मध्यप्रदेश: सितम्बर के बदलते मौसम में किसान क्या करें? कृषि वैज्ञानिकों की विशेष सलाह
12 सितम्बर 2024, भोपाल: मध्यप्रदेश: सितम्बर के बदलते मौसम में किसान क्या करें? कृषि वैज्ञानिकों की विशेष सलाह – जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ (म.प्र.) के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए मौसम के अनुसार जरूरी सलाह जारी की है। बुंदेलखंड क्षेत्र में लगातार बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन के कारण फसल उत्पादन पर विपरीत असर पड़ रहा है। टीकमगढ़ के विशेषज्ञ डॉ. बी.एस. किरार, डॉ. आर.के. प्रजापति, डॉ. एस.के. सिंह, डॉ. यू.एस. धाकड़ और डॉ. एस.के. जाटव ने किसानों को सलाह दी है कि वे खरीफ के इस अंतिम महीने में फसलों का उचित प्रबंधन करें।
देश की 51% खेती वर्षा पर आधारित है, जिससे खाद्य उत्पादन का 40% हिस्सा आता है। वहीं बुंदेलखंड की 82% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, जिसमें खरीफ फसलों का 80-90% हिस्सा बारिश पर निर्भर रहता है। इस समय सही फसल प्रबंधन बेहद जरूरी हो गया है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के चलते सितंबर के महीने में वर्षा का असमान वितरण फसलों पर भारी असर डाल रहा है।
बारिश का असर और जरूरी सावधानियां
हाल के वर्षों में देखा गया है कि सितंबर में वर्षा का समय बदल रहा है, जिससे मूंगफली, सोयाबीन, उड़द, मूंग और तिल जैसी खरीफ फसलें प्रभावित हो रही हैं। पानी की कमी से जहां दाने छोटे और हल्के हो जाते हैं, वहीं अधिक बारिश से फसल सड़ने लगती है या अंकुरित हो जाती है। इससे न केवल फसल की गुणवत्ता खराब होती है, बल्कि बाजार में कीमत भी गिर जाती है। फसल पर रोग और कीटों का खतरा भी बढ़ जाता है, खासकर जल भराव की स्थिति में।
इसलिए किसान भाइयों को खेतों में जल निकासी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। यदि खेतों में पानी जमा नहीं होगा, तो फसल की सड़ने और रोग लगने की संभावना कम हो जाएगी। इससे फसल की पैदावार और गुणवत्ता में सुधार होगा। विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि फसल बुवाई कतार या रिज-फरो विधियों से करें, जिससे पानी का सही निकास हो सके।
फसलों के लिए विशेष मौसम आधारित सलाह
- मूंग: मूंग पकाने की अवस्था में उसकी फलियों को शीघ्र तोड़ लें तथा जल निकास का उचित प्रबंधन करें।
- उड़द, सोयाबीन, मूंग: उड़द, सोयाबीन एवं मूंग में पत्ती धब्बा रोग की संभावना को देखते हुए किसान भाई फसल का निरीक्षण करें, प्रकोप होने पर नियंत्रण करने के लिए (मेटालैक्सिल 1 ग्रा. + मैन्कोज़ेब 2 ग्रा.) 3 ग्रा. दवा को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर मौसम साफ रहने पर छिड़काव करें।
- मूंगफली: वर्तमान में मूंगफली में जड़ सड़न एवं तना सड़न रोग का प्रकोप देखा जा रहा है इसलिए किसान भाई फसलों की निगरानी करें तथा खेत में रोग ग्रसित पौधे पाए जाने पर नियंत्रण के लिए (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% डब्ल्यू.पी.) की 1 ग्रा. दवा को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर मौसम साफ रहने पर छिड़काव करें। पान और अरबी: पद गलन रोग से बचाव के लिए बरेजा के आसपास पानी एकत्रित न होने दें और (मेटालैक्सिल+मैन्कोज़ेब) का छिड़काव करें।
- पान एवं अरबी: पान एवं अरबी की फसलों में पद गलन रोग हो सकता है, इसके बचाव के लिए किसान भाई बरेजा के आस-पास पानी एकत्रित न होने दें साथ ही पान एवं अरबी के पत्तों को बरेजा पर चढ़ायें एवं (मेटालैक्सिल + मैन्कोज़ेब) दवा की 3 ग्रा. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- अदरक: अदरक में कंद गलन रोग की रोकथाम हेतु (मेटालैक्सिल + मैन्कोज़ेब) दवा की 3 ग्रा. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ों के आसपास डालें तथा खेत में पानी नहीं भरने दें।
- भिंडी: भिंडी में लाल कीट नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड की 7 मिली मात्रा 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
- उड़द और सोयाबीन: उड़द एवं सोयाबीन में पीला मोजेक रोग / सफ़ेद मक्खी / एफिड की रोकथाम हेतु (एसिटामिप्रिड + बायफेन्थ्रिन 25% WG) की 250 ग्रा./हे. या (थियामेथोक्सम + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन) की 125 मिली./हे. या (बीटा-साइफ़्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड) की 350 मिली./हे. 400 ली. पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें। खरीफ फसलों में लगातार बारिश होने से तम्बाकू इल्ली, चना फली छेदक इल्लियों का प्रकोप हो जाता है, इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 425 मिली./हे. का उपयोग करें। एन्थ्रेक्नोज / एरियल ब्लाइट / चारकोल सडन रोगों से बचाव हेतु (टेबुकोनाज़ोल दर 625 मिली./हे.) या (टेबुकोनाज़ोल + सल्फर) दर 1 किग्रा./हे. या (हेक्साकोनाज़ोल दर 500 मिली./हे.) या (पाइराक्लोस्ट्रोबिन दर 500 ग्रा./हे.) के साथ 500 ली./हे. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
पशुधन देखभाल
गाय या भैंस के बच्चे के पैदा होते ही बच्चे की नाल को 1.5-2.0 इंच की दूरी पर धागे से बांधकर नई ब्लेड से काट लें। जन्म के 2 घंटे के अंदर बच्चे को टिंचर आयोडीन का टीका लगवाये और केलोस्ट्रम अवश्य पिलायें। इस समय गायों / भैंसों को पेट के कीड़ो पर परजीवियों से बचाने के लिए कृमि नाशक फ़ेनबेंडाज़ोल 1 ग्रा. दवा 100 किग्रा शरीर की दर से पिलायें। गायों / भैंसों के पेट में कीड़ों की दवा उनके शरीर के वजन के अनुसार दें। इसके अतिरिक्त गर्भवती गायों / भैंसों को 250-300 ग्राम संतुलित आहार खाने के लिए देना चाहिए। पशुओं में गलघोटू एवं लंगड़िया रोग से बचाव हेतु टीकाकरण अवश्य लगवायें। बकरियों को वर्षा में भीगने से बचाने की व्यवस्था करें एवं सी.सी.पी.पी. एवं पी.पी.आर. पर का टीकाकरण अवश्य करवायें।
किसानों के लिए यह मौसम संवेदनशील है और उन्हें फसल प्रबंधन के साथ-साथ पशुधन देखभाल पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि फसल और पशुधन दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
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