कृषि विभाग में उच्च् पदों के प्रभार की फाईल अटकी, अधिकारियों की कमी
कैसे होगा कृषक हित की योजनाओं का क्रियान्वयन ?
18 नवंबर 2024, भोपाल: कृषि विभाग में उच्च् पदों के प्रभार की फाईल अटकी, अधिकारियों की कमी – किसानों के कल्याण के लिए बनाए गए कृषि विभाग की हालत बदतर होती जा रही है। हर माह अधिकारी कर्मचारी रिटायर्ड हो रहे हैं परन्तु भर्ती न के बराबर है। एक-एक अधिकारी के पास चार-चार शाखाओं का काम है। इस कारण किसी भी शाखा के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है। पेंडिंग कार्य बढ़ते जा रहे हैं, योजनाओं का क्रियान्वयन पिछड़ता जा रहा है। इसी वर्ष 2024 में केवल संचालनालय से ही लगभग 29 कर्मचारी अधिकारी रिटायर हो गए, परन्तु खाली हुए पद खाली चल रहे हैं। ऐसा लगता है अब निगम एवं मंडल कार्यालयों के साथ-साथ कृषि विभाग भी बंद होने की कगार पर आ रहा है। कोर्ट केस का हवाला देकर पदोन्नतियां रुकी पड़ी है, प्रभारी अधिकारी बनाने की फाईल पूरे विभाग से लेकर मंत्रालय तक गोते लगा रही है। कभी रुक जाती है, कभी चल जाती है परन्तु अंजाम तक कब पहुंचेगी यह बताने वाला कोई नहीं है। रिटायर अधिकारियों को पुन: संविदा पर रखने का प्रयास किया जा रहा है, परन्तु जो कार्यरत हैं उन्हें पदोन्नत कर या उच्च वर्ग का प्रभार देकर काम लेने में शासन कोई प्रयास नहीं कर रहा है।
प्रथम श्रेणी के 100 पद खाली
कृषि विभाग में पदस्थ केवल प्रथम श्रेणी के अधिकारियों की बात करें तो पूरे प्रदेश में लगभग 178 पद स्वीकृत हैं इसमें से केवल 72 भरे हैं, शेष 106 पद रिक्त पड़े हैं, फिर काम कैसे होगा? जिला, संभाग एवं संचालनालय स्तर पर तो कार्य घिसट ही रहा है। उधर किसानों के खेतों पर जाकर उन्हें जरूरी सलाह देना, योजनाओं के लाभ बताने वाला कोई नहीं है। सरकार को काम सभी पूरे चाहिए परन्तु करने वाला कोई नहीं है।
प्रदेश में अपर संचालक के 11 पद स्वीकृत हैं। इसमें केवल दो भरे हैं और 9 खाली हैं। इसी प्रकार संयुक्त संचालक के कुल 22 पद स्वीकृत हैं इसमें केवल 4 पद भरे हैं शेष 18 रिक्त पड़े हैं। सबसे महत्वपूर्ण और किसानों तक जीवंत संपर्क करने वाले उपसंचालक, परियोजना अधिकारी आत्मा तथा कृषक प्रशिक्षण केन्द्र के प्राचार्य के कुल 145 पद स्वीकृत हैं इसमें से मात्र 66 पदों पर अधिकारी कार्यरत हैं शेष 79 पद रिक्त हैं। राज्य में प्रथम श्रेणी के अधिकारियों की यह स्थिति है तो निचले स्तर के कर्मचारियों की स्थिति क्या होगी यह अंदाजा लगाया जा सकता है।
सहायक संचालकों ने की प्रभार की मांग
प्रदेश का कृषि विभाग कराह रहा है परन्तु शासन का कोई सर्जन या डॉक्टर मरहम लगाने को तैयार नहीं है। अभी हाल ही में 2008 से 2010 बैच के सहायक संचालकों का एक प्रतिनिधि मंडल भी संचालक कृषि से मिलकर उच्च पद का प्रभार देने की मांग कर चुका है। उनका कहना है कि वरिष्ठता के अनुसार प्रभारी पद पर पदोन्नति देने से शासन पर वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा, केवल प्रभारी पद नाम होगा, इसके बावजूद शासन खामोश है। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में सहायक संचालकों के लगभग 750 से अधिक पद हैं, इसमें भी 50 फीसदी से अधिक पद रिक्त हैं।
बहरहाल जहां एक ओर सरकार कृषि को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर विभाग की दशा दयनीय होती जा रही है। अधिकारी-कर्मचारी कम होते जा रहे हैं। ऐसे में कृषक हित की योजनाओं का समुचित लाभ किसानों को कैसे मिलेगा?
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