पराली से नुकसान-जागरुकता की आवश्यकता
- सुनील गंगराड़े,
मो.: 9826034864
16 नवम्बर 2022, भोपाल । पराली से नुकसान-जागरुकता की आवश्यकता – पंजाब, हरियाणा में धान फसल कटाई के बाद हमारे किसान भाई फसल के बचे रह गए ठूंठों को जो पराली कहलाते हैं, जला देते हैं। अक्टूबर-नवम्बर में रबी फसल की बुवाई जैसे गेहूं, चने के लिए खेत खाली करना होते हैं। पराली की जमीन से काटने के बजाय किसान अपना समय बचाने के लिए पराली में आग लगा देते हैं।
पराली का धुआं देश की राजधानी दिल्ली और पूरे एनसीआर को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बने इस धुएं से बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर चिंताएं तो हर स्तर पर की जा रही हैं। इसमें सरकार के साथ-साथ आप-हम भी दोषी हैं। सारे नियम कानूनों, समझाइशों के बावजूद ‘स्वतंत्र देश स्वतंत्र नागरिक’ के रूप में हम अपने अधिकारों का वह उपयोग करते हैं, जो नहीं करना चाहिए। किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता में जुर्माने और जेल का प्रावधान है। परंतु इन सब सजाओं और आर्थिक दंड के बाद भी पराली जलाना बदस्तूर कायम है। किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए फसल अवशेष के लिए सरकारों को आर्थिक सहयोग के साथ यांत्रिक सुविधाएं भी बढ़ाना होगी। पराली के समाधान के लिए हैप्पी सीडर, सुपर सीडर मशीनों का उपयोग ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए। सरकार इन मशीनों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए ये यंत्र किसानों को अधिक से अधिक अनुदान पर उपलब्ध कराएं।
इसके अतिरिक्त पराली का औद्योगिक उपयोग को प्रोत्साहन दें, जिसमें पराली से कागज, बोर्ड व अन्य उपयोग का सामान बनाया जा सके। फिजूल समझ कर खेतों में जलाई जाने वाली पराली और उसके धुएं से त्रस्त गांव-शहर के लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए इसका व्यवसायिक उपयोग ही अंतिम उपाय है। उत्तरी भारत में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली के लिए पराली के धुएं की समस्या गैस चेंबर का रूप लेती जा रही है। पराली को रिसायकिल कर पैकिंग मटेरियल, बायो-फ्यूल, जैविक खाद उत्पादन, भवन निर्माण सामग्री में प्रयोग-उपयोग किया जा सकता है।
फसल कटाई के बाद पराली से खाद बनाने, पशु आहार निर्माण आदि उपयोग पर शोध अनुसंधान होना चाहिए। वैसे इस दिशा में सरकार के प्रयास जारी हैं, परन्तु इन कोशिशों में निरंतरता का अभाव है। विस्तार माध्यमों के जरिए किसानों को पराली जलाने से होने वाले नुकसान के प्रति जागरुक करने की आवश्यकता है।
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