राज्य कृषि समाचार (State News)

बया पक्षियों का इंजीनियर

लेखक: डॉ दीपक हरि रानडे, कृषि महविद्यालय खंडवा

22 जुलाई 2024, भोपाल: बया पक्षियों का इंजीनियर – बया जो वीवर बर्ड के नाम से जाना जाता है. यह हल्के पीले रंग का बया बुनकर प्रजाति का नन्हा सा पक्षी घास के छोटे-छोटे तिनको और पत्तियों से बुनकर के लालटेन की तरह लटकता बेहद ही खुबसूरत घोंसले का निर्माण करता है. इसलिए इसे बुनकर पक्षी भी कहा जाता है. इसी कुशलता के कारण इसे पक्षियों का इंजीनियर भी कहा जाता है I

सभी चिड़ि‍या ज्यादातर दो डालों के बीच में अपना घोंसला बनाती हैं, लेकिन बया एक डाली पर इस तरीके से अपना घोंसला बनाती है कि वो हर वक्त झूलता रहता है। इसके दो फायदे हैं। एक तो ऐसे घोंसलों में दूसरे पक्षियों के आने का खतरा कम रहता है और दूसरा ये कि‍ बया और उसका परिवार झूला झूलने का भी मजा लेता है। बया पक्षी को दुनिया भर में अपने सुंदर घोंसलों के लिए जाना जाता है I

ऐसा ही एक मनोरम दृष्य कृषि महाविद्यालय खंडवा के एक कुये मे देखा गया है. कुये मे बरगद की लटकती टहनियों पर इन विलुप्त होती सुंदर बया चिड़ियों द्वारा बहुत ही सुंदर घोंसलों का बडी़ ही चतुराई से निर्माण किया गया है. इन्हे यूँ ही पक्षियों का इंजिनियर नहीं कहा जाता है I

बया गोरैया की तरह के पक्षियों की एक प्रजाति है जो गोरैया की तरह मनुष्य के घरों में न रहकर पेड़ की टहनियों में लटकता हुआ सुन्दर घोंसला बनाकर रहती है। यह समूह में रहना पसन्द करती है क्योंकि इसकी वजह से इसके बच्चों को परभक्षियों से सुरक्षा प्रदान होती है। यह अपने घोंसले बस्ती के रूप में बनाती हैं और प्रजनन काल में एक ही वृक्ष में या आस-पास के वृक्षों में कई घोंसले एक साथ देखने को मिलते हैं। इस व्यवहार का सम्बन्ध ‘संख्या में सुरक्षा’ से है I

बया पक्षी-समूह में रहना पसन्द करती है और काफ़ी शोरगुल करती है। यह अपने घोंसले पानी के निकट बनाती है या फिर उन टहनियों में बनाती है जो पानी के ऊपर हों। अमूमन कांटेदार या ताड़ के वृक्षों में यह अपना घोंसला बनाना पसन्द करती है क्योंकि इसकी वजह से इसके बच्चों को परभक्षियों से सुरक्षा प्रदान होती है। यह अपने घोंसले बस्ती के रूप में बनाती हैं और प्रजनन काल में एक ही वृक्ष में या आस-पास के वृक्षों में कई घोंसले एक साथ देखने को मिलते हैं। इस व्यवहार का सम्बन्ध ‘संख्या में सुरक्षा’ से है।

बया बीजों की तलाश में पक्षी-समूह में निकलती है और पौधों तथा ज़मीन से बीज चुगती है। पक्षी-समूह विभिन्न संरचनाओं में उड़ते हुए जटिल पैंतरे करते हैं। वह धान तथा अन्य अन्न के खेतों में जाकर चुगती हैं और कभी-कभी पकती हुई फ़सल को नुकसान भी पहुँचाती हैं, जिसकी वजह से यह किसान की दुश्मन बन जाती हैं। यह पानी के पास के सरकंडों में अपना डेरा जमाती है। यह खाने और घोंसला बनाने की सामग्री के लिए घास तथा फ़सलों, जैसे धान, पर निर्भर करती है। फ़सलों के बीज यह रोपण के समय और परिपक्व होने के समय, दोनों ही परिस्थितियों में चट कर जाती है और किसानों का क्रोध मोल लेती है। इसके आहार में कुछ कीट, जैसे तितली भी होते हैं  और इनको छोटे मेढक तथा सीप, घोंघा इत्यादि भी (खासकर अपने बच्चों को खिलाने के लिए) ले जाते देखा गया है। इसके मौसमी प्रवास भोजन की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं। इसका कलरव छोटी-छोटी “चीं-चीं” की ध्वनि होता है। जब प्रजनन काल न हो तो यह मंद आवाज़ में ध्वनि करते हैं।

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