मरणासन्न बेतवा से कैसे होगा, केन का मिलन
08 अप्रैल 2025, भोपाल: मरणासन्न बेतवा से कैसे होगा, केन का मिलन – 25 दिसम्बर 2024 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पैंतालीस हजार करोड़ की बेतवा-केन लिंक राष्ट्रीय नदी परियोजना की आधारशिला रखते हुए इस परियोजना को सूखे से जूझते बुंदेलखंड के लिए एक जीवनदायनी सौगात के रुप में सर्मपित किया था। लेकिन इस शिलान्यास के ठीक तीन माह बाद ही बेतवा नदी के उद्गम में जल संकट खड़ा हो गया है। मप्र से निकलकर बारह माह अविरल बहने वाली बेतवा नदी जिसे अग्नि पुराण में वेत्रवती के नाम से दूसरी गंगा की उपाधि से अलंकृत किया है, पांच हजार साल पुरानी बेतवा नदी हाल के दिनों में अपने उद्गम स्थल से विलुप्त हो गई है। रेत का अत्याधिक उत्खनन एवं भूजल के लिए नदी के आस-पास निरन्तर खनन से नदी की धार के विलुप्त होकर नदी सूखने की अवस्था में आ चुकी है।

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गहरे नलकूपों का उत्खनन
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले की विंध्य पर्वतमाला के झिरी गांव से निकलने वाली बेतवा के उद्गम स्थल के आस-पास फैले घने जंगल का पिछले ढाई दशक में भूमफिया ने दो सौ एकड़ के जंगल का सफाया कर जमीन पर कब्जा कर लिया है। जंगली जानवरों के लिए सुरक्षित वन भूमि को राज्य ने उपयोगिता बदलकर कानून संशोधन के माध्यम से जंगली भूमि पर जनजाति समुदाय को खेती के पट्टे उपलब्ध करा दिये हंै। सघन जंगल से निकलने वाली बेतवा नदी के आसपास 500 एकड़ भूमि पर अब जंगल काटकर धान एवं गेहूं की खेती हो रही है। इस जंगल की दो सौ एकड़ भूमि बेतवा नदी को निरंतर रिचार्ज किया करती थी। नदी की तटीय भूमि के लगभग 200 एकड़ क्षेत्र में खेती के लिए पांच सौ से लेकर एक हजार फीट गहरे नलकूपों का उत्खनन हो चुका है। अंतत: बेतवा की धार तब टूटी जब सिंचाई की चाहत में नदी के उद्गम बिंदु में ही उत्खनन कर दिया गया है। जिससे दुष्परिणाम में अब बेतवा नदी का जल स्त्रोत अपनी दिशा बदलकर भूमिगत हो चुका है। जबकि पूर्व में भी उद्गम से पतली धार के रुप में आगे बढ़ी बेतवा नदी के चंद दूरी के फासले पर मंडीदीप औद्योगिक क्षेत्र का रसायन युक्त पानी वर्षो से नदी को गंदे नाले में परिवर्तित कर ही रहा है। इसके बाद राजधानी भोपाल सहित नदी के किनारे पर स्थित गांवों एवं शहरों का मल-मूत्र युक्त गंदगी को बगैर ट्रीटमेंट किए हुये नदी में डाला जा रहा है।
केमिकल बेतवा नदी में समाहित किया जा रहा
बेतवा अपनी सहायक छोटी-छोटी नदियां हलाली, कालियासोत, सिंध, उर्वशी, बीना, धासन, जामनी के सहारे नदी 590 किमी का सफर तय कर हमीरपुर (उप्र) में युमना नदी में समाहित हो जाती है। लेकिन इसके पूर्व यह हलाली, माताढ़ीला एवं राजघाट के माध्यम से लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करती हुई बिजली उत्पादन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करती है। केन्द्र सरकार की नदी जोड़ो परियोजना में मप्र की कैमूर पहाडिय़ों से निकलने वाली केन नदी के पानी को दो सौ इक्कीस किमी लम्बी नहर के निर्माण से पन्ना जिले में निर्मित दौधन बांध के माध्यम से बेतवा में मिलाया जाना प्रस्तावित। जिससे उप्र एवं मप्र के हजारों गांवों को पेयजल एवं सिंचाई का प्रबंध हो सकेगा। लेकिन बेतवा नदी के उद्गम के पास स्थापित मंडीदीप औद्योगिक परिसर से इतना अधिक केमिकल बेतवा नदी में समाहित किया जा रहा है कि अपने पहले ही पड़ाव विदिशा पर यह नदी एक गंदे नाले का रुप धारण कर लेती है। केमिकल के सफेद एवं हरे रंग से आच्छादित इस नदी पर विदिशा नगरपालिक छ: अलग-अलग नालों से बगैर सीवेज टीट्रमेंट किए गंदगी को मिलाती है। जिससे नदी में घुलनशील कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा अपने खतरनाक स्तर को पार कर चुकी है।
सामाजिक आन्दोलन हुए
नदी में मिलने वाला चोर घाट नाला जो विदिशा सहित राजधानी भोपाल का निस्तार लेकर आता है। नदी से बेरोकटोक मिलन करता है। नाले को रोकने पिछले तीस सालों में बड़े-बड़े सामाजिक आन्दोलन हुए भी लेकिन नाले की धार बदलने के सारे प्रयास विफल ही रहे है। पिछले बाईस सालों से विदिशा शहर का घरेलू पेयजल उपभोक्ता संगठन बेतवा उत्थान समिति के सदस्य प्रतिदिन नदी के घाटों से कचरा निकालने अपने निजी प्रयासों जुटे रहते है। कारखानों के खतरनाक रसायनों एवं त्यौहारों के दौरान नदी में मूर्ति विर्सजन से पानी में प्लास्टर ऑफ पेरिस सहित मूर्तियों के लेपित रंगों के कुप्रभाव से नदी में जलचरों का जीवन ही समाप्त हो चुका है।
जनता में प्यास बुझाने की आस
नदी के अस्तित्व के संकट को विदिशा के पास हालाली नदी का बांध अपने छोड़े पानी से नदी की टूटती सांसों को समय-समय पर जीवनदान देता रहता है। इस नदी को अत्याधिक जहरीला बनने के बाद भी केन-बेतबा लिंक परियोजना के माध्यम से केन्द्र सरकार सूखे से बेहाल बुंदेलखंड की जनता में प्यास बुझाने की आस जगा रही है। सन् 2005 में केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना की राज्य शासन द्धारा प्रेषित डीपीआर रिपोर्ट में बेतवा नदी के उद्गम के पास मकौडिया गांव में नदी पर डेम निर्माण के द्धारा बेतवा में जल के प्रवाह को निरन्तर रखने की योजना सम्मिलित की गई थी। इस डेम के माध्यम से विदिशा एवं रायसेन जिलों के एक सौ चालीस गांवों में पेयजल के साथ 62 हजार 230 हेक्टेयर भूमि भी सिंचित करने का प्रस्ताव था। लेकिन परियोजना के भूमिपूजन से पूर्व मप्र सरकार ने डूब क्षेत्र अत्याधिक बताकर मकौडिया डेम निर्माण को योजना से अलग कर दिया है। इस संशोधन के बाद योजना में नदी जल की शुद्धता पर प्रश्नचिंह अंकित हो गया है। सम्पूर्ण परियोजना पहले से ही इस गंदगी को बेतवा में मिलने से रोकने की चर्चा नहीं हुई है। लेकिन पहले जहां नदी को जहरीला एवं अब उद्गम ही समाप्त हो चुका है। ऐसे में बेतवा-केन लिंक परियोजना के भविष्य पर ही संकट आन पड़ा है। मरणासन्न बेतवा को पुर्नजीवित किये बगैर नदी जोड़ो योजना की सफलता अब संदिग्ध हो चुकी है।
बेतवा का पुर्नजीवन बेहद मुश्किल
गर्मी के मौसम में बेतवा नदी अपने उद्गम से लेकर मप्र राज्य की सीमा में सिर्फ निस्तार एवं औद्योगिक इकाईयों से छोड़े गये पानी का संवाहक बनी रहती है। वह स्थान जहां पर बेतवा एवं केन युमना नदी से मिलती है, जल परीक्षण में बेतवा जल का टीडीएस में घुलित लवण मात्रा का स्तर 900 मिली ग्राम प्रति लीटर एवं केन नदी का पानी 600 टीडीएस के स्तर का परिणाम देता है। जबकि पेयजल के रुप में 200 से 500 टीडीएस की मात्रा ही है। यमुना की प्रदूषण रिपोर्ट में बेतवा एवं केन से युमना के प्रदूषण को रेखांकित किया गया है। इन हालातों में सरकार प्रस्तावित परियोजना के तहत जल को सुरक्षित जीवन उपयोग की अनुमति नहीं दे सकती है। केन-बेतवा लिंक परियोजना की 2005 की डीपीआर में बेतवा नदी के उद्गम के पास मकौडिया बांध बनाने का प्रस्ताव विशेषकों ने सिर्फ इसलिए ही रखा था, ताकि नदी का प्रवाह निरन्तर गतिमान बना रहे। जलवायु परिवर्तन एवं मानवी अतिक्रमण, जंगलों की निरंतर कटाई एवं नदी भूभाग पर अवैध अतिक्रमण कर धान एवं गेहंू की खेती को रोके बगैर बेतवा का पुर्नजीवन बेहद मुश्किल है। जापान की शीघ्र जंगल विकसित करने की मियावाकी पद्धति केन-बेतवा लिंक परियोजना में शुद्धता के लिए वरदान साबित हो सकती है। केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिये बेतवा नदी के पुर्नजीवन के प्रयास केन्द्र एवं राज्य सरकार सहित समाज को अब युद्ध स्तर पर करना होंगे।
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