सोयाबीन कृषक इस सप्ताह यह सावधानियां रखें
13 सितम्बर 2022, इंदौर: सोयाबीन कृषक इस सप्ताह यह सावधानियां रखें – भा.कृ.अनु.प.-भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इंदौर ने इस सप्ताह (12 से 18 सितंबर ) के लिए सोयाबीन कृषकों को निम्न सावधानियां रखने की उपयोगी सलाह दी है, जो इस प्रकार हैं –
ऐसे क्षेत्र जहाँ सोयाबीन की फसल जून माह के दूसरे सप्ताह में बोई गई थी, वर्तमान में पकने की स्थिति में हैं जबकि जुलाईमाह के दौरान बोई गई फसल इस समय दाने भरने की स्थिति में हैं. ऐसे में कुछ क्षेत्रों में बारिश होने या उसका पूर्वानुमानकिया गया है। अतः सलाह है कि फसल की स्थिति तथा का मौसम को ध्यान में रख कर ही प्रबंधन के उपाय अपनाएं।
1 – जिन क्षेत्रों में लगातार बारिश हो रही है, कृपया अपने खेत से अतिरिक्त जल की निकासी हेतु समुचित व्यवस्था करें एवं जल भराव की स्थिति से होने वाले नुकसान से फसल को बचाएं।
2 -जहाँ पर सोयाबीन की शीघ्र पकने वाली सोयाबीन की किस्में जे .एस. 95-60,जे .एस. 20-34, एन.आर.सी. 130, एन.आर.सी 138,जे .एस. 93-05 आदि ) उगाई गई है, सलाह है कि 90% फलियों का रंग पीला हो जाए , फसल की कटाई कर सकते हैं। इससे बीज के अंकुरण में विपरीत प्रभाव नहीं होता।
3 -सोयाबीन की फलियों में दाने भरने या परिपक्वता की अवस्था में फसल पर होनेवाली लगातार बारिश से सोयाबीन की गुणवत्ता में कमी आ सकती है या फलियों के दाने अंकुरित होने की भी सम्भावना हो सकती है। अतः सलाह है कि उचित समय पर फसल की कटाई करें , जिससे फलियों के चटकने से होने वाले नुकसान या फलियों के अंकुरित होने से बीज की गुणवत्ता में आने वाली कमी से बचा जा सके।
4 -सोयाबीन की कटी हुई फसल को धूप में सुखाने के पश्चात गहाई करें। तुरंत गहाई करना संभव नहीं होने की स्थिति में बारिश से बचाने हेतु फसल को सुरक्षित स्थान पर इकठ्ठा करें।
कीट/रोग नियंत्रण के उपाय –
1 – लगभग 60-75 दिन की सोयाबीन फसल में दूसरी पीढ़ी का प्रकोप ऊपरी पत्तियों में देखा जा रहा है। इस सम्बन्ध में सलाह है कि फसल के इस पड़ाव में चक्र भृंग से बहुत अधिक नुकसान होने की सम्भावना कम ही होती है। इसके नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का छिड़काव आर्थिक रूप से लाभकारी नहीं होता , अतः इससे घबराये नहीं और पौधे के ग्रसित भाग को तोड़कर नष्ट करें।
2 – जहाँ पर सोयाबीन की फसल में भरना प्रारंभ हुआ है, चने की इल्ली द्वारा फलियों से छोटे दाने खाने की सम्भावना को देखते हुए सलाह है कि फसल पर इंडोक्साकार्ब 15.8ई.सी. (333 मि .ली/हे) या टेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस.सी. (250-300 मि ली/हे) या इमामेक्टीन बेन्जोएट ( 425 मि ली /है) या लैम्बडा सायहेलोथ्रिन 04.90 सी. एस. (300 मि ली/हे) का छिड़काव करें।
3 -बीजोत्पादन कार्यक्रम वाले खेत में सलाह है कि अनुशंसित फफूंदनाशकों टेबूकोनाझोल 25.9% ई.सी . ( 625 मि .ली/.हे). या टेबूकोनाझोल़+सल्फर (1.25 कि .ग्रा/हे.) या पायरोक्लोस्ट्रोबीन %20 डब्लल्यू.जी. (375-500 ग्रा/.हे.) या पायरोक्लोस्ट्रोबीन + इपिक्साकोनाजोल 50g/l एस.ई . ( 750 मि .ली/.हे.) या फ्लुक्सापय्रोक्साड+ पायरोक्लोस्ट्रोबीन ( 300ग्रा/.हे) का छि डकाव करें। इससे फफूंद जनित रोगों (रायजोक्टोनिया एरिअल ब्लाइट तथा एन्थ्राक्नोज ) का नियंत्रण भी हो जायेगा।
4 – पीला मोज़ेक रोग के नियंत्रण हेतु सलाह है कि तत्काल रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर निष्कासित करें तथा इन रोगों को फैलाने वाले वाहक सफ़ेद मक्खी की रोकथाम हेतु पूर्व मिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम + लैम्ब्लडा सायहेलो थ्रिन (125 मि ली/हे) या बीटासायफ्लुसिन+इमिडाक्लोप्रिड ( 350 मि ली/.हे) का छिड़काव करें । इनके छिड़काव से तना मक्खी का भी नियंत्रण किया जा सकता है। यह भी सलाह है कि सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण हेतु कृषकगण अपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाएं।
फसल सुरक्षा के अन्य उपाय
1.खेत के विभिन्न स्थानों पर निगरानी करते हुए यदि आपको कोई ऐसा पौधा मिले जिस पर झुण्ड में अंडे या इल्लियां हों, ऐसे पौधों को खेत से उखाड़कर निष्कासित करें।
2. सोयाबीन की फसल में पक्षियों की बैठने हेतु टी आकार के बर्ड -पर्चेस लगाएं। इससे कीट-भक्षी पक्षियों द्वारा भी इल्लियों की संख्या कम करने में सहायता मिलती है।
3. कीट या रोग नियंत्रण के लिए केवल उन्हीं रसायनों का प्रयोग करें जो सोयाबीन की फसल में अनुशंसित हों।
4. कीटनाशक या फफूंदनाशक के छिड़काव के लिए पानी की अनुशंसित मात्रा का उपयोग करें (नेप्सेक स्प्रेयर से 450 लीटर/हे या पॉवर स्प्रेयर से 120 लीटर/हे न्यूनतम)।
5. किसी भी प्रकार का कृषि -आदान क्रय करते समय दुकानदार से हमेशा पक्का बिल लें, जिस पर बैच नंबर एवं एक्सपायरी दिनांक स्पष्ट लिखी हो।
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