सोपा का आह्वान -‘सोया सीड क्रांति’ के जरिए भारत को आत्मनिर्भर बनाएं
09 अक्टूबर 2025, इंदौर: सोपा का आह्वान -‘सोया सीड क्रांति’ के जरिए भारत को आत्मनिर्भर बनाएं – भारत को खाद्य तेल और प्रोटीन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) ने देशव्यापी “सोया सीड रेवोल्यूशन , शुरू करने का आह्वान किया है। इस पहल के तहत, उच्च उत्पादन क्षमता वाली, जलवायु-सहिष्णु सोयाबीन किस्मों का बड़े पैमाने पर उत्पादन और वितरण किया जाएगा, ताकि देश के प्रत्येक किसान तक बेहतर बीज समयबद्ध तरीके से पहुँच सकें।
एसोसिएशन के चेयरमैन डॉ. डेविश जैन ने अंतर्राष्ट्रीय सोया कॉन्क्लेव 2025 में मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि भारत की तेल और प्रोटीन आत्मनिर्भरता की नींव एक ही चीज पर टिकती है “बीज क्रांति”। उन्होंने कहा, “सोयाबीन केवल एक फसल नहीं, बल्कि किसानों की आशा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का इंजन और भारत की पोषण शक्ति है। समय आ गया है कि हम एक ऐसी बीज क्रांति को प्रज्वलित करें, जो उत्पादकता को दोगुना करें, किसानों का आत्मविश्वास लौटाए और देश को तेल व प्रोटीन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाए।”
डॉ. जैन ने बताया कि वर्तमान में भारत की सोया उत्पादकता 1.1 टन प्रति हेक्टेयर है, जो वैश्विक औसत 2.6 टन प्रति हेक्टेयर से काफी कम है। सोपा का लक्ष्य है कि अगले पाँच वर्षों में उत्पादकता को 2 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुँचाया जाए और कम से कम 70% किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध कराए जाएं। डॉ. जैन ने कहा, “यदि हम प्रति हेक्टेयर सिर्फ 500 किलोग्राम की बढ़ोतरी भी कर लें, तो भारत अरबों रुपये के तेल आयात बचा सकता है और किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।” डॉ. जैन ने कहा “सोया सीड रेवोल्यूशन सिर्फ एक कृषि कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह भारत की पोषण, कृषि और आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में निर्णायक कदम है। हमें अब बीज से लेकर थाली तक हर स्तर पर परिवर्तन लाना होगा।” भारत अपनी कुल खाद्य तेल आवश्यकता का 60% से अधिक आयात करता है, जिस पर प्रतिवर्ष लगभग ₹1.7 लाख करोड़ विदेशी मुद्रा खर्च होती है।
डॉ. जैन ने कहा कि इस निर्भरता को कम करने का सबसे टिकाऊ उपाय घरेलू उत्पादन बढ़ाना है।उन्होंने कहा, “सही मायने में आत्मनिर्भर भारत का यथार्थ तभी संभव है, जब हम आयल सीड्स और प्रोटीन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें। उच्च उत्पादकता और वैल्यू एडिशन के जरिए हम न केवल अरबों रुपये की बचत कर सकते हैं, बल्कि लाखों ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी दे सकते हैं।” सोयाबीन को “शक्ति का अन्न” बताते हुए डॉ. जैन ने सरकार और खाद्य उद्योग से अपील की कि सोया फोर्टिफाइड आटा, सोया दूध, टोफू, और सोया स्नैक्स को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS), मिड-डे मील और पोषण अभियानों में शामिल किया जाए। उन्होंने कहा कि भारत में 60% से अधिक लोग अनुशंसित मात्रा से कम प्रोटीन का सेवन करते हैं, जबकि सोया प्रोटीन दालों से तीन गुना सस्ता और कहीं अधिक पौष्टिक विकल्प है।
उन्होंने सुझाव दिया कि “यदि हम अपने दैनिक भोजन में सोया को शामिल करें, तो कुपोषण और ‘हिडन हंगर’ से प्रभावी रूप से लड़ सकते हैं।”इस दिशा में जागरूकता और नीति निर्माण के प्रतीक के रूप में, 2026 को ‘सोयाबीन वर्ष’ घोषित करने की उन्होंने जोरदार अपील की।
डॉ. जैन ने कहा कि सोयामील भारत के ₹1.2 लाख करोड़ मूल्य के पोल्ट्री, मत्स्य और पशुपालन उद्योग की आधारशिला है। उन्होंने सस्ते विकल्पों जैसे DDGS के बढ़ते प्रयोग पर चिंता जताई, जो गुणवत्ता और पोषण को नुकसान पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा, “स्वस्थ, सुरक्षित और टिकाऊ पशु प्रोटीन उत्पादन के लिए सोयामील का कोई विकल्प नहीं है। सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए ,जो इसके घरेलू उपयोग और निर्यात को प्रोत्साहित करें।” भारत नॉन-जीएम (Non-GMO) सोया उत्पादों के लिए विश्व भर में एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में पहचाना जाता है। डॉ. जैन ने कहा कि वैश्विक बाजार में नॉन-जीएम उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है और भारत को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने कहा, “दुनिया भारतीय सोया पर भरोसा करती है। हमें इस भरोसे को पूंजी में बदलना है। नॉन-जीएम सोयाबीन, सोयामील और सोया फूड्स के निर्यात को बढ़ाकर।” सोपा ने सरकार से पाँच वर्षीय लक्ष्य तय करते हुए सोया उत्पादकता वर्तमान में 1.1 से बढ़ाकर 2 टन प्रति हेक्टेयर का आह्वान किया । तीन वर्षों में 70% किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध कराया जाए, उत्पादकता तथा प्रशंसकरण क्षमता बढ़ा कर खाद्य तेल आयात में 25% की कमी की जाए। 2030 तक देश में सोया फूड्स की खपत दोगुनी की जाए तथा नॉन-जीएम सोया और सोयामील के निर्यात में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी बढ़ाई जाए।
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