मध्यप्रदेश से छिना जैविक एंव प्राकृतिक खेती केन्द्र
जैविक खेती के लिये राज्य सरकार की कथनी – करनी में अन्तर क्यों …?
23 जुलाई 2022, भोपाल: मध्यप्रदेश से छिना जैविक एंव प्राकृतिक खेती केन्द्र – वर्तमान परिवेश में विश्व उपभोक्ता की जैविक कृषि उत्पादो में रुचि एंव मांग बढ़ रही है। लेकिन इसके विपरीत सर्वाधिक जैविक खेती का रकबा रखने वाला भारत उत्पादन एंव विश्व बाजार में अपने जैविक कृषि उत्पाद की बिक्री में कमतर साबित हो रहा है। देश में हो रही इस जैविक खेती में अकेले मध्यप्रदेश का हिस्सा 35 फीसदी से अधिक का है। सन् 2020 के उपलब्ध आंकड़े अनुसार मप्र के लगभग 01 लाख 60 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती हो रही है। जबकि हर्बल एंव आर्युवेद्ध जडी बूटियो के उत्पादन रकबे को भी जोड दिया जाये तो यह लगभग 03 लाख हैक्टेयर हो जाता है। जैविक खेती के प्रति प्रदेश में उच्च शिक्षित युवाओ का रुझान बढ़ाहै। वह इस क्ष्रेत्र में नये प्रयोग कर रहे है।
प्रदेश में जैबिक खेती से अब तक लगभग 1.70 लाख किसान जुड चुके है। लेकिन प्रदेश सहित देश में जैव उत्पादों का सुव्यवस्थित बाजार न होने से जहाँ युवाओ का जैविक खेती के प्रति जोश कमजोर पड़ने लगा है। वही राज्य सरकार एंव जबलपुर जिला प्रशासन की नाकामी के वजह से पिछले 34 बर्षौ से जबलपुर में संचालित मप्र एंव छत्तीसगढ राज्य का इकलौता राष्ट्रीय जैविक एंव प्राकृतिक खेती केन्द्र को बंद कर इसे महाराष्ट के नागपुर केन्द्र में विलय करने के आदेश केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने जारी कर दिये है। फलस्वरूप किसानो को जैविक खेती की सलाह,प्रशिक्षण,गुणवत्ता परिक्षण के संकट पैदा होगे। मप्र में 1988 से स्थापित केन्द्र सरकार का यह जैविक केन्द्र एक किराये के भवन में संचालित होता आ रहा था। 12 कर्मियो के स्टाफ वाला यह केन्द्र दोनो राज्यों के किसानो में जैविक खेती को प्रचारित करने एंव प्रशिक्षण देना का काम करता था। प्रतिवर्ष इस केन्द्र के माध्यम से पच्चीस हजार किसानो को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा था। जिसके परिणाम स्वरुप मप्र के जबलपुर, मंडला, डिडौंरी, बालाघाट, अनूपपुर, उमारिया,दमोह,सागर जिले जैविक कुषि के लिये नये क्षेत्र के रुप में विकसित हो सके है। इसके अतिरिक्त जैविक उत्पादो की गुणवत्ता एंव जैविक उउर्वरकों की जांच ,किसानो के साथ दोनो राज्यो के कृषि विभाग के कर्मचारियो को जैविक खेती प्रशिक्षण देने का काम भी किया जाता था। प्रारंभ में इस केन्द्र ने जबलपुर जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय में जैविक खाद तैयार करने के केन्द्र स्थापना में पूर्ण सहयोग किया था। जिसके कारण विश्वविद्यालय आज सोलह प्रकार के जैविक उर्वरक के उत्पादन करने में सक्षम हुआ है। भवन के किराये से परेशान केन्द्र सरकार के कृषि मंत्रालय ने शहर में भवन निर्माण हेतु राज्य सरकार एंव जबलपुर जिला प्रशासन को शासकीय भूमि के आंवटन हेतु अनेको प्रस्ताव समय—समय पर भेजे गये थे। लेकिन राज्य सरकार एंव जिला प्रशासन के अधिकारी इसे ठंडे बस्ते में डालते रहे। अंतिम दफा मार्च 2022 में चेतावनी के रुप में केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने उक्त जैविक केन्द्र को स्वयं के भवन के अभाव में नागपुर स्थांतारित करने हेतु आदेश जारी किया था। लेकिन तब भी राज्य शासन एंव क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों द्धारा विशेष प्रयास नही किये गये। अंतत: केन्द्र सरकार ने 30 जुलाई को मप्र राज्य के जबलपुर में संचालित इस जैविक केन्द्र को बंद कर इसे नागपुर केन्द्र में सम्मलित करने के आदेश जारी कर दिये है।केन्द्र के बंद हो जाने से अब प्रदेश के किसानो एंव कृषि कर्मचारियों को प्रशिक्षण लेने नागपुर जाना होगा जो कि मुश्किल है। खेती—बाडी छोड़ कौन किसान इतनी दूर जा पायेगा? दूसरी तरफ प्रदेश में बिकने वाले जैविक उर्वरको की गुणवत्ता जॉच आसानी से नही हो पायेगी। जिससे प्रदेश के बाजारो में नकली एंव मानक रहित जैविक उर्वरक एंव उत्पाद की व्यापार की संभावनाएं बढेगी।
प्रदेश की माटी में उपलब्ध भरपूर जीवांश , राज्य को जैविक प्रदेश बनाने को प्रबल सम्भावना प्रकट करती है। भारतीय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल( एसोचेम) की रिपोर्ट के अनुसार मप्र में जैविक खेती की बहुत अधिक संभावनाए है। प्रदेश की 45 फीसदी कृषि भूमि जैविक खेती के लिये पूर्णता उपयुक्त है। जिसके माध्यम से 23 हजार करोड़ की जैविक संपदा र्निमित की जा सकती है। वही 06 लाख नये रोजगार अवसर पैदा किये जा सकते है। सन् 2020 में प्रदेश से 5 लाख 636 मीट्रिक टन जैविक सामग्री दूसरेदेशों को निर्यात कर राज्य ने 2683 करोड रुपये की मुद्रा हासिल की थी। अब जबकि अरब देशो से जैविक उर्वरको की मांग आ रही है, राज्य शासन ने जैविक कृषि केन्द्र को आसानी से अलबिदा कहकर राज्य के हितों एंव किसानों की आमदनी पर कुल्हाड़ी मारी है।
देश के बाजार में प्रदेश के विदिशा,सिहोर एंव सागर के ब्रान्ड नाम से बिकने वाले शरबती गेहूं में इन जिलो की मिट्टी एंव देशी खाद से उत्पन्न पौष्टिकता है।।राज्य के रायसेन एंव बालाघाट जिले का बासमती एंव कालीमॅूछ चावला अपनी विशेष गंध से अरब देशों की पहली पंसद बना। पिपरिया ,होशंगाबाद की तुवर दाल,करेली,नरसिंगपुर के गन्ने से बना गुड़, मिट्टी के जैविक गुणों के कारण स्वाद एंव गुणवत्ता में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे है। इन उत्पादो की विशेष पहचान मिट्टी के जीवांश एंव उत्पादक किसानों द्धारा रासायनिक खाद के बजाये देशी खाद का प्रयोग है। आज विश्व बाजार सहित देश के घरेलू बाजार का शिक्षित तबका जैविक उत्पादो को लेना चाहेता है। लेकिन वास्तविक उत्पादक किसान एंव जैविक उत्पाद में रुचि रखने वाले ग्राहक के बीच सम्पर्क सूत्र नही है। वही किसानो के पास अपने उत्पादो की प्रमाणिकता का कोई सबूत भी नही है। विश्व धरातल पर भारत का सर्वाधिक जैविक खेती का रकबा होने के बाद भी जैविक उत्पादन में देश विश्व में नौवे स्थान पर है। जबकि निर्यात हिस्सेदारी मात्र 0.55 फीसदी की है। देश के भीतर मप्र का हाल भी यही है कि राज्य जैविक उत्पादो के विक्रय में पूवोत्तर राज्यो से बहुत पीछे हो चुका है। प्रदेश में जैविक उत्पादन की प्रबल संभावनाए होने के बावजूद सरकारी प्रयासो की वास्तविकता में बहुत अधिक अंतर है। राज्य प्राकुतिक खेती के नाम पर बडे—बडे सम्मेलन करता है। राज्य के मुख्यमंत्री प्रदेश के मंत्रियो से जैविक खेती की आवश्यक सलाह भी देते है। लेकिन वर्षो पूर्व के स्थापित जैविक संस्थान जो प्रदेश में जैविक उत्पादन के लिये मील का पत्थर था। उसकी बिदाई को रोकने में एक भी क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि अपने दायित्वो के निर्वाह में इसलिये सफल नही होता है—क्योकि कथनी एंव करनी में एकरुपता स्थापित नही हो पाती।
महत्वपूर्ण खबर: 12 लाख टन चीनी निकासी की संभावना