राज्य कृषि समाचार (State News)

इफको ने पेश किए भारत के पहले नैनो उत्पाद: “नैनो नाइट्रोजन, नैनो जिंक और नैनो कॉपर”

अहमदाबादः उर्वरक क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी संस्था इफको ने आज अपनी मातृ इकाई कलोल, गुजरात में आयोजित एक समारोह में नैनो प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादों- नैनो नाइट्रोजन, नैनो जिंक व नैनो कॉपर का क्षेत्र परीक्षण शुरू करने की घोषणा की। केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री श्री सदानंद गौड़ा, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, पोत परिवहन (स्वतंत्र प्रभार)तथा रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री श्री मनसुख मांडविया,पंचायती राज और कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री पुरूषोत्तम रूपाला, गुजरात के उप मुख्यमंत्री श्री नितिन पटेल, गुजरात सरकार के खाद्य,नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले, कुटीर उद्योग, प्रिंटिंग व स्टेशनरी मंत्री श्री जयेश रदाड़िया, इफको के अध्यक्ष श्री बी.एस. नकई, इफको के उपाध्यक्ष श्री दिलीप संघाणी तथा इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी एवं अन्य गणमान्य अतिथियों की मौजूदगी में इन नैनो उत्पादों को क्षेत्र परीक्षण हेतु लॉन्च किया गया।

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कब और कैसे करे नैनो यूरिया का उपयोग

इस कार्यक्रम में देश के अलग-अलग राज्यों से आमंत्रित 34 प्रगतिशील किसान शामिल हुए। इनमें से कई पद्मश्री से सम्मानित हैं। इन किसानों को नैनो उत्पादों की इस नई शृंखला से परिचित कराया गया और उनके देशव्यापी क्षेत्र परीक्षण के बारे में जानकारी दी गई। इन उत्पादों को कलोल स्थित इफको के अत्याधुनिक नैनो बायोटेक्नोलौजी रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) में देसी तकनीक से विकसित किया गया है। नैनो संरचना से निर्मित ये उत्पाद पौधों को असरदार पोषण प्रदान करते हैं।

उद्घाटन वक्तव्य में इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने कहा कि “इन उत्पादों के लॉन्च के प्रथम चरण में आईसीएआर तथा कृषि विज्ञान केन्द्र के सहयोग से नियंत्रित स्थितियों में इनका क्षेत्र परीक्षण किया जाएगा। इस चरण के लिए इफको ने तीन प्रकार के नैनो उत्पाद विकसित किए हैं। पहला इफको नैनो नाइट्रोजन है जिसे यूरिया के विकल्प के रूप में विकसित किया गया है। सही तरीके से प्रयोग करने पर यह यूरिया की खपत को 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है। दूसरा उत्पाद इफको नैनो जिंक है जिसे मौजूदा उपलब्ध जिंक उर्वरक के विकल्प के रूप में विकसित किया गया है। इस उत्पाद का केवल 10 ग्राम एक हैक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है और इससे एनपीके उर्वरक की खपत 50 प्रतिशत तक कम हो जाएगी । तीसरा उत्पाद इफको नैनो कॉपर है जो पौधे को पोषण और सुरक्षा दोनों प्रदान करता है। यह पौधे में हानिकारक कीटों के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित करता है। इससे पौधे में ग्रोथ हारमोन की सक्रियता बढ़ती है जिससे पौधे का विकास तेजी से होता है।”

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केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री श्री सदानंद गौड़ा ने इफको के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ‘‘इफको के इस कदम से वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी  के सपनों को साकार करने में मदद मिलेगी।’’इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास करने तथा भारत में पहले पहल नैनो उत्पाद लाने की घोषणा करने के लिए उन्होंने इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी और उनकी पूरी टीम को बधाई दी।

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केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, ने कहा कि ‘‘ इफको भारत सरकार की तीनों प्राथमिकताओं पर काम कर रही है तथा इन उत्पादों को लॉन्च करके इफको ने विकास की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाई है। इससे किसानों का पैसा, पानी और समय बचेगा’’। उन्होंने कहा कि ‘‘भारत की प्राथमिकता उत्पादन की बजाए अब किसान केन्द्रित हो गई है और अन्य पहलुओं के साथ-साथ कृषि उत्पादन में सुधार तथा निवेश लागत में कमी करके 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। इस तरह के उत्पाद हमारे सपनों को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे’’।

इस अवसर पर पोत परिवहन(स्वतंत्र प्रभार) रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री श्री मनसुख मांडविया, पंचायती राज और कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री पुरूषोत्तम रूपाला, श्री नितिन पटेल उप मुख्यमंत्री गुजरात, गुजरात सरकार के मंत्री तथा इफको के निदेशक श्री जयेश रदाड़िया ने भी देश भर से आये किसानों एवं प्रतिनिधियों को संबोधित किया।

नैनो उत्पादों के शुरूआती परीक्षण के पश्चात इफको का लक्ष्य नैनो उत्पाद शृंखला मे नए उत्पादों को जोड़ना है। इफको नैनो बायोटेक्नोलौजी रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) प्रयोगशाला भविष्य में एकल पोषक उत्पाद के साथ-साथ बहुपोषक उत्पाद विकसित करने की प्रक्रिया में कार्यरत है।

नैनो उत्पादों के लाभः 

1.    परंपरागत रासायनिक उर्वरकों की तुलना में 50 प्रतिशत तक कम खपत।
2.    15-30 प्रतिशत अधिक पैदावार।
3.    मिट्टी की सेहत में सुधार।
4.    ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी।
5.    पर्यावरण हितैषी।

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