मालवा क्षेत्र में सोयाबीन फसल पर कीटों का प्रकोप
26 अगस्त 2020, इंदौर।मालवा क्षेत्र में सोयाबीन फसल पर कीटों का प्रकोप – इस वर्ष मालवा क्षेत्र में सोयाबीन फसल पर सफ़ेद मक्खी और तना छेदक कीटों का प्रकोप देखा जा रहा है. इससे फसल पीली पड़ने के साथ ही फलियां नहीं बनने की शिकायत भी सामने आई है.मिली जानकारी के अनुसार सोयाबीन फसल में इसका प्रकोप इंदौर जिले के अलावा उज्जैन ,रतलाम और देवास जिले में भी देखा गया है.इंदौर कलेक्टर श्री मनीष सिंह और और उप संचालक कृषि श्री रामेश्वर पटेल ने भी क्षेत्र का दौरा किया तथा किसानों को हर सम्भव सहायता दिलाने का आश्वासन दिया.
सोयाबीन की बोवनी के बाद बारिश की लम्बी खेंच से परेशान किसान गत दिनों लगातार हुई वर्षा की समस्या से उबरे भी नहीं थे कि अब सोयाबीन की फसल के पीले पड़ने और कई जगह फलियां नहीं बनने से फसल के नुकसान का अंदेशा बढ़ गया है.इंदौर जिले के सनावदिया सहित अन्य गांवों में सोयाबीन की फसल के पीले पड़ने की शिकायत के बाद कलेक्टर श्री मनीष सिंह ने मंगलवार को कृषि वैज्ञानिक और कृषि अधिकारियों के साथ सनावदिया का दौरा किया जहाँ कई किसानों ने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि आम तौर पर सोयाबीन 75 -80 दिन में पक जाती है , लेकिन अभी 80 दिन की फसल हो जाने के बाद भी कई जगह फलियां नहीं बन पाई है और फसल पीली पड़ रही है.किसानों ने सर्वे करवा कर मुआवजा दिलाने की मांग की है .इस पर कलेक्टर ने हर सम्भव सहायता दिलाने का आश्वासन दिया . दूसरी ओर उप संचालक कृषि श्री रामेश्वर पटेल और उनकी टीम ने देपालपुर क्षेत्र के गांवों का दौरा कर किसानों की समस्या को समझा और उचित सलाह दी.
कृषक जगत के देपालपुर प्रतिनिधि श्री शैलेष ठाकुर के अनुसार बिरगोदा के अलावा कदोडा ,बारदाखेड़ी, काकवा,जलालपुरा ,मोरखेड़ा ,सुमठा सहित कई गांवों में सोयाबीन फसल के पीले पड़ने की शिकायत आई है.पीतावली के किसान श्री रघुनाथ पटेल,श्री रोहित पटेल और श्री अशोक पीपाड़ा ,सुमठा के शालिग्राम भाई,श्री कैलाश पटेल ,चित्तोड़ा के श्री भारत पटेल और चटवाड़ा के श्री सुभाष पटेल की सोयाबीन भी पीली पड़ गई है .हालाँकि यहां समस्या की शुरुआत है.इस बारे क्षेत्रीय ग्रा.कृ .वि. अधिकारी श्री डी.के. तिवारी ने कहा कि कुछ दिनों पूर्व कीटों के प्रकोप की आशंका के चलते कृषि वैज्ञानिक और अधिकारियों ने क्षेत्र के गांवों का दौरा कर किसानों को उचित दवाई का छिड़काव करने की सलाह दी थी. जिससे पालन करने से बहुत फर्क पड़ा. बता दें कि इस खबर को कृषक जगत ने प्रकाशित किया था.
दूसरी ओर उज्जैन जिले की नागदा तहसील के ग्राम आक्याकोली के किसान श्री प्रह्लाद मथानिया ने कृषक जगत को बताया कि साढ़े चार बीघा में लगाई सोयाबीन की फसल के पौधे पीले पड़ गए हैं.पौधों का विकास भी रुक गया है .ऐसी ही शिकायत श्री आत्माराम, श्री भरत जाट के अलावा रोहनकलां के श्री रामभगत परमार ने भी की है.वहीँ रतलाम जिले के भाकरखेड़ी के किसान श्री निर्भयसिंह आंजना ने कृषक जगत को बताया कि करीबी गांव पिपल्या ,सुखेड़ा,माउखेड़ी से लेकर जावरा रोड पर 20 -30 किमी के दायरे में सोयाबीन की फसल पर यह प्रकोप देखा गया है.ग्राम अंगेठी बड़ौदा के श्री नानालाल आंजना की10 बीघा में से 7 बीघा की सोयाबीन की फसल प्रभावित हुई है. देवास जिले से भी ऐसी ही खबरे आ रही है .
31 अगस्त तक बीमा कराएं – सोयाबीन फसल पर छाए इस संकट को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अपनी फसल का बीमा अवश्य कराएं . बता दें कि म.प्र.सरकार ने खरीफ 2020 की फसल का बीमा कराने की अंतिम तारीख को बढ़ाकर 31 अगस्त तक कर दिया है. जिन किसानों ने फसल बीमा नहीं कराया है ,वे 31 अगस्त तक फसल बीमा करा लें .
कृषि विज्ञान केंद्र उज्जैन की सलाह : कृषि विज्ञान केंद्र , उज्जैन द्वारा सोयाबीन की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग ,कीट और व्याधि नियंत्रण के लिए उपाय बताएं हैं जो इस प्रकार है –
अधिक वर्षा के कारण सोयाबीन की फसल में फफूंदजनित एन्थ्रेक्नोज रोग लगता है , जिससे तनों और फलियों पर असामान्य छोटे काले धब्बे दिखाई देते हैं, जबकि एरियल ब्लाइट बीमारी में पनीले धब्बे दिखाई देते हैं , जो बाद में भूरे या काले पड़ जाते हैं.पत्तियां झुलस सी जाती हैं , वहीं जड़ सड़न रोग (राइजोक्टोनिया )में पौधों की जड़ें काली पड़कर सड़ने लगती है. इन बीमारियों का प्रकोप देखा जा रहा है .इनके नियंत्रण हेतु टेबूकोनाज़ोल (625 मि.ली./हे ) अथवा टेबूकोनाझोल + सल्फर (1 किलो ग्राम/ हे ) अथवा पायरोक्लोस्ट्रोबिन 20 डब्ल्यू.जी. (500 ग्राम /हे अथवा हेक्जाकोनाझोल 5 प्रतिशत ई.सी.(800 मिली लीटर /हे ) से छिड़काव करें.
कई क्षेत्रों में सोयाबीन की फसल पर पीला मोजाइक वायरस बीमारी का प्रकोप देखा गया है. सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए जगह-जगह पीला चिपचिपा ट्रैप लगाएं . इस रोग के लक्षण दिखते ही ग्रसित पौधों को खेत से निकाल दें .सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए अनुशंसित पूर्व मिश्रित सम्पर्क रसायन जैसे बीटासायफ्लूथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड (350 मि.ली. /हे.) या थायोमिथाक्सम + लैम्बड़ा सायहेलोथ्रिन (125 मि.ली ./हे.) का छिड़काव करें .यह भी देखने में आ रहा है कि लगातार हो रही रिमझिम वर्षा की स्थिति में पत्ती खाने वाली इल्लियां पत्तियों के साथ -साथ फलियों को भी नुकसान पहुंचा रही है. इसके नियंत्रण के लिए सम्पर्क कीटनाशक इंडोक्साकार्ब 333 मि.ली./हे. या लैम्बड़ा सायहेलोथ्रिन 4.9 सी.एस.300 मि.ली. /हे. का छिड़काव करें. सफेद मक्खी का प्रकोप हो तो इसके नियंत्रण के लिए बीटासायफ्लूथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड (350 मि.ली. /हे.) या थायोमिथाक्सम + लैम्बड़ा सायहेलोथ्रिन (125 मि.ली ./हे.) का छिड़काव करें .इसी तरह मादा तना मक्खी की गिडार (इल्ली )जो 2 मिमी लम्बी ,भूरी और काली चमकदार होती है, जो पत्ती के सिरे से डंठल के अंदर खाते हुए तने में प्रवेश करती है.पौधे के तने को चीरकर देखने पर लाल रंग की सुरंग दिखाई देती है .पत्तियां धीरे-धीरे पीली पड़ने लगती है .तना मक्खी के नियंत्रण के लिए अनुशंसित कीटनाशक दवा लैम्बड़ा सायहेलोथ्रिन 4.9 सीएस (300 मि.ली./हे ) अथवा पूर्व मिश्रित थायोमिथाक्सम + लैम्बड़ा सायहेलोथ्रिन (125 मि.ली ./हे.) का 500 लीटर /हे की दर से पानी के साथ फसल पर छिड़काव करें.