नदी जल प्रदुषण: परिचय, कारण एवं श्रोत तथा इसके दुषप्रभाव
लेखक: धीरज कुमार1*, जी. वी. प्रजापति2, एच. वी. परमार1, एच. डी. रांक1, ऋतु डोगरा3, शोध छात्र, मृदा एवं जल संरक्षण विभाग, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, जूनागढ़ कृषि विश्वविध्यालय, जूनागढ़, गुजरात, भारत-362001, सह – प्राध्यापक, अक्षय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, जूनागढ़ कृषि विश्वविध्यालय, जूनागढ़, गुजरात, भारत-362001, प्राध्यापक, अक्षय ऊर्जा अभियांत्रिकी विभाग, कृषि अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, पंजाब कृषि विश्वविध्यालय, लुधियाना, पंजाब, भारत-141004, ईमेल आईडी- dhirajsonkar.nihr@gmail.com, ओआरसीआईडी- 0000-0002-6178-7295
26 अगस्त 2024,भोपाल: नदी जल प्रदुषण: परिचय, कारण एवं श्रोत तथा इसके दुषप्रभाव –
परिचय:
नदी जल प्रदूषण आज एक वैश्विक समस्या बन चुकी है। नदियाँ जीवनदायिनी होती हैं, लेकिन आजकल इनके जल में बढ़ते प्रदूषण ने न केवल पर्यावरणीय संकट उत्पन्न किया है, बल्कि मानव जीवन को भी प्रभावित किया है। इस लेख में नदी जल प्रदूषण के कारण, प्रभाव और इसे रोकने के उपायों पर विस्तार से चर्चा किया गया है, साथ ही कुछ चित्रों के माध्यम से स्थिति की वास्तविकता को भी समझाने का प्रयाश किया गया है। नदी जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जो औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि रसायन, और घरेलू गंदगी के कारण होती है. इस प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न उपायों की आवश्यकता है, जैसे कि अपशिष्ट प्रबंधन, जल पुनर्चक्रण, और जन जागरूकता कार्यक्रम. भारत में, नदी जल प्रदूषण को रोकने के लिए कई सरकारी नीतियाँ और कानून बनाए गए हैं, जैसे जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, जिनका प्रभावी कार्यान्वयन आवश्यक है. प्रदूषण नियंत्रण के लिए बायोरेमेडिएशन और जल उपचार संयंत्र जैसी तकनीकों का विकास किया गया है, जो जल की गुणवत्ता को सुधारने में सहायक हैं. इसके अलावा, वैज्ञानिक अनुसंधान प्रदूषण के कारणों और प्रभावों को समझने में मदद करता है, जिससे नए समाधान और तकनीकों का विकास संभव हो पाता है. इन सभी उपायों और तकनीकों के समुचित कार्यान्वयन से नदियों की स्वच्छता और पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में मदद मिल सकती है, जिससे जल प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सकेगा।
नदी जल प्रदूषण क्या है?
नदी जल प्रदूषण का अर्थ है नदी के पानी में अवांछित और हानिकारक तत्वों का मिलना, जो पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं और इसे पीने, सिंचाई, औद्योगिक उपयोग और वन्यजीवों के लिए अनुपयुक्त बना देते हैं। नदी जल प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है, जो न केवल जल जीवन को खतरे में डालती है, बल्कि मानव स्वास्थ्य, कृषि, और उद्योगों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। नदी जल प्रदूषण तब होता है जब नदियों में हानिकारक रसायन, कचरा और अन्य प्रदूषक तत्वो को सीधे बहते हुये नालो तथा धारा मे डाल दिया जाता हैं। इसका प्रभाव नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है और जल की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करता है।
सतही जल प्रदूषण
पृथ्वी के लगभग कुल 70 प्रतिशत भाग को आछांदित करने वाला सतही जल ही हमारे महासागरों, झीलों, नदियों और विश्व मानचित्र पर अन्य सभी भागो को जल आपूर्ति कराता है। लेकिन अब पानी का एक बड़ा हिस्सा खतरे में है। अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के राष्ट्रीय जल गुणवत्ता सर्वेक्षणों के अनुसार, धरती पर मौजूद लगभग आधी नदियाँ और धाराएँ और एक तिहाई से अधिक झीलें प्रदूषित चुकी हैं एवं तैरने, मछली पकड़ने और पीने की दृष्टिकोण से अब अनुपयुक्त हो गयी हैं। पोषक तत्व प्रदूषण, जिसमें नाइट्रेट और फॉस्फेट शामिल हैं, इन मीठे पानी के स्रोतों में संदूषण का प्रमुख प्रकार है। जबकि पौधों और जानवरों को वानस्पतिक एवं शारीरिक बृद्धि मे ईन पोषक तत्वो का अत्यधिक महत्व है, इन खेत के कचरे और उर्वरको के अपवाह के कारण एक प्रमुख प्रदूषक बन गए हैं।
नदी जल प्रदूषण के कारण:
1. औद्योगिक कचरा: औद्योगिक कचरा नदियों में प्रवाहित होने के कारण जल प्रदूषण होता है। फैक्ट्रियों और उद्योगों से निकलने वाले रसायन और अपशिष्ट नदियों में मिल जाते हैं, जिनमें भारी धातुएं और विषाक्त रसायन शामिल होते हैं। ये तत्व नदी के जल को गंदा कर देते हैं।
2. घरेलू सीवेज: घरेलू सीवेज का नदी में प्रवाह प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू सीवेज और कचरे का नदी में प्रवाह जल प्रदूषण का प्रमुख कारण है। इसमें बायो-डिग्रेडेबल और नॉन-बायो-डिग्रेडेबल कचरा शामिल होता है।
3. कृषि रसायन: कृषि रसायन और कीटनाशक बरसात के पानी के साथ नदी में मिल जाते हैं। कृषि में उपयोग होने वाले कीटनाशक और उर्वरक बरसात के पानी के साथ नदी में मिल जाते हैं, जिससे जल प्रदूषण होता है और नदी के पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
4. खनन और निर्माण: खनन और निर्माण कार्यों के दौरान नदी में मिट्टी और अन्य सामग्री प्रवाहित होती है। खनन और निर्माण कार्यों के दौरान मिट्टी और अन्य सामग्री नदी में प्रवाहित हो जाती है, जिससे नदी की जल गुणवत्ता और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
5. प्लास्टिक और अन्य कचरा: प्लास्टिक की थैलियां और अन्य कचरा नदी में प्रदूषण का कारण बनते हैं। प्लास्टिक की थैलियां, बोतलें और अन्य कचरा नदी में फेंक दिए जाते हैं, जो जल जीवन के लिए हानिकारक होते हैं और नदी के जल को गंदा कर देते हैं।
नदी जल प्रदूषण के प्रभाव:
1. स्वास्थ्य पर प्रभाव: प्रदूषित न दी के पानी से स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। प्रदूषित नदी का पानी पीने से लोगों में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शंस, हैपेटाइटिस और अन्य संक्रामक बीमारियाँ फैल सकती हैं। विषैले तत्व मानव स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
2. पर्यावरणीय प्रभाव: प्रदूषित जल से नदी की जैव विविधता प्रभावित होती है। प्रदूषित नदी का जल मछलियों, पौधों और अन्य जलीय जीवन के लिए हानिकारक होता है। इससे जैव विविधता में कमी आती है और नदी का पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है।
3. आर्थिक प्रभाव: मत्स्य पालन और कृषि पर प्रदूषण का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रदूषित जल की वजह से मत्स्य पालन और कृषि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। साफ पानी की कमी के कारण जल स्रोतों पर दबाव बढ़ जाता है और पानी की कीमतें भी बढ़ जाती हैं।
4. सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव: नदियाँ सांस्कृतिक गतिविधियों का हिस्सा होती हैं। नदियाँ कई सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों का हिस्सा होती हैं। इनका प्रदूषण धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है।
नदी जल प्रदूषण को रोकने के उपाय:
1. सख्त कानून और प्रवर्तन: औद्योगिक कचरे और घरेलू सीवेज के प्रबंधन के लिए सख्त कानून और नियम लागू करने चाहिए। सरकारों को औद्योगिक कचरे और घरेलू सीवेज के प्रबंधन के लिए सख्त कानून और नियम बनाना चाहिए और उनका पालन सुनिश्चित करना चाहिए। प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर कड़ी निगरानी और दंडात्मक उपाय किए जाने चाहिए।
2. जन जागरूकता: जल प्रदूषण के खतरे और इससे बचाव के उपायों के बारे में जन जागरूकता आवश्यक है। लोगों को जल प्रदूषण के खतरे और इससे बचाव के उपायों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में शिक्षा और अभियान चलाए जाने चाहिए।
3. कृषि प्रथाओं में सुधार: जैविक खेती को बढ़ावा देना और रसायनों के उपयोग को नियंत्रित करना चाहिए। कृषि में उपयोग होने वाले रसायनों के चयन और उपयोग में सतर्कता बरतनी चाहिए। जैविक खेती को बढ़ावा देना और रसायनों के उपयोग को नियंत्रित करना जरूरी है।
4. कचरे का प्रबंधन: कचरे के निपटान और पुनः उपयोग की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। कचरे के निपटान और पुनः उपयोग की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। प्लास्टिक थैलियों और अन्य एकल-उपयोग वाली वस्तुओं के उपयोग को कम करना चाहिए।
5. स्वच्छता अभियान: नदियों के आसपास सफाई अभियानों का आयोजन करना चाहिए। नदियों के आसपास सफाई अभियानों का आयोजन करना चाहिए, जिसमें समुदाय और स्थानीय प्रशासन मिलकर काम करें। नियमित सफाई और मरम्मत कार्य नदियों की स्थिति में सुधार कर सकते हैं।
निष्कर्ष: नदी जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जिसे केवल सरकारी या गैर-सरकारी प्रयासों से नहीं बल्कि समाज के हर वर्ग की सक्रिय भागीदारी से ही दूर किया जा सकता है। हमें सभी स्तरों पर एकजुट होकर काम करना होगा ताकि नदियों की स्वच्छता और जीवन की गुणवत्ता बनाए रखी जा सके। एक साफ और स्वस्थ नदी न केवल हमारे पर्यावरण के लिए आवश्यक है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक अमूल्य धरोहर है।
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