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लंपी वायरस पशुओं में दूध उत्पादन को कम कर सकता है; लक्षणों को जानें

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09 अगस्त 2022, भोपाल: लंपी वायरस पशुओं में दूध उत्पादन को कम कर सकता है; लक्षणों को जानें – लंपी वायरस पूरे भारत में तेजी से फैल रहा है। पंजाब में 20 हजार से ज्यादा पशु संक्रमित हो चुके हैं और 400 पशुओं की मौत हो चुकी है। लंपी वायरस त्वचा रोग का पहला मामला जुलाई के पहले सप्ताह में देखा गया था। अकेले राजस्थान में, इस बीमारी ने 5000 से अधिक पशुओं की जान ले ली है। इस सप्ताह मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के नामली, बरबोदना, बोदीना, सेमलिया तथा हतनारा गांव में लमपी वायरस का पशुओं में प्रकोप देखा गया है।

लंपी वायरस त्वचा रोग क्या है और इसके लक्षण क्या हैं?

लंपी वायरस त्वचा रोग (एलएसडी) एक वायरस के कारण मवेशियों में होने वाला एक संक्रामक रोग है। यह रोग पशुओं में बुखार का कारण बनता है। यह त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली पर सतही लिम्फ नोड्स और कई नोड्यूल्स (व्यास में 2-5 सेंटीमीटर) को बढ़ाता/सूजता है।

संक्रमित मवेशी अपने अंगों में सूजन विकसित कर सकते हैं और लंगड़ापन प्रदर्शित कर सकते हैं। इस वायरस से प्रभावित जानवरों की त्वचा को स्थायी नुकसान हो सकता है। इसके अतिरिक्त, रोग अक्सर पुरानी दुर्बलता, कम दूध उत्पादन, खराब विकास, बांझपन, गर्भपात और कभी-कभी मृत्यु का कारण बनता है।

लंपी वायरस त्वचा रोग के प्रमुख लक्षण

1. बुखार की शुरुआत वायरस के संक्रमण के करीब एक हफ्ते बाद होती है।
2. शुरूआती बुखार 41 डिग्री सेल्सियस (106 डिग्री फारेनहाइट) से अधिक हो सकता है और एक सप्ताह तक बना रह सकता है।
3. इस समय, सभी सतही लिम्फ नोड्स बढ़े हुए हो जाते हैं। वायरस के संक्रमण के सात से उन्नीस दिन बाद नोड्यूल दिखाई देते हैं। नोड्यूल्स की उपस्थिति के साथ, आंखों और नाक से स्राव म्यूकोप्यूरुलेंट हो जाता है (संक्रमण के दौरान सूजन की जगह पर मवाद बनता है)।

पशुओं को लम्पी वायरस से बचने के उपाय

यह बीमारी अस्वच्छता के कारण मच्छरों और मक्खियों के माध्यम से एक दूसरे पशुओं में फैल रही है। अतः पशुपालक और गौशालाएं अपने पशुओं को बांधने वाले स्थान पर साफ सफाई रखें। इसके अतिरिक्त निम्न उपाय को भी अपनाने की सलाह दी गई है।

1. इस बीमारी के प्रारंभिक लक्षण नजर आने पर पशुओं को दूसरे जानवरों से अलग कर दें। इलाज के लिए नजदीकी पशु चिकित्सा केन्द्र से संपर्क करें।

2. बीमार पशु को चारा, पानी और दाने की व्यवस्था अलग बर्तनों में करें। रोग ग्रस्त क्षेत्रों में पशुओं की आवाजाही रोकें।

3. जहां ऐसे पशु हों, वहां नीम के पत्तों को जलाकर धुआं करें, जिससे मक्खी, मच्छर आदि को भगाया जा सके।

4. पशुओं के रहने वाली जगह की दीवारों में आ रही दरार या छेद को चूने से भर दें। इसके साथ कपूर की गोलियां भी रखी जा सकती हैं, इससे मक्खी, मच्छर दूर रहते हैं।

5. जानवरों को बैक्टीरिया फ्री करने के लिए सोडियम हाइपोक्लोराईट के 2 से 3 फीसदी घोल का छिड़काव करें।

6. मरने वाले जानवरों के संपर्क में रही वस्तुओं और जगह को फिनाइल और लाल दवा आदि से साफ कर दें।     

7. संक्रामक रोग से मृत पशु को गांव के बाहर लगभग डेढ़ मीटर गहरे गड्ढे में चूने या नमक के साथ दफनाएं।

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