गीता बाई ने अपनी मेहनत से लिखी कामयाबी की कहानी
03 दिसंबर 2025, रायसेन: गीता बाई ने अपनी मेहनत से लिखी कामयाबी की कहानी – मन में कुछ करने का इरादा हो और वह इरादा पक्का हो तो मुसीबतें चाहे कितनी भी आएं, सफलता जरूर मिलती है। इस बात को रायसेन जिले के सिलवानी विकासखण्ड की सियरमउ गांव की श्रीमती गीता बाई ने चरितार्थ किया है। कभी आर्थिक संकट से जूझ रहीं गीता बाई ने स्व-सहायता समूह से जुड़ने के बाद आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त पहचान बनाई है और आज प्रति वर्ष लगभग सात से आठ लाख रू आय अर्जित कर रही हैं।
आठवीं कक्षा तक पढ़ीं श्रीमती गीता बाई वर्ष 2018 में कुश स्व-सहायता समूह से जुड़ी। उनके द्वारा आजीविका गतिविधियों में कृषि औषधीय पौधे, जैविक सब्जियां तथा वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन, मत्स्य पालन एवं मुर्गी पालन का कार्य किया जा रहा है। वह महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं। गीता बाई कहती हैं कि सरकार द्वारा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक योजनाएं तथा कार्यक्रम चलाए जा रहे है, महिलाओं को इनका लाभ लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
बता दें कि श्रीमती गीता बाई कुशवाह के परिवार के पास 5 एकड़ जमीन थी और परिवार पूरी तरह से कृषि पर निर्भर था। जलवायु एवं मौसम में अनिश्चितता के कारण वर्षा आधारित कृषि में उत्पादन की अनिश्चितता के कारण परिवार का गुजर बसर मुश्किल से होता था। परिवार को कृषि से अधिक लाभ न होने के कारण आय के लिए मजबूरन परिवार को आसपास के ग्रामों में खेतिहर मजदूर के रूप में काम करना पडता था। इन मुश्किल परिस्थितियों के कारण परिवार को मुश्किल से 60 हज़ार -80 हज़ार रूपये वार्षिक आय होती थी। जिससे उनको अपने बच्चों की बुनियादी आवश्यकताएं पूरी करने में बहुत ही समस्याएं आती थी। इसके बाद श्रीमती गीता ने अपने ग्राम सियरमउ में मध्यपद्रेश डे. राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के समूह कुश स्व सहायता समूह में शामिल हो गईं, शुरुआत में महिलाओं ने प्रत्येक बैठक में 100 रुपये जमा करना शुरू किया एवं आजीविका मिशन से प्राप्त चक्रीय राशि समूह से लेकर सब्जी की खेती की शुरुआत की गई। सब्जियों की खेती में रासायनिक खाद बीज की लागत ज्यादा होने के कारण लाभ कम होता था इसको देखते हुए गीता बाई ने जैविक खेती करना शुरू किया जिसमें उनके शुरुआती दिनों में अधिक परिश्रम करना पडा लेकिन इसके बाद उन्हें इसमें लाभ होने लगा और आज वह अपनी 03 एकड़ की भूमि में जैविक खेती उन्नत तरीके से कर रही है। इससे उन्हें 2 से 3 लाख रुपये सालाना आय अर्जित कर रही है।
श्रीमती गीता ने कुछ महीनों के बाद सामुदायिक निवेश निधि से कर्ज लेकर उन्होंने अपने खेत में भूमि के लिए नलकूप लगवाया, जिससे उनकी 5 एकड भूमि की सिंचाई होने लगी और उत्पादन में वृद्धि हुई। श्रीमती गीता बाई ने कृषि और संबद्ध गतिविधियों के तहत विभिन्न प्रशिक्षण प्रक्रियाओं में भाग लिया। सब्जियों की खेती में रासायनिक खाद बीज की लागत ज्यादा होने के कारण लाभ कम होता था इसको देखते हुए गीता बाई ने जैविक खेती करना शुरू किया जिसमें उनको शुरूआती दिनों में अधिक परिश्रम करना पड़ा लेकिन इसके बाद उन्हें इसमें लाभ होने लगा और आज वह अपनी 03 एकड की भूमि में जैविक खेती उन्नत तरीके से कर रही है। इससे उन्हें 2 से 3 लाख रुपये सालाना आय अर्जित कर रही है। इसके अलावा वे किसानों को वर्मी कम्पोस्ट के साथ – साथ न्यूनतम मूल्य पर अन्य किसानों को कीटनाशक उपलब्ध भी कराती हैं। उन्होंने जैविक खेती के बाद मत्स्य उत्पादन और मुर्गी पालन भी शुरू किया है। लगभग 10 महीने में ही मछलियों का 9 क्विंटल उत्पादन हुआ। इस गतिविधि ने परिवार की औसत आय को लगभग 3 लाख प्रति वर्ष तक बढ़ाने में मदद की। इससे प्रेरित होकर उन्होंने जमीन पर 03 तालाबों का और निर्माण करवाया तथा अब मछली पालन से लगभग 4 से 5 लाख रूपये कमाती है। गीता बाई की आमदनी बढ़ने से उन्होंने समूह से ऋण लेकर कड़कनाथ मुर्गी पालन भी शुरू किया। श्रीमती गीता बाई और उनके पति कुंदन बताते हैं कि एसआरएलएम ने उनके परिवार की आय में वृद्धि के लिए निरंतर मार्गदर्शन प्रदान किया है और उन्हें अपनी आजीविका बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है।
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