राज्य कृषि समाचार (State News)संपादकीय (Editorial)

कोदो के बारे में फैले भ्रम को दूर करे सरकार !

लेखक: मधुकर पवार 

22 जनवरी 2025, भोपाल: कोदो के बारे में फैले भ्रम को दूर करे सरकार ! – पिछले सप्ताह मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 10 हाथियों की मौत के मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की जांच रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है कि हाथियों की मौत कोदो की फसल खाने से हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कोदो की फसल में माइकोटॉक्सिन पाया गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण कोदो में फंगस का विकास हुआ था। एन.जी.टी. ने सन 1933 में तमिलनाडु में भी इसी तरह की घटना के संदर्भ का उल्लेख करते हुए कहा है कि वहां भी कोदो खाने से 14 हाथियों की मौत हो गई थी।

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पिछले साल 2024 में उमरिया जिले के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में खितौली और पतौर रेंज में 29 अक्टूबर को 10 हाथी मृत पाए गए थे। मृत हाथियों के विसरा के नमूने केंद्र सरकार के भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली (उत्तर प्रदेश) भेजे गए थे जिसकी रिपोर्ट में पाया गया है कि हाथियों के विसरा में साइक्लोपियाज़ोनिक एसिड पाया गया है जिसके कारण हाथियों की मौत हुई है।

उमरिया जिला में करीब 12 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में कोदो और कुटकी की फसल की बोवनी की गई थी। बताया गया है फसल पकने के बाद कुछ किसानों ने फसल काटकर ढेरी लगाकर रख दी थी। उसी दौरान बारिस होने और बाद में धूप निकलने से उमस / गरमी से ढेरी लगाकर रखी गई गीली फसल में फफूंद लग गई जिसे हाथियों ने खा लिया । कुछ लोगों का यह भी कहना है कि हाथियों ने खड़ी फसल का ही सेवन किया था। इससे स्थिति और अस्पष्ट हो गई। वास्तव में हाथियों ने कोदो की ढेरी को खाया या खड़ी फसल को, इसकी भी जांच होनी चाहिए। वन विभाग द्वारा मृत हाथियों का विसरा ही जांच के लिये भेजा गया जबकि पास के ही खेतों में फसल के नमूने भी भेजने चाहिये थे। इससे यही सिद्ध हो रहा है कि कोदो की फसल खाने से ही हाथियों की मौत हुई है जबकि कुछ लोग कह रहे हैं कि फसल काटकर ढेरी लगाकर रखी गई फसल में लगी फंगस हाथियों की मौत का कारण बना है। इसी के बाद कुछ लोगों और पशुओं के बीमार होने का सम्बंध भी कोदो से लगा दिया गया। हाथियों की मौत के बाद कोदो की कटी फसल की ढेरी को जला दिया गया और वहां के आसपास की करीब 12 हेक्टेयर क्षेत्र में लगी कोदो की फसल को भी बिना जांच के ही नष्ट कर दिया गया । इससे भी यही संदेश गया कि सम्भवत: किसानों ने कोदो की फसल पर कीटनाशक का छिड़काव किया होगा । यदि कीटनाशक का प्रयोग किया गया था तो जांच में इसका भी खुलाशा हो जाता लेकिन बिना जांच के ही खड़ी फसल को जेसीबी से नष्ट करना समझदारी वाला कदम नहीं कहा जा सकता। वैसे आमतौर पर कोदो की फसल पर कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है लेकिन वन विभाग को आशंका है कि किसानों ने कीटनाशक का प्रयोग किया था तो इसकी भी जांच होना जरूरी थी । वन विभाग ने जल्दबाजी में निर्णय लेकर बिना जांच के ही खड़ी फसल को भी नष्ट कर दिया जो कि पूरी तरह अनुचित है। इस भ्रम को समाप्त करना बेहद जरूरी है वरना पौष्टिक तत्वों से भरपूर कोदो के बारे में भ्रम बने रहने से इसका उत्पादन और खपत में कमी आ सकती है । इसके साथ ही जिन किसानों की खड़ी फसल को नष्ट कर दिया गया है, उन्हें बाजार भाव से मुआवजा दिया जाना चाहिए।

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बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के जिम्मेदार अधिकारी के हवाले से जारी बयान में बताया गया है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण – एनजीटी ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) को स्थानीय स्तर पर एक समिति गठित करने का आदेश दिया गया है। साथ ही कलेक्टर और कृषि विभाग के सहयोग से जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश दिए गए हैं। वर्तमान में हाथियों की सुरक्षा के लिए एक विशेष दल गठित किया गया है जो लगातार निगरानी कर रहा है। यह कदम भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने में कारगर सिद्ध हो सकता है।

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कोदो आदिवासियों का मुख्य आहार है। कोदो खाने के बाद किसी और वजह से पेट में दर्द, बुखार उल्टी, दस्त या और कोई दिक्कत आती है तो उसे कोदो से जोड़कर देखा जा रहा है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। भ्रम और अफवाह पर पूरी तरह स्थिति साफ करने की जरूरत है। यदि इस पर तुरंत कोई निर्णय नहीं लिया गया तो हो सकता है, अगले वर्ष कोदो के रकबे में कमी आ सकती है। यदि ऐसा हुआ तो मोटा अनाज को वैश्विक बाजार में पहुंचाने के प्रयास को धक्का लगेगा। पिछले तीन वर्षों से देश में मिलेट्स काफी लोकप्रिय हो चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार मिलेट्स और इसके फायदों का जिक्र करते हैं। जी- 20 के सम्मेलन के दौरान मिलेट्स को लोकप्रिय बनाने की कोशिश की गई और इसमें सफलता भी मिली है। बेहद गुणकारी होने की वजह से ही लोग अलग-अलग तरह के मिलेट्स को अपने भोजन में शामिल कर रहे हैं। मिलेट्स में ज्वार, बाजरा, कंगनी, रागी आदि शामिल हैं। इन्हीं में से कोदो भी अपने अनेक गुणों की वजह से सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। कोदो के बारे में भांतियां फैलने से इसकी मांग भी प्रभावित हो रही है और कोदो उत्पादक किसानों को अपेक्षित कीमत भी नहीं मिल पा रही है। सोशल मीडिया के इस दौर में कोदो के बारे में भ्रम निचले स्तर तक फैल चुका है। सरकार को इस दिशा में उचित कदम उठाने चाहिये ताकि कोदो के बारे में आम उपभोक्ताओं में भ्रम की स्थिति को समाप्त किया जा सके। कोदो को गरीबों का चावल भी कहा जाता है अत: भ्रम की स्थिति बने रहने से न केवल कोदो उत्पादक किसानों को नुकसान होगा बल्कि गराबों को पौष्टिक आहार से भी वंचित रहना पड़ सकता है।

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