अफ्रीकी फूलों से निर्मित स्फूर्तिदायक पेय ग्लोबल समिट में होगा शामिल
31 दिसम्बर 2022, इंदौर: अफ्रीकी फूलों से निर्मित स्फूर्तिदायक पेय ग्लोबल समिट में होगा शामिल – हरदा जिले का सिरकंबा गांव इन दिनों चर्चा में है, क्योंकि यहाँ श्रीमती अर्चना नागर (39 ) द्वारा दक्षिण अफ्रीका के फूल ( रोजले ) से निर्मित देश के पहले स्फूर्तिदायक पेय का चयन आगामी 8 -12 जनवरी तक इंदौर में आयोजित ग्लोबल समिट के लिए हुआ है। इनके इस पेय (सेज ) की लोकप्रियता का अंदाज इसीसे लगाया जा सकता है, कि मात्र 6 माह में ही 1 लाख पाउच में से 70 हज़ार की बिक्री हो चुकी है।

संघर्षकाल -श्रीमती नागर ने कृषक जगत से हुई विस्तृत चर्चा में बताया कि इनके पिताजी श्री मधु धाकड़ उन्नत कृषक हैं और अन्य फसलों के अलावा फूलों की खेती भी करते हैं। पांच साल पहले हरदा में आई ऑस्ट्रेलिया की एक कम्पनी ने अफ्रीकी फूल ( रोजले ) की खेती करने के लिए प्रेरित किया था। इनकी इस खेती में इनकी मां श्रीमती निर्मला देवी भी हाथ बंटाती हैं । फूलों की इस खेती में आरम्भ के दो -तीन साल बहुत संघर्ष के रहे। इन विदेशी फूलों को अपने देश का वातावरण रास नहीं आया और वे उग नहीं पाए। इस दौरान काफी आर्थिक नुकसान हुआ। विदेशी अपनी भाषा में बताते, लेकिन समझ में नहीं आता था। फिर भी हिम्मत नहीं हारी और इंटरनेट पर खोज जारी रखी। इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों से भी परामर्श लिया गया। अनुसन्धान के बाद आखिर इन विदेशी फूलों को देशी वातावरण में ढाला और अंततः तीसरे साल सफलता मिली और फूल उगने लगे। लेकिन समस्या खत्म नहीं हुई , क्योंकि लॉक डाउन लगने से इन फूलों को बेचने की समस्या आई , तो घर पर ही इसका जूस बनाकर पीना शुरू किया। इससे दिनभर स्फूर्ति बनी रही। इस जूस के पीने से मां की शुगर नियंत्रित हो गई, तो कोरोनाकाल में इसका पेय बनाकर बेचने का विचार आया।
20 लाख का निवेश – अर्चना नागर ने बताया कि यह अफ्रीकी फूल नवंबर से फरवरी के बीच आते हैं। अभी इनका सीजन चल रहा है। एक एकड़ में 150 से 200 किलो फूल का उत्पादन होता है। फिलहाल 20 एकड़ में यह फूल लहलहा रहे हैं। यह फूल कठोर होने से हाथों से नहीं टूटते इसलिए कटर का इस्तेमाल करना पड़ता है। फूलों और पत्तियों को सूखाकर पाउडर बनाया जाता है। इस पाउडर को स्वादिष्ट बनाने के लिए दालचीनी, अदरक, लौंग, इलाइची और लेमन ग्रास को सूखाकर उसका पाउडर इसमें मिलाया जाता है। इन मिश्रित पदार्थों को खेत में ही उगाया जाता है। मिठास के लिए शकर की जगह मिश्री का प्रयोग किया जाता है। इस खेती में अब तक 20 लाख का निवेश किया जा चुका है। उद्यानिकी विभाग से आर्थिक सहायता तो नहीं मिली, लेकिन यथा समय उचित परामर्श मिलता रहता है। आधुनिक तरीके से अफ्रीकी फूलों की खेती के इस अभिनव प्रयास से गांव की 50 महिलाओं को वर्ष भर रोज़गार मिल रहा है। यह महिलाएं फूलों की खेती के साथ ही फूलों को तोड़ने और उनका पाउडर बनाने में मदद करती हैं।
‘सेज’ हुआ ग्लोबल समिट में शामिल : श्रीमती नागर ने बताया कि फूलों के जूस को पाउडर के रूप में ‘ सेज ‘ के नाम से बेचा जाता है। एक पाउच की कीमत 10 रु रखी गई है। ऐसे 1 लाख पाउच तैयार किए गए हैं अर्थात 10 लाख रु के उत्पाद तैयार किए गए हैं , जिसमे से 7 लाख के उत्पाद बिक चुके हैं। यह अपने उत्पाद ऑन लाइन और ऑफ़ लाइन दोनों तरीके से बेचती हैं। ऑन लाइन में अमेजन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध हैं , वहीं ऑफ लाइन के लिए मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र , उत्तराखंड में वितरक बनाए हैं। इनका यह उत्पाद जल्द ही जिओ मार्ट और बिग बास्केट पर भी उपलब्ध होगा। श्रीमती अर्चना अपने इस उत्पाद (सेज ) को आगामी 8 -12 जनवरी तक इंदौर में होने वाली ग्लोबल समिट में प्रस्तुत करेंगी। यहां देश के विभिन्न प्रदेशों से आए युवा उद्यमियों द्वारा अपने उत्पादों को रखा जाएगा। इसमें प्रधानमंत्री श्री मोदी भी शामिल होंगे। ‘सेज’ के ग्लोबल समिट में शामिल होने से इसकी बिक्री को निश्चित ही पंख लगेंगे।
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