प्रदेश की उपज पहचान बनेगी
(प्रकाश दुबे – 9826210198) ,
भोपाल । सीहोर का शरबती गेहूं सम्पूर्ण भारत में नाम से विक्रय होता है। इसका फायदा सम्पूर्ण म.प्र. में उत्पादित गेहूं फसल को मिलता है। गेहूं एम.पी. बेस्ट के नाम से सम्पूर्ण भारत में अच्छे दाम पर विक्रय होता है। किसान को भले ही प्रदेश में गेहूं का अच्छा दाम नहीं मिले किन्तु प्रदेश के व्यापारी सम्पूर्ण भारत में गेहूं विक्रय कर अच्छा मुनाफा कमाते हैं। किसान एवं उपभोक्ता के बीच दाम के इतने बड़े अंतर का लाभ व्यापारी उठाते हैं। इसी अंतर को दूर करने के लिए उत्पादक एवं उपभोक्ता का आपस में परिचय होना भी एक कदम होगा। और इसकी शुरूआत गत दिवस भोपाल एवं इन्दौर में जिला नरसिंहपुर कृषि विभाग द्वारा 6 दिवसीय गुड़ एवं अरहर मेला आयोजित कर की गई। जिले में 3 लाख 10 हजार हेक्टेयर में फसल लगाई जाती है।
अरहर 45 हजार हेक्टेयर, गन्ना 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लगाया जाता है। जिले में 5 हजार गुड़ की भट्टिया हैं। करेली का गुड़ एवं गाडरवारा की तुअर दाल ब्रांड जिले की पहचान है। मेले में भी दोनों ब्रांडों का जबरदस्त विक्रय हुआ। 6 दिवसीय मेले में शहरवासियों ने जमकर खरीदारी की एवं भविष्य में यह उत्पाद कहां मिलेंगे की भी जानकारी ली। लगभग 25 कृषकों (स्टॉल) जिनमें गुड़, अरहर, चावल उत्पादकों ने हिस्सा लिया।
आयोजन के सूत्रधार श्री त्रिपाठी – मेले में किसानों को भी सीधे उपभोक्ता से जुड़कर और अधिक उत्पाद विक्रय का ज्ञान मिला। मेले के सूत्रधार उपसंचालक कृषि नरसिंहपुर श्री राजेश त्रिपाठी ने कम समय की तैयारी में बड़ा आयोजन कर प्रदेश में विभिन्न फसलों की अपनी अलग पहचान बनाने की अलख जगा दी है। एक जिला एक फसल, आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत प्रदेश में चावल, गेहूं, चना, अरहर, ज्वार, रागी, कोदो, कुटकी, सरसों, मूंगफली जैसी कई खरीफ एवं रबी फसलों को जिले की पहचान बनाकर उसको गेहूं की तरह सम्पूर्ण भारत में विक्रय किया जा सकता है। 1 सप्ताह की तैयारी में नरसिंहपुर जिले से भोपाल आकर मेले का आयोजन करना उपसंचालक कृषि नरसिंहपुर श्री राजेश त्रिपाठी के लिए चुनौती से कम ना था किन्तु मेहनत कठिन परिश्रम से इस आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नरसिंहपुर जिले में 1 लाख किसान गन्ने की खेती करते हैं जिसमें से 50 फीसदी गुड़ बनाकर औने-पौने दामों पर विक्रय करते हैं। कृषि विभाग ने कृषकों को संगठित कर गुड़ विक्रय की गुणवत्ता एवं पैकेजिंग सुधारी जिससे कुछ कृषकों को अच्छा दाम मिलता है। श्री त्रिपाठी बताते हैं कि विभाग के प्रयासों से आयोजित इस आयोजन से और अधिक पहचान मिलेगी। गन्ने की प्रजाति, गुड़ निर्माण, पैकिंग, जैविक खेती पंजीयन आदि कार्यों से करेली का गुड़ एवं गाडरवारा की दाल देश में विशिष्ट पहचान बनाएगी।
गन्ना अंतरवर्तीय में लगाते हैं
ग्राम चिरचिटा जिला नरसिंहपुर के कृषक श्री कृष्णपाल सिंह लोधी 17 पशुओं के गौमूत्र- गोबर का उपयोग अपनी सभी भूमि पर करते हैं। गन्ना फसल अंतरवर्तीय तरीके से लगाते हैं। इसके अलावा जैविक तरीके से उत्पादित फसलों को अच्छे दाम पर विक्रय करते हैं। श्री लोधी गेहूं, चना, मूंग, उड़द, अरहर, गन्ना आदि फसलों का उत्पादन करते हैं। भोपाल गुड़ मेले में इनका गुड़ विक्रय हुआ। श्री लोधी जैविक तरीके से खेती के पुरस्कार भी जीत चुके हैं।
तुअर दाल से पहचान – गाडरवारा जिला नरसिंहपुर की तुअर (अरहर) दाल खेत में तो तैयार होने में 160 दिन लेती है। किन्तु किचिन में मिनटों में पक जाती है। यह कहना है दाल उत्पादक श्री नर्मदा प्रसाद दुबे का। वह नर्मदा स्वसहायता समूह चलाते हैं। श्री दुबे बताते हैं कि प्रति एकड़ 8 से 10 क्विंटल बीज बोने में लगता है जबकि 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन होता है। दाल स्वादिष्ट होने के साथ शीघ्र तैयार हो जाना विशेषता है। ग्राम खमरिया झांसीघाट में समूह के कई कृषक दाल का उत्पादन करते हैं जिसको गाडरवारा की दाल से पहचान मिलती है।
पूर्णत: जैविक तरीका गुड़ निर्माण में
कुशल मंगल जैविक कृषि फार्म ग्राम करताज जिला नरसिंहपुर के युवा कृषक श्री राकेश दुबे कई वर्षों से गुड़ निर्माण कर रहे हैं। पहले रसायनिक केमिकल्स से खेती करने पर प्रति एकड़ एक हजार क्विंटल गन्ना उत्पादित करते थे किन्तु कुछ वर्षों से पूर्णत: जैविक खेती कर गन्ना लगाते हैं जिसका 450 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन होता है। स्वयं गुड़ का निर्माण कर प्रदेश के कई स्थानों पर भेजते हैं। इस आयोजन से श्री दुबे उत्साहित हैं कि पहली बार शासन ने इस ओर भी ध्यान दिया।
बालाघाट का चिन्नौर एवं विष्णु भोग
मेले में बालाघाट जिले के भी दो स्टॉल थे। धान उत्पादन में अग्रणी जिला बालाघाट में धान की कई पुरानी किस्में हैं जिनसे विष्णुभोग एवं चिन्नौर प्रमुख है। दोनों किस्मों में रसायन का प्रयोग नहीं किया जा सकता। स्वाद में मशहूर दोनों ब्रांडों का स्टॉल गुड़ मेले में आकर्षण का केन्द्र रहा। कृषक श्री गोवर्धन पटले बताते हैं कि 1 एकड़ में 10 क्विंटल उत्पादन होता है। सुगंधित एवं स्वाद पौष्टिक होने से जानकर ही प्रयोग करते हैं। यहां ब्लेक राईस भी कृषक लगाते हैं जो कि असम की प्रजाति का है। यह एक एकड़ में 7 क्विंटल तक होता है। जिले के उपसंचालक कृषि श्री सी.आर. गौर बताते हैं कि दोनों प्रजातियों के उत्पादन एवं पहचान हेतु विभाग प्रयास कर रहा है |
चारा अभाव के समय पशुओं का आहार