हर गांव में हो पेयजल गुणवत्ता जांच
12 अगस्त 2024,भोपाल: हर गांव में हो पेयजल गुणवत्ता जांच – बारिश का मौसम चल रहा है। इस समय बुखार, दस्त, हैजा, डायरिया, पीलिया, टायफाईड, मलेरिया आदि रोगों का भी प्रकोप बढ़ गया है। अस्पतालों में इन बीमारियों के मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। यह स्थिति हर साल ही उत्पन्न होती है। यदि इन बीमारियों के होने के कारणों पर गौर करें तो इनमें से अधिकांश बीमारियां अस्वच्छ पेयजल से भी होती हैं। इसलिये हर साल बरसात के पहले और बरसात के दौरान स्वच्छ पेयजल के उपयोग करने के बारे में समझाईश दी जाती है। बावजूद इसके बरसात के दिनों में अस्वच्छ पेयजल से होने वाली बीमारियों से ग्रसित होने वाले मरीजों की संख्या में कोई कमी नहीं दिखाई देती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अब अधिकांश गांवों में सिंचाई और पेयजल के लिये बोरवेलों पर ही साल-दर-साल निर्भरता बढ़ रही है। अधिकांश गांवों में बोरवेल के पानी का उपयोग पीने के लिए किया जा रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जल जीवन मिशन शुरू किया है। इसके तहत नलों के जरिए प्रत्येक घर में पेयजल पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन यह अभी प्रारंभिक स्थिति में ही है। शहरों में तो नगर पालिकाओं या नगर निगमों द्वारा घरों में पेयजल पहुंचाने की व्यवस्था की जाती है। नगर निकायों द्वारा पानी को उपचारित कर आपूर्ति की जाती है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अभी ऐसा नहीं है। ग्रामीणजन बोरवेल या कुओं के पानी का उपयोग पेयजल के लिये करते हैं। बरसात के दिनों में कुएं में वर्षा का जल ही भूजल और बाह्य स्रोतों से आता है। कुओं के पानी में विषाणु भी पैदा हो जाते हैं जो बीमारी होने का कारण बनते हैं। पानी को साफ करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा सार्वजनिक कुओं में ब्लीचिंग पाउडर, क्लोरीन आदि डालने की व्यवस्था तो की जाती है लेकिन निजी कुओं के लिये यह सुविधा नहीं मिल पाती है। हालांकि जागरूक लोग कुओं में ब्लीचिंग पाउडर, क्लोरीन आदि डाल देते हैं। बोरवेल के पानी का उपयोग पेयजल के लिए भी किया जाता है लेकिन वह पानी पीने लायक है या नहीं, इसकी जांच, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं की जाती है। हालांकि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पंचायत स्तर पर पेयजल की जांच की व्यवस्था की है लेकिन यह केवल कागजी कार्रवाई बनकर रह गई है। बोरवेलों से चार-पांच सौ फुट से लेकर हजार-बारह सौ फुट तक भूजल स्तर नीचे चला गया है। जमीन के अंदर से जो पानी निकाला जाता है उसमें आर्सेनिक, फ्लोराइड और अन्य हानिकारक तत्व मौजूद रहते हैं जिनका स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से रासायनिक खाद के कुछ अंश पानी के जरिए रिसकर जमीन के अंदर जाकर पानी में मिल जाते हैं जिससे पेयजल की गुणवत्ता खराब होती है।
केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय, कृषि विकास एवं किसान कल्याण मंत्रालय का कार्य भले ही अलग-अलग होता है लेकिन इन सब का लक्ष्य ग्रामीणों का सर्वांगीण विकास ही होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इन मंत्रालयों का सीधा वास्ता ग्रामीण और खासतौर से किसानों से होता है। आज भी करीब 70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी कृषि से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य के लिए सबसे जरूरी पेयजल की गुणवत्ता पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया। इसी का परिणाम है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की कमी से होने वाली बीमारियों से पीडि़तों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है।
केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने प्रत्येक घरों में नल से पेयजल पहुंचाने के लिए महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन की शुरुआत की है लेकिन शत-प्रतिशत घरों में नल से जल पहुंचाने में कई बरस लग सकते हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की गुणवत्ता की जांच करने पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। यदि पेयजल की गुणवत्ता मानक के अनुरूप नहीं है तो इसके उपचार करने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए। चूंकि ग्रामीण विकास मंत्रालय का दायित्व भी केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के पास है। वे लंबे समय तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। उनका कृषि से न सिर्फ लगाव है बल्कि वे स्वयं कृषक परिवार से ताल्लुक रखते हैं और कृषि भी करते हैं। उन्हें निश्चित ही ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की स्थिति की जानकारी होगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी पेयजल की जांच और स्वच्छ पेयजल की समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराने को अपनी प्राथमिकता में रखेंगे।
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