State News (राज्य कृषि समाचार)

एसईए का प्रस्ताव किसान विरोधी-सोपा

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सोयाबीन की खेती को लेकर सोपा और एसईए आमने-सामने

8 मार्च 2022, इंदौर ।  एसईए का प्रस्ताव किसान विरोधी-सोपा – सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के भारत में सोयाबीन की खेती को रोकने और अन्य फसलों की बुवाई के लिए देश में सोयाबीन की खेती के तहत 12 मिलियन हेक्टेयर भूमि का उपयोग करने के सुझाव को किसान विरोधी और उद्योग विरोधी बताते हुए इसकी कड़ी निंदा की है। जबकि दूसरी ओर सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने सोपा की गलत प्रस्तुति पर निराशा व्यक्त की है।

सोयाबीन की खेती अपराधिक बर्बादी

एसईए के अध्यक्ष ने गत दिनों केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के साथ खाद्य तेल उद्योग की एक आभासी बैठक में भारत में सोयाबीन के लिए 1.2 करोड़ हेक्टेयर भूमि को एक आपराधिक बर्बादी बताते हुए कहा था कि सोयाबीन में केवल 18 प्रतिशत तेल है और इसकी उत्पादकता भी कम है, इसलिए इस भूमि का उपयोग अन्य फसलों के लिए किया जाना चाहिए। यही नहीं एसईए अध्यक्ष ने यह भी कहा था कि भारत में प्रोटीन की कमी नहीं है। उन्होंने सरकार से जीएम सोयामील के आयात की अनुमति देने का अनुरोध भी किया था ।

सोपा ने जताई आपत्ति

एसईए के इस सुझाव पर सोपा के अध्यक्ष डॉ. डेविश जैन ने कड़ी आपत्ति जताते हुए एसईए की मांग को खतरनाक, उद्योग विरोधी, किसान विरोधी और देश के हित के खिलाफ बताया । डॉ. जैन ने कहा, ‘सोयाबीन की खेती बंद कर दी गई और जीएम सोयामील के आयात की अनुमति दी गई तो पूरे सोया उद्योग का सफाया हो जाएगा और लगभग 60 लाख किसान अपनी पसंदीदा खरीफ फसल खो देंगे, खासकर मध्य भारत में, जहां सोयाबीन के कुछ ही विकल्प हैं। यह न केवल खाद्य तेलों के आयात पर भारत की निर्भरता को और बढ़ाएगा बल्कि भारत को आवश्यक प्रोटीन की जरूरतों के लिए आयात पर भी निर्भर रहना पड़ेगा। इस तथ्य को देखते हुए कि भारतीय आबादी का एक बड़ा वर्ग पोषण असंतुलन के कारण कुपोषण के खतरे से पीडि़त है, सरकार को सोयाबीन की खेती को रोकने की सलाह देना भी लोगों के स्वास्थ्य को कमजोर करने के समान होगा।’

सोपा के अनुसार भारतीय किसान एक वर्ष में कम से कम दो फसलें सोयाबीन के साथ कम अवधि की औसत 90-95 दिनों की खरीफ में पकने वाली किस्म के रूप में लेते हैं और ज्यादातर रबी मौसम में गेहूं या चना लेते हैं। कुछ किसान बीच-बीच में तीसरी बीच वाली सब्जी की खेती भी करते हैं।

सदस्यों ने की निंदा

लैटिन और उत्तरी अमेरिका में, आम तौर पर 135-140 दिनों की परिपक्वता वाली एक लंबी अवधि की सोयाबीन की फसल एक वर्ष में बोई जाती है। जबकि भारतीय किसान पश्चिमी दुनिया की तुलना में उपलब्ध संसाधनों में भारी अंतर के बावजूद एक वर्ष में बराबर मात्रा में उत्पादन करते हैं। ऐसे में एसईए का यह प्रस्ताव सोयाबीन की खेती को हतोत्साहित कर भारतीय लोगों को प्राकृतिक शुद्धता के साथ महत्वपूर्ण प्रोटीन के सबसे किफायती स्रोत से वंचित करने जैसा है जो मानव पोषण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।एसईए अध्यक्ष के इस प्रस्ताव की सोया प्रोसेसर के कई सदस्यों ने भी निंदा की है।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन का पक्ष

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री अतुल चतुर्वेदी ने अपना पक्ष रखते हुए कृषक जगत को बताया कि एक जिम्मेदार संघ के रूप में सोपा को अपने सदस्यों से ऐसी बात नहीं करनी चाहिए / गलत तरीके से प्रस्तुत नहीं करना चाहिए और खाद्य तेल उद्योग के भीतर दरार पैदा नहीं करनी चाहिए। यह लंबे समय में किसी की मदद नहीं करेगा और प्रतिकूल होगा। सोपा द्वारा की जा रही स्पष्ट रूप से गलत प्रस्तुति पर हम थोड़ा निराश हैं।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने कभी भी देश में सोया की खेती के खिलाफ कभी बात नहीं की है। हमने कहा था कि 12 मिलियन हेक्टेयर पर सोया का कब्जा है और 10 मिलियन टन का उत्पादन देश या उद्योग की मदद नहीं कर रहा है और उत्पादकता बढ़ाने और इसे न्यूनतम 1.5 टन प्रति हेक्टेयर तक ले जाने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। एसईए सॉल्वेंट एक्सट्रैक्ट इंडस्ट्री का शीर्ष निकाय है और सोयाबीन प्रोसेसर एसईए के सदस्य हैं। उनकी रुचि और प्रगति हमारे दिल में है।

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