राज्य कृषि समाचार (State News)

प्रसंस्करण को प्राथमिकता !

17 फ़रवरी 2025, भोपाल: प्रसंस्करण को प्राथमिकता ! – सर्दी के मौसम में आमतौर पर हर साल सब्जियों के दामों में मंडी में भारी गिरावट आ जाती है। किसानों को तो भारी नुकसान उठाना पड़ता है लेकिन कम कीमतों का उपभोक्ताओं को बहुत ही कम अवसरों पर इसका लाभ मिलता है। इन दिनों सब्जी उत्पादक जिला छिंदवाड़ा में फूल गोभी और टमाटर के दाम इतने कम हो गये हैं कि किसान खेतों में ही खड़ी फसल में ट्रैक्टर और हल से जुतवाकर फसल को नष्ट कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान हो रहा है। इधर भोपाल में भी बाजार में टमाटर 10 रूपए किलो बिक रहा है। जब बाजार में दस रूपये किलो है तो व्यापारी मंडी में पांच रूपये किलो से कम दर पर ही खरीदते होंगे। किसान इतने कम भाव पर टमाटर बेचने को मजबूर हैं। यदि खेतों से टमाटर की तुड़वाई और मंडी तक लाने का भाड़ा जोड़ दिया जाए तो एक तरह से वे घाटे में ही बेच रहे हैं। ऐसी स्थिति प्राय: हर साल ही निर्मित होती है। जब भाव एकदम कम हो जाते हैं तब थोड़ा हो हल्ला मचता है फिर सब सामान्य हो जाता है। सब्जियों के दाम कम होने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि सब्जियों का उत्पादन मांग की तुलना में काफी अधिक होता है। सब्जियों के मामले में यह अनिश्चितता रहती है कि अपेक्षित उत्पादन होगा ही। लेकिन देश में ऐसी कोई नीति या योजना नहीं बनी है कि जब उत्पादन अधिक और मांग कम हो तो कीमतों पर कम असर पड़े। यानी किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य मिल जाए और उपभोक्ताओं को भी अधिक कीमत नहीं देना पड़े। पिछले साल जब राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में टमाटर और प्याज के दामों में काफी वृद्धि हो गई थी तब केंद्र सरकार ने उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के उद्देश्य से थोक बाजार से टमाटर और प्याज खरीदकर रियायती दरों पर उपलब्ध करवाए थे। इसी तरह चावल, दाल आदि के मामले में भी किया जाता रहा है।

भारत दुनिया में फल और सब्जी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। चीन के बाद दुनिया में फलों और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद, भारत में फसल का मात्र 2 प्रतिशत ही प्रसंस्कृत किया जाता है। देश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग अभी भी अविकसित है, जहाँ प्रसंस्करण में फलों और सब्जियों का लगभग 2 प्रतिशत, समुद्री उत्पादों का 8 प्रतिशत, दूध का 35 प्रतिशत और मुर्गी पालन का 6 प्रतिशत हिस्सा ही शामिल है अर्थात प्रसंस्करण किया जा रहा है।

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भारत में कृषि असंगठित क्षेत्र में है और 80 प्रतिशत से अधिक लघु एवं सीमांत किसान हैं जिनके पास पांच या पांच एकड़ से कम जमीन है। ऐसे किसानों को जब फसल की उचित कीमत नहीं मिलती है तब वह बैंकों और साहूकारों से कर्ज लेकर ही अपना काम चलाते हैं। कर्ज न चुकाने की स्थिति में हजारों किसान हर साल आत्महत्या कर लेते हैं। यदि किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिल जाए तो किसानों की आर्थिक स्थिति में निश्चित ही सुधार होगा। इसके लिये जरूरी है कि जब किसी फसल का कम उत्पादन होता है तब कीमतें तो बेहतर मिल जाती हैं लेकिन जब अधिक उत्पादन होता है तब कीमतें इतनी कम हो जाती हैं कि लागत भी नहीं निकलती और खड़ी फसल को खेत में ही नष्ट करने पर मजबूर हो जाते हैं। यदि सरकार प्रसंस्करण को बढ़ा दे तो निश्चित ही खपत के बाद बचे फल-सब्जी आदि का प्रसंस्करण किया जा सकता है। इससे किसानों को नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। प्रसंस्करण को बढ़ावा देने से कृषि उत्पादन की कीमतें स्थिर रहेंगी। वर्तमान में जैसे टमाटर और गोभी के दाम न्यूनतम स्तर तक नीचे आ गए हैं। मांग से अधिक उत्पादन को प्रसंस्करण के लिए भेजा जाना चाहिए। यदि कृषि उत्पादन, भंडारण और प्रसंस्करण को लेकर एक स्पष्ट नीति बनाएं तो देश में कोई भी कृषि उपज के नष्ट होने के प्रतिशत को काफी कम किया जा सकता है। इस प्रयास से किसानों और उपभोक्ताओं को तो फायदा होगा ही, व्यापारी भी लाभ में ही रहेंगे। लेकिन इसके लिए एक व्यवहारिक नीति बनाने की जरूरत है। प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा दिए बिना किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारा नहीं जा सकता इसलिये केंद्र और राज्य सरकारों को प्रसंस्करण को प्राथमिकता में रखना ही होगा।

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