राज्य कृषि समाचार (State News)

राजस्थान में सरसों की बुवाई में रिकॉर्ड बढ़त, 84% की तेजी के साथ बुवाई क्षेत्र 16.84 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा

28 अक्टूबर 2025, जयपुर: राजस्थान में सरसों की बुवाई में रिकॉर्ड बढ़त, 84% की तेजी के साथ बुवाई क्षेत्र 16.84 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा – राजस्थान में इस रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसल सरसों की बुवाई में शानदार शुरुआत हुई है। राज्य कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 24 अक्टूबर तक सरसों की बुवाई 16.84 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पूरी हो चुकी है, जो पिछले साल की समान अवधि के 9.12 लाख हेक्टेयर के मुकाबले लगभग 84% अधिक है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इस तेजी से बुवाई क्षेत्र बढ़ने का मतलब है कि इस साल राजस्थान में सरसों की खेती रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच सकती है।

‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के अनुसार,  राजस्थान में सरसों का औसत बुवाई एरिया पिछले 5 साल (2019-20 से 2023-24) के दौरान 35.22 लाख हेक्‍टयर रहा है। जबकि पिछले रबी सीजन 2024-25 में यह आंकड़ा 33.72 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा था। इस बार रबी सीजन के शुरुआती दौर में ही आधा लक्ष्य पूरा हो गया है, तो ऐसे में कृषि एक्सपर्ट्स को संभावना है कि साल 2025-26 में सरसों का रकबा पहले से काफी अच्छा होगा।

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सरसों फसल की ओर बढ़ा किसानों का रुझान

विशेषज्ञों के अनुसार, किसानों का सरसों की ओर रुझान बढ़ने के कई कारण हैं। खेतों में पर्याप्त नमी, जलाशयों में पानी की भरपूर उपलब्धता और मंडियों में अच्छे दाम ने इसे आकर्षक विकल्प बना दिया है। सॉल्वेंट एक्स्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) के अनुसार, राजस्थान की मंडियों में सरसों के भाव 24 अक्टूबर को लगभग 72,000 रुपये प्रति टन थे, जो पिछले साल की तुलना में 6.43% अधिक है। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2026-27 के लिए सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 6,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जो पिछले साल से 250 रुपये अधिक है।

मौसम और सिंचाई की स्थिति अनुकूल

SEA के कार्यकारी निदेशक बी.वी. मेहता ने बताया कि देर से हुई बारिश के कारण मिट्टी में नमी भरपूर है और उत्तर-पश्चिमी व पूर्वी इलाकों में जलाशय पूरी तरह भरे हुए हैं। उन्होंने कहा कि अगर मौसम ने साथ दिया, तो इस साल सरसों की पैदावार पिछले वर्षों से भी बेहतर रहने की संभावना है। इसके अलावा, सोयाबीन की तुलना में इस बार सरसों उगाने वाले किसानों को अधिक लाभ हुआ है, जिससे वे अपने खेतों का बड़ा हिस्सा सरसों के लिए समर्पित कर रहे हैं।

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