राज्य कृषि समाचार (State News)

शुष्क क्षेत्रों में मोटे अनाज (बाजरे) से कुपोषण का निवारण

डॉ अदिति गुप्ता, (कृषि विज्ञान केंद्र, चाँदगोठी चुरू), विषय वस्तु विशेषज्ञ (खाध्य एवं पोषण),

06 नवंबर 2025, भोपाल: शुष्क क्षेत्रों में मोटे अनाज (बाजरे) से कुपोषण का निवारण – इन दिनों मोटा अनाज चर्चा में है । यह सही है की गेहूं और चावल मुलायम जायके पर मोटे अनाज का स्वाद चढ़ने में थोडा समय लगता है पर ये स्वाद व सेहत का सुगम साधन है । सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी शरीर को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करती है जिसे दूसरे शब्दों में कुपोषण भी कहते हैं जो कि हमारे दैनिक आहार में पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है। कुपोषण मानव की क्षमता के विकास में बाधक तो है ही उसके साथ-साथ ये देश में खासकर औरतों एवं बच्चों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास को भी रोकता है। सालों से मोटा अनाज  भारतीयों के लिए भोजन का मुख्य स्त्रोत रहा है । मोठे अनाज खराब मिट्टी में भी उपज सकते है और उन्हे तुलनात्मक रूप से कीटनाशक की भी उतनी जरूरत नहीं होती है । जब बाजरे की खेती होती है तो युरीअ जैसे की रसायनों की जरूरत नहीं होती है जिस वजह से यह जयद गुणकरी व अधिकांश यह ऑर्गैनिक ही होते है I

Advertisement
Advertisement

मोटे अनाज के फायदे –

भारत सर्कार की कोशिशों के बाद 2023 को दुनियाभर में मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है । मुख्यत गेहूं और चावल को छोड़कर बाजरा, रागी, ज्वार, जौ, कंगनी, कुटकी , मक्का, जई आदि को मोटे अनाज में शामिल किया गया है । इन्हें मोटा अनाज कहे जाने का एक कारन यह भी है की गेहूं और चावल की तुलना में ऐसे अनाजों की सतह तुलनात्मक रूप से खुरदरी होती है । शारीरिक फायदे के कारण इनकों पोषण विशेषज्ञ द्वारा ‘सुपरफूड्स’ के रूप में मान्यता दी जा ही है । दुसरे अनाजों की तरह ही मोटे अनाज चीला, खीर, खिचड़ी, दलिया, कटलेट, सूप, उपमा, डोसा, इडली, बिस्कुट, स्नैक्स और चिक्की    आदि के रूप में खाए जा सकते है ।

इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मिलेट्स रिसर्च (आईआईएमआर), हैदराबाद के अनुसार मोटे अनाज सिलियक रोग के लिए लाभप्रद है इसका कारण है कि मोटे अनाज ग्लूटन फ्री हैं गेहूं में ग्लूटन नामक तत्व पाया जाता है, जिससे कुछ लोगों में सिलियक रोग हो जाता है विशेषज्ञ मोटे अनाजों को मधुमेह और कैंसर रोकने वाले तत्वों से भरपूर मानते हैं पौष्टिक तत्व भरपूर मात्रा में होने के कारण अनाथ को एनीमिया में कुपोषण की समस्या को दूर करने में सहायक माना जा रहा है आयुर्वेद के अनुसार मोटे अनाज वात और कफ दोष को संतुलित करने में सहायक होते हैं। वात से जुड़ी समस्याएं जैसे गठिया (आर्थराइटिस),  हड्डियों और जोड़ों से संबंधित तकलीफ और कफ से संबंधित समस्याओं में इसका सेवन फायदेमंद होता है इसी तरह मोटे अनाजों में फाइबर की प्रचुरता उन्हें  मधुमेह और मोटापे से दूसरे लोगों के लिए अच्छा अनाज बनाती है ।बाजरा,  ज्वार, रागी और जजई में फाइबर भरपूर और वसा बेहद कम होती है मोटे अनाजों का ग्लाइसेमिक कम होता है तभी मधुमेह रोगियों को खाने की सलाह दी जाती है।

Advertisement8
Advertisement

बाजरा बाजरा को पलट के नाम से भी जाना जाता है बाजरे में एंटीऑक्सीडेंट घुलनशील और घुलनशील फाइबर आयरन और प्रोटीन प्रचुरता में होते हैं बाजरे का ग्लैसिमिक कम होने की वजह से यह डायबिटीज के लिए फायदेमंद है और सर को काबू रखता है घुलनशील की अधिकता के कारण वजन कम करने में सहायक है कैल्शियम की कमी होने पर भी इसके आटे की रोटी खाने की सलाह दी जाती है।

Advertisement8
Advertisement

खेती के हिसाब से से देखें तो धरती के लिए व सेहत के हिसाब  से देखे तो मोठे अनाज स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे होते है । इनमे बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है और ये अधिक तापमान में भी आसानी से बढ़ते है । इनकी पैसावर दूसरी फसलों की तुलना में आसान है साथ ही ये कीट –पतंगों से होने वाले रोगों से भी बचे रहते है ।

बाजरे के फायदे की बात करें तो बाजरे से मधुमह को नियंत्रित करने में मदद मिलती है तथा कोलेस्ट्रॉल लेवल में सुधार होता है ।ये कैल्सियम,जिंक, आइरन की कमी को दूर करता है । इसके अलावा यह ग्लूटेन रहित होता है जो की गेहूं से ऐलर्जी के रोगियों के लिए भी बहुत उपयोगी है । बाजरे में मोजूद विटामिन बी 3 शरीर में मौजूद कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को भी काम करने में मदद करता है बाजरे के रोजाना इस्तेमाल से मधुमेह का खतरा भी कम होता है । अफ्रीकी मूल के इस अनाज में अमीनो ऐसिड , कैल्सियम,जिंक, आइरन , मैग्नीशियम , फॉसफोरस , पोटेशियम और विटामिन ( बी 6 , सी, ई ) जैसे की विटामिन व खनिज लवण की भरपूर मात्रा  पाई जाती है ।  प्रति ग्राम बाजरे में लगभग 11.6 ग्राम प्रोटीन , 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रट और 132 मिलीग्राम कैरोटीन पाया जाता है ।

  • क्लाइमेट रेज़िलिएंट क्रॉप:  बाजरे की फसल प्रतिकूल जलवायु, कीटों एवं बीमारियों के लिये अधिक प्रतिरोधी है, अतः यह बदलते वैश्विक जलवायु परिवर्तनों में भुखमरी से निपटने हेतु एक स्थायी खाद्य स्रोत साबित हो सकती है।
  • इसके अलावा इस फसल की सिंचाई के लिये अधिक जल की आवश्यकता नहीं  होती है जिस कारण यह जलवायु परिवर्तन एवं लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों के निर्माण के लिये एक स्थायी रणनीति बनाने में सहायक है।
  • पोषण सुरक्षा: बाजरे में आहार युक्त फाइबर (Dietary Fibre) भरपूर मात्रा में विद्यमान होता है, इस पोषक अनाज (बाजरे) में  लोहा, फोलेट (Folate), कैल्शियम, ज़स्ता, मैग्नीशियम, फास्फोरस, तांबा, विटामिन एवं एंटीऑक्सिडेंट सहित अन्य कई पोषक तत्त्व प्रचुर मात्रा में होते हैं।
  • ये पोषक तत्त्व न केवल बच्चों के स्वस्थ विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि वयस्कों में हृदय रोग और मधुमेह के जोखिम को कम करने में भी सहायक होते हैं।
  • ग्लूटेन फ्री (Gluten Free) एवं ग्लाइसेमिक इंडेक्स (Glycemic Index) की कमी से युक्त बाजरा डायबिटिक/मधुमेह के पीड़ित व्यक्तियों के लिये एक उचित खाद्य पदार्थ है, साथ ही यह  हृदय संबंधी बीमारियों और पोषण संबंधी दिमागी बीमारियों से निपटने में मदद कर सकता है।
  • आर्थिक सुरक्षा: बाजरे को सूखे, कम उपजाऊ, पहाड़ी, आदिवासी और वर्षा आश्रित क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।
  • इसके अलावा बाजरा मिट्टी की पोषकता के लिये भी अच्छा होता है तथा इसकी फसल तैयार होने में लगने वाली समयावधि एवं फसल लागत दोनों ही कम हैं।
  • इन विशेषताओं के साथ  बाजरे के उत्पादन के लिये कम निवेश की आवश्यकता होती है।

भारत में बाजरे का उत्पादन-

सरकार ने पहली बार मोटे अनाज वाली फसलों के समर्थन मूल्य में भारी बढ़ोतरी की है। सरकार के इस फैसले के बाद देश में इन फसलों की बुआई का क्षेत्र बढ़ने की संभावना है। पिछले फसल वर्ष के दौरान रिकॉर्ड 4.70 करोड़ टन मोटे अनाज का उत्पादन हुआ था। सरकार इसे और बढ़ाना चाहती है और इसके लिए उन 200 जिलों को चिन्हित किया गया है, जो ज्यादातर सूखे की चपेट में रहते हैं। जाहिर है कि मोटे अनाज की खेती में अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है। इसके तहत मोदी सरकार ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी और जौ जैसी फसलों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए उन्नत प्रजाति के बीज मुहैया कराएगी। जाहिर है कि इससे इन फसलों की पैदावार बढ़ेगी। आपको बता दें कि सरकार ने स्वास्थ्य की दृष्टि से मोटे अनाज को पौष्टिक अनाज की श्रेणी में डाला है, इससे इन फसलों की मांग में तेजी से इजाफा हो रहा है।

  • वर्तमान में भारत में उगाई जाने वाली तीन प्रमुख बाजरा फसलों (Millet Crops ) में  ज्वार (Sorghum), बाजरा (Pearl Millet) और रागी (Finger Millet) शामिल हैं।
  • इसके साथ ही भारत में जैव-आनुवंशिक तौर पर विविध और देशज किस्मों के रूप में छोटे बाजरे की विभिन्न किस्मों जैसे- कोदो (Kodo), कुटकी (Kutki), चेन्ना (Chenna) और सानवा (Sanwa) को  प्रचुर मात्रा में उगाया जाता है।
  • भारत में बाजरा उत्पादक प्रमुख राज्यों में राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा शामिल हैं।

भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम-

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि: भारत सरकार द्वारा  बाजरे के MSP में बढ़ोतरी की गई है, जिससे किसान बाजरा उत्पादन के लिये प्रोत्साहित होंगे।
  • इसके अलावा बाजरे की उपज के लिये एक स्थिर बाज़ार प्रदान करने के लिये भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बाजरे को भी शामिल किया गया है।
  • इनपुट सहायता बाजरे के उत्पादन के लिये भारत सरकार द्वारा किसानों को बीज किट और इनपुट सहायता के रूप में किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organisations) के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण और बाजरे के लिये बाज़ार क्षमता को विकसित करने में मदद की जा रही है।
  • एकीकृत दृष्टिकोण: केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कृषि और पोषण के एकीकृत दृष्टिकोण पर कार्य किया जा रहा है जिसके तहत पोषक तत्त्व-उद्यानों (Nutri-gardens) की स्थापना करके फसल विविधता और आहार विविधता के बीच अंतर संबद्धता पर शोध को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके अलावा पोषक तत्त्वों से युक्त अनाज के प्रति उपभोक्ता मांग में वृद्धि के लिये लोगों के दृष्टिकोण/व्यवहार को परिवर्तित करने से संबंधित एक अभियान का संचालन किया जा रहा है।

सूक्ष्म पोषक तत्वों के कुपोषण परिणाम –

मनुष्यों को उनकी सेहत के लिए कम से कम 22 खनिज तत्वों की आवश्यकता होती है। उपयुक्त आहार द्वारा इसकी आपूर्ति की जा सकती है। हालांकि यह अनुमान लगाया गया है कि दुनिया के 60 अरब लोगों में से 60 प्रतिशत में लौह (Fe)  की कमी है, 30 प्रतिशत से अधिक में जिंक (Zn) की कमीए 30 प्रतिशत में आयोडीन (I) और 15 प्रतिशत जनसंख्या में सेलेनियम (Se) की कमी है।

सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी सेउच्च रुग्णता, उच्च मृत्यु दर, कम संज्ञानात्मक क्षमता, कार्य क्षमता में हास, अल्प विकास, शरीरिक क्षमता में कमी आदि उत्पन्न हो जाते है ।

Advertisement8
Advertisement

सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के लिए संभावित समाधान –

सूक्ष्म कुपोषण को भोजन में विविधताओं, पूरकता फोर्टिफिकेशन या बायोफोर्टिफिकेशन के जरिए कम किया जा सकता है। दस रणनीतियों में से निम्नलिखित प्रस्तावों को प्रमुख भूमिका का सुझाव दिया गया है।

आहार विविधीकरण – स्वस्थ होने के लिए भोजन खाने की आदतों, ताजा फल, सब्जियां, दूध, मांस आदि सूक्ष्म पोषक तत्वों में समृद्ध होने के लिए विविधीकरण का उपयोग किया जाता है।

अनुपूरण – गोलियों या सिरप के रूप में सूक्ष्म पोषक तत्वों के मौखिक प्रशासन को पूरक कहा जाता है।

फोर्टिफिकेशन – खाद्य प्रसंस्करण के समय भोजन में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने के रूप में जाना जाता है।

बायोफोर्टिफिकेशन -बायोफोर्टिफिकेशन शब्द को सीआईएटी, कोलंबिया द्वारा जनवरी, 2001 में अपनाया गया है जो कि बिल एंड मैलिंडा गेट्स फाउंडेशन की पहल आईएमआई के प्रतिनिधियों की बैठक के दौरान सूक्ष्म पोषक संवर्धन के लिए संयंत्र प्रजनन रणनीति के पहलू पर आधारित है।


बाजरे की संकर किस्में –

बाजरा : एचएचबी 299 (संकर किस्म)

  • उच्च आयरन (73.0 पीपीएम) तथा जिंक (41.0 पीपीएम) युक्त संकर किस्म जो कि प्रचलित संकर किस्मों में उपलब्ध आयरन (45.0-50.0 पीपीएम) तथा जिंक (30.0-35.0 पीपीएम) की मात्रा से अधिक है।
  • पैदावार: 32.7 क्विं./हें.
  • शुष्क चारा उपज: 73.0 क्विं./हें.
  • फसल पकने की अवधि: 81 दिन
  • खरीफ मौसम में हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र तथा तामिलनाडू राज्यों के लिए उपयुक्त
  • भा.कृ.अनु.प.-अखिल भारतीय समन्वित बाजार अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा इकरीसैट, हैदराबाद के सहयोग से विकसित।

बाजरा: एएचबी 1200 (संकर किस्म)

  • प्रचलित संकर किस्मों में उपलब्ध आयरन (45.0-50.0 पीपीएम) की तुलना में इसमें आयरन (73.0 पीपीएम) की प्रचुर मात्रा है
  • पैदावार: 32.0 क्विं./हें.
  • शुष्क चारा उपज 70.0 क्विं./हें.
  • फसल पकने की अवधि: 78 दिन
  • खरीफ मौसम में हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडू राज्यों के लिए उपयक्त

भा.कृ.अनु.प.-अखिल भारतीय समन्वित बाजार अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत वसंतराव नाइक मराठवाड़ा कृषि विद्यापीठ, परभनी द्वारा इकरीसैट, हैदराबाद के सहयोग से विकसित।

आपने उपरोक्त समाचार कृषक जगत वेबसाइट पर पढ़ा: हमसे जुड़ें
> नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़व्हाट्सएप्प
> कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें
> कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: E-Paper
> कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: Global Agriculture

Advertisements
Advertisement5
Advertisement