बाजरा: प्रमुख रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण
आकाश जोशी, दिनेश बंजारा, छात्र -: सेज यूनिवर्सिटी इंदौर
12 अगस्त 2025, भोपाल: बाजरा: प्रमुख रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण – बाजरा की खेती भारत में अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खासतौर पर की जाती है। बाजरा की फसलें विभिन्न बीमारियों के लिए भी अतिसंवेदनशील होती हैं जिसके कारण बाजरे के पैदावार और गुणवत्ता में काफी कमी हो सकती हैं। बाजरा की फसल को प्रभावित करने वाले आम रोगों में ब्लास्ट रोग, स्मट रोग और इसके अलावा अन्य रोग जैसे- जंग, पत्ती की रोशनी और डाउनी फफूंदी से भी प्रभावित हो सकती हैं।
अरगट रोग:
यह बाजरे में होने वाले प्रमुख रोगों में से एक है, जो फसल की पैदावार में भारी कमी ला सकता है। इस रोग के जीवाणु मिट्टी में लंबे समय तक जीवित रहते हैं, जिससे यह रोग बार-बार फसल पर हमला कर सकता है। यदि आप बाजरा की खेती कर रहे हैं, तो अरगट रोग के लक्षण और नियंत्रण की जानकारी होना आवश्यक है।
अरगट रोग के लक्षण:
- अरगट रोग से प्रभावित बाजरे के पौधों से गुलाबी रंग का एक गाढ़ा चिपचिपा तरल पदार्थ निकलता है। कुछ समय बाद यह चिपचिपा पदार्थ गहरे भूरे रंग में बदल जाता है।
- जब इस रोग का संक्रमण ज्यादा होने लगता है तब बाजरे की बालियों में गहरे भूरे रंग के जहरीले और चिपचिपे पिंड बनते हैं।
- इसके कारण दानों की पैदावार में काफी कमी आ जाती है।
अरगट रोग का नियंत्रण:
- खेत की तैयारी के समय गहरी जुताई करें जिससे मिट्टी में मौजूद रोग के जीवाणु नष्ट हो जाएंगे।
- रोग से बचने के लिए बाजरे की फसल में फसल चक्र अपनाना चाहिए।
- खेत में खरपतवारों पर नियंत्रण रखें।
- बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम थीरम 75% डबल्यूएस से उपचारित करें।
- रोगप्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
- रोपण के लिए उपयोग होने वाले बीज अरगट रोग से मुक्त हों।
- रोग से प्रभावित बालियों को पौधों से अलग करके नष्ट कर दें। रोग को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित सिरों को हटा दें और नष्ट कर दें।
- खड़ी फसल में रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ जमीन में 250 लीटर पानी में 0.2% मैंकोज़ेब मिलाकर छिड़काव करें।
- कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम या मैनकोज़ेब 2 किग्रा/हेक्टेयर या जीरम 1 किग्रा/हेक्टेयर 5-10% फूल आने की अवस्था पर छिड़काव करें।
मृदु रोमिल आसिता रोग:
इस रोग को हरित बाली रोग भी कहा जाता है, वे सभी क्षेत्र जहाँ बाजरे की खेती होती है वहां मृदु रोमिल आसिता रोग पाया जाता है। इस रोग के काऱण पौधों की बालियों में दानें की जगह टेढ़ी-मेढ़ी हरी पत्तियां निकलती हैं, जिसके कारण बाजरे की उत्पादन क्षमता में कमी आती है।
मृदु रोमिल आसिता रोग के लक्षण:
- मृदु रोमिल आसिता रोग के शुरुआती लक्षणों में पौधे की पत्तियां पीली होती हैं।
- पौधों की पत्तियों की नीचली सतह पर सफेद पाउडर दिखाई पड़ता है।
- जैसे-जैसे रोग बढ़ता है पौधों में कम बालियां आती हैं या फिर आती ही नहीं हैं और अगर बालियां आ भी जाती हैं तो उसमें छोटी-छोटी पत्तियां निकलती हैं।
- इस रोग के कारण बाजरे की पत्तियां गिरने लगती हैं, जिससे पौधों का वृद्धि-विकास सही से नहीं हो पाता है।
मृदु रोमिल आसिता रोग का नियंत्रण:
- बाजरे की बुवाई करने से पहले बीजों को रीडोमील एम.जेड 72 डब्लू.पी दवा से उपचारित करना चाहिए। इसके लिए एक किलो बीज में 8 ग्राम रीडोमील दवा को मिला कर उपचारित करें।
- पौधों के जिन हिस्सों में रोग दिखाई पड़ता है उनको बाहर निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
- खड़ी फसल में 1 लीटर पानी में 2 ग्राम रीडोमील एम.जेड दवा को मिलाकर छिड़काव करें या फिर 0.35 प्रतिशत कॉपर ऑक्सीक्लोराइड दवा का भी छिड़काव किया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर 10 से 15 दिनों के अंतर पर फिर से छिड़काव कर सकते हैं।
- खेत को साफ रखें और फसल अवशेषों को हटाएं ताकि रोगजनक को आश्रय स्थल न मिले।
- फसलों को सही मात्रा में सिंचाई और पोषण देना चाहिए ताकि उसका विकास अच्छा हो और वे रोगों के प्रति ज्यादा सहनशील हो।
- फसल चक्र अपनाऐं इससे मिट्टी में उपलब्ध रोगजनक नष्ट हो जाते हैं।
कंडुआ रोग:
कंडुआ रोग, जिसे हेड स्मट भी कहा जाता है, बाजरे की फसल को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कवक रोग है। इस रोग के कारण बीज का आकार बड़ा और अंडाकार हो जाता है, और बीज के अंदर काले रंग का चूर्ण भर जाता है। अगर समय पर नियंत्रण न किया जाए, तो यह रोग फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर बुरा असर डाल सकता है।
कंडुआ रोग के लक्षण:
- इस रोग के संक्रमण से बीजों का आकार बड़ा और अंडाकार होने लगता है। इसके साथ ही बीज के अंदर काले रंग का चूर्ण भर जाता है।
- हेड स्मट एक फफूंद जनित रोग है जो बाजरे के फूलों और दानों को प्रभावित करता है।
- इस रोग संक्रमित अनाज खाने के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।
कंडुआ रोग का नियंत्रण:
- सुनिश्चित करें कि रोपण के लिए उपयोग किए जाने वाले बीज हेड स्मट संदूषण से मुक्त हों।
- आगे प्रसार को रोकने के लिए कंडुआ संक्रमित सिरों को हटा दें और नष्ट कर दें।
- बाजरा को उन खेतों में लगाने से बचें जहां पहले कंडुआ की समस्या रही हो।
- बुवाई से पहले बीजों को उचित फफूंदनाशकों से उपचारित करें।
- रोग के लक्षण दिखने पर तुरंत कार्रवाई करें और फसल की समय पर कटाई करें।
- फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए इससे मिट्टी में मौजूद रोग के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
- फसलों को सही मात्रा में सिंचाई और पोषण देना चाहिए ताकि उसका विकास अच्छा हो और वे रोगों के प्रति ज्यादा सहनशील हो।
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