राज्य कृषि समाचार (State News)

कैसे बनाएं बीजमृत, जीवामृत – जानिये

12 दिसम्बर 2022, टीकमगढ़: कैसे बनाएं बीजमृत, जीवामृत – जानिये – कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ – प्राकृतिक खेती पर डॉ. बी.एस. किरार, प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डॉ. आर.के. प्रजापति, डॉ. यू.एस. धाकड़, डॉ. एस.के. जाटव, डॉ. आई.डी. सिंह एवं जयपाल छिगारहा का प्रशिक्षण । प्राकृतिक खेती के महत्व एवं उपयोगिता

यह पद्धति प्रकृति, विज्ञान, आध्यात्मिक एवं अहिंसा पर आधारित शाश्वत कृषि पद्धति है। इस पद्धति में रासायनिक खाद, जैविक एवं जहरीले कीटनाशक, फफूंदनाशक एवं शाकनाशी रासायनिक दवाओं का प्रयोग नहीं होता। आप केवल एक देशी गाय की सहायता से प्राकृतिक खेती कर सकते हैं। इस पद्धति से शस्य उत्पादन, जहर मुक्त, उच्च गुणवत्ता युक्त, पोष्टिक एवं स्वादिष्ट होगा। इन गुणों व विशेषताओं के कारण उपभोक्ताओं द्वारा इनकी माँग अधिक होने से मूल्य भी अच्छा मिलेगा। इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए प्रत्येक किसान को कम लागत वाली प्राकृतिक खेती को अपनाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। प्राकृतिक खेती के प्रमुख घटक बीजामृत, जीवामृत, घन जीवामृत एवं वापसा और वृक्षाकार प्रबंधन को अपनाने की आवश्यकता है।

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बीजामृत घोल

बीजामृत घोल तैयार कर बीजों का उपचार (संशोधन) करना बहुत जरूरी है। बीजामृत द्वारा शुद्ध बीज जल्दी एवं अच्छी मात्रा में अंकुरित होते हैं और जड़ें तेजी से बढ़ती हैं साथ ही बीज एवं भूमि द्वारा फैलने वाली बीमारियाँ रूकती हैं और पौधे की वृद्धि अच्छी होती है। घन जीवामृत अंतर्गत 100 कि.ग्रा. देशी गाय का गोबर, 1 कि.ग्रा. गुड़, 2 कि.ग्रा. दलहन का आटा (चना, उड़द, मूँग, अरहर), एक मुठ्ठी पीपल / बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी और थोड़ा सा गोमूत्र, आदि पदार्थों को अच्छी तरह से मिलाकर गूँध लें ताकि उसका हलुवा, लड्डू जैसा गाढ़ा बन जाये। उसे 2 दिन तक बोरे से ढककर रखें और थोड़ा पानी छिड़क दें। इस गीले घन जीवामृत को आप छाया या हल्की धूप में अच्छी तरह से फैलाकर सुखा लें। सूखने के बाद इसको लकड़ी से पीटकर बारीक करें और बोरों में भरकर छाया में भण्डारण करें। घन जीवामृत को आप सुखाकर 6 महीने तक रख सकते हैं। फसल की बुवाई के समय प्रति एकड़ 100 कि.ग्रा. छना हुआ बीज में मिलाकर बुवाई करें।       

जीवामृत

जीवामृत एक एकड़ जमीन के लिए देशी गाय का गोबर 10 कि.ग्रा., देशी गाय का मूत्र 8-10 ली., गुड़ 1-2 कि.ग्रा., बेसन 1-2 कि.ग्रा., पानी 180 ली. और पेड़ के नीचे की 1 कि.ग्रा. मिट्टी, आदि सामग्रियों को एक प्लास्टिक ड्रम में डालकर लकड़ी के एक डण्डे से हिलाकर घोलना चाहिए। इस गोल को 2-3 दिनों तक छाया में सड़ने के लिए रख देना चाहिए। दिन में 2 बार लकड़ी के डण्डे से घड़ी की सुई की दिशा में घोल को 2 मिनट तक घुमाना चाहिए। जीवामृत घोल को बोरे से ढक कर रख देना चाहिए। जीवामृत घोल को गर्मी में 7 दिनों तक और सर्दियों में 10-15 दिनों तक उपयोग में लाया जा सकता है। जीवामृत घोल को सिंचाई के साथ देना चाहिए।

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