्बर 2022, टमाटर : रोग एवं नियंत्रण – टमाटर के कोमल एवं मुलायम तना होने के कारण इसमें रोग जल्दी लगते हैं। वहीं नमी युक्त वातावरण एवं उर्वरकों का आवश्यकता से अधिक प्रयोग भी टमाटर की फसल में रोगों के लिए जिम्मेदार है। जिसके कारण इसके अलावा बेमौसमी संकर किस्मों का प्रयोग भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में टमाटर की फसल में रोग नियंत्रण के उपाय करना बेहद जरूरी हो जाता है ताकि उत्पादन प्रभावित न हो। किसान अगर समय से रोग को पहचान कर उसकी रोकथाम कर लेते हंै तो अपनी फसल का नुकसान होने से बचा सकते हैं, साथ ही साथ गुणवत्तापूर्ण उत्पादन कर सकते हैं। विभिन्न प्रकार के रोग टमाटर में लगते हंै जो अग्रलिखित हैं-
आद्र्र गलन
टमाटर में यह रोग फफूंद राइजोक्टोनिया एवं फाइोप्थोरा कवकों के मिले जुले संक्रमण से होता है। इससे प्रभावित पौधे का निचला तना गल जाता है। शुरुआत में बीमारी के लक्षण कुछ जगहों में दिखाई पड़ते हैं और 2 से 3 दिनों में पूरी नर्सरी में फैल जाते हैं। नर्सरी भूरे और सूखे धब्बों के साथ पीली-हरी दिखाई पड़ती है। पौधे अचानक ही सूख जाते हैं तथा जमीन पर गिर कर सड़ जाते हैं।
नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए टमाटर के बीजों को थायरम या केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके बोयें। इसके अलावा रोगी पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें तथा खेत में जल निकास की उत्तम व्यवस्था रखें।
अगेती झुलसा रोग
टमाटर फसल में यह रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक कवक से होता है। प्रभावित पौधों की पत्तियों पर छोटे काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं, जो बड़े होकर गोल छल्लेनुमा धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं। फल पर धब्बे शुष्क धंसे हुए और गहरे होते हैं। इन धब्बों के बढऩे के साथ ही पत्तियां गिर जाती हैं। यह रोग पौधे के सभी भागों में लग सकता है।
नियंत्रण: इस रोग से रोगग्रस्त पौधों को जलाकर नष्ट कर दें ताकि अन्य पौधों में यह रोग नहीं फैल पाए। टमाटर के बीजों को बोने से पहले केप्टान 75 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें। वहीं फसल में रोग के लक्षण दिखाई दें तो मैंकोजेब 75 डब्ल्यू पी का 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से 10 दिन के अंतराल पर छिडक़ाव करें। इसके अलावा फसल चक्र अपनाकर भी इस रोग को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
पिछेती झुलसा रोग
टमाटर फसल में यह रोग फाइरोप्थोरा इनफेस्टेस्स नामक कवक से होता है। शुरुआत में पत्तियों पर जलीय अनियमित आकार के धब्बे बनते हंै, जो बाद में भूरे से काले धब्बों में बदल जाते हंै। टमाटर में यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में लग सकता है। पौधे के किसी भी भाग पर भूरे बैंगनी या काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हंै। वातावरण में लगातार नमी रहने पर इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है। फलों के डंठल भी ग्रसित हो कर काले रंग के हो जाते हैं।
नियंत्रण: पिछेती झुलसा रोग से फसल को बचाने के लिए स्वस्थ रोगरहित पौध का उपयोग करें। रोग प्रभावित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें। इसके अलावा प्रभावित फसल पर मेटालेक्सिल 4 प्रतिशत+मैंकाजेब 64 प्रतिशत डब्ल्यू पी 25 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिडक़ाव करें।
उकटा रोग
टमाटर में यह रोग फ्यूजियम ऑक्सीस्पोरम लाइकोपर्सिकी नामक कवक से होता है। इसमें रोगी पौधे की निचली पत्तियां पीली पडकऱ झुलस जाती हंै। पौधे मुरझा जाते हैं। पौधों की बढ़वार रूक जाती हैं व फल भी नहीं लगते हैं। मुख्य तने के संवहन तंतु के साथ भूरी धारियां देखी जा सकती हैं।
नियंत्रण: बीजों को बोने से पहले बेसिलम सबटिलीस या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। इसके अलावा उक्त बायो एजेन्ट में 2.5 किलोग्राम को 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टर बुवाई पूर्व भूमि में मिलाएं। वहीं पौध रोपण से 30 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 25 प्रतिशत + मैंकोजेब 50 प्रतिशत डब्ल्यू एस. 0.1 प्रतिशत की दर से खेत में छिडक़ाव करें।
मूल ग्रन्थि रोग
टमाटर में यह रोग सूत्रकृमि मेलिडोगायनी जेवेनिका से होता है। इसमें पौधों की जड़ों में गांठें बन जाती हंै। भूमि में सूत्रकृमि की संख्या अधिक होने पर पौधों के ऊपरी भाग पर लक्षण दिखाई देते हंै, जैसे- पीलापन, मुरझाना और बढ़वार रूकना आदि।
नियंत्रण : इसके रोग से टमाटर की फसल को बचाने के लिए मई से जून में भूमि की गहरी जुताई करें और खेत को पारदर्शी पॉलीथिन से ढक दें। रोग अवरोधी किस्मों का चयन करें। ट्रेप फसल के रूप में सनई की बुवाई करें। खेत में गैंदा फूल की फसल 2:1 में बोएं। इसके अलावा पौध रोपण से पूर्व पौध को कार्बोसल्फॉन 25 ईसी के 500 पीपीएम के घोल में डुबोकर लगाएं। वहीं कार्बोसल्फान 3 जी या फोरेट 10 जी 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर पौध रोपण के साथ तथा 30 से 40 दिन बाद प्रयोग करें।
उपरोक्त प्रकार के रोगों को अगर समय से पहचान कर उचित रोकथाम उपाय कर दिया जाय तो टमाटर की गुणवकत्ता युक्त अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण खबर: स्वाईल हेल्थ कार्ड के आधार पर ही फर्टिलाइजर डालें