मध्य प्रदेश में कृषि अधिकारियों की नाराजगी: नई भर्ती और प्रमोशन की मांग तेज
मध्य प्रदेश में 9 साल में 1 लाख से ज्यादा अधिकारी, कर्मचारी रिटायर हुए
लेखक: अतुल सक्सेना, वरिष्ठ पत्रकार
31 मार्च 2025, भोपाल: मध्य प्रदेश में कृषि अधिकारियों की नाराजगी: नई भर्ती और प्रमोशन की मांग तेज – मध्यप्रदेश का कृषि महकमा वर्तमान में दो ज्वलंत मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रहा है। पहला- अधिकारी, कर्मचारियों की कमी तथा दूसरा- प्रमोशन न होना, ये दोनों कारण नासूर बनते जा रहे हैं। सरकारें बनाने और बिगाडऩे वाले किसानों की सुविधा एवं उनको समय पर जानकारी देने वाला कृषि विभाग आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। प्रदेश में आवश्यकता के मुकाबले लगभग आधे अधिकारी, कर्मचारियों के भरोसे विभाग घिसट रहा है। ब्लॉक स्तरीय कार्यालयों पर ताला लगाने की नौबत आ गई है। क्योंकि अमले की भारी कमी बनी हुई है, जिससे योजनाओं पर अमल नहीं हो पा रहा है और किसान परेशान हो रहे हैं। दूसरी तरफ सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के प्रमोशन में रिजर्वेशन और नई नियुक्तियों में रिजर्वेशन को लेकर पेंच फंसा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल से चल रहा यह मामला डॉ. मोहन यादव तक पहुंच गया है। मध्य प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण नियम निरस्त होने के कारण वर्ष 2016 से पदोन्नतियां बंद हैं। ऐसे में प्रदेश के सीएम डॉ. यादव ने 14 मार्च को विधानसभा में संकेत दिए थे कि जल्द ही कर्मचारियों के प्रमोशन पर सरकार फैसला करेगी। प्रदेश में पिछले 9 साल से कर्मचारी-अधिकारियों के प्रमोशन नहीं हुए हैं। 1 लाख से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी बिना प्रमोशन के रिटायर हो चुके हैं।
कृषि विभाग में लगभग 14000 से अधिक अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए पद स्वीकृत हैं, परन्तु समय के साथ-साथ सेवानिवृत्ति हो रही है। पद रिक्त होते जा रहे हैं।
दिसंबर-2024 की स्थिति के मुताबिक पूरे प्रदेश में लगभग 8000 से अधिक पद खाली पड़े हैं। संचालनालय स्तर का भी यही हाल है। इस वर्ष 2025 में ही केवल संचालनालय से लगभग 20 अधिकारी, कर्मचारी रिटायर हो जाएंगे। संचालक कृषि के दो पद स्वीकृत हैं, इसमें एक पद खाली है। वहीं अपर संचालक के कुल 11 पद में से 9 पद खाली हैं ।
विभाग में संयुक्त संचालक के कुल 22 पद स्वीकृत हैं इसमें से 18 पदों पर सन्नाटा है। संचालनालय स्तर पर मात्र 2 संयुक्त संचालक कार्यरत हैं।
उपसंचालकों के पद खाली
जिलों में कृषि विभाग के उपसंचालक एवं पीडी आत्मा के प्रदेश में कुल 143 पद स्वीकृत हैं इसमें 84 पद उपसंचालक के एवं 59 पद पी.डी. आत्मा के हैं। इसमें 80 पद खाली पड़े हैं। मात्र 63 कार्यरत हैं। संचालनालय में ही 19 पदों के विरुद्ध केवल 14 उपसंचालक हैं। प्रदेश में जब सुपर क्लास वन एवं क्लास वन अधिकारियों की यह स्थिति है तो द्वितीय एवं तृतीय श्रेणी में अधिकारियों – कर्मचारियों की स्थिति का अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं। इसी को मद्देनजर रखते हुए विधानसभा में प्रमोशन को लेकर सीएम डॉ. मोहन यादव ने कहा कि हमारा प्रयास रहेगा कि बहुत जल्दी सबको पदोन्नति मिले, इस दिशा में भी हमारी सरकार लगी हुई है। मुख्यमंत्री के उक्त बयान के बाद कर्मचारी संगठनों की हलचल तेज हो गई है। सभी को उम्मीद की किरण नजर आ रही है।
प्रमोशन पर रोक क्यों ?
2002 में प्रदेश में तत्कालीन सरकार ने प्रमोशन के नियम बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान किया था। ऐसे में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी प्रमोशन पाते गए, लेकिन अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पीछे रह गए। इस मामले में विवाद बढ़ा तो कर्मचारी कोर्ट पहुंचे। उन्होंने कोर्ट से प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने की मांग की। कोर्ट में तर्क दिया कि प्रमोशन का फायदा सिर्फ एक बार मिलना चाहिए। इन तर्कों के आधार पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया। सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया और अप्रैल 2016 से प्रदेश में प्रमोशन पर रोक लगी है। इसके बाद राज्य सरकार ने कर्मचारियों की रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ाकर 60 से 62 कर दिया था, हालांकि प्रमोशन पर रोक से रिटायर होने वाले कर्मचारियों की संख्या 1 लाख पार कर गई है। देश में मध्य प्रदेश इकलौता राज्य है, जहां पदोन्नति पर पूरी तरह से रोक लगी हुई है
अब क्या कर रही सरकार ?
सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रमोशन देने के लिए वित्त विभाग ने विधि विभाग से अभिमत मांगा है। हाल ही में विधि विभाग ने सवा सौ से ज्यादा कर्मचारियों को विभागीय भर्ती नियम के मुताबिक प्रमोशन दिया है। वहीं उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग ने भी पदोन्नति कर पद भरे हैं।
विधि विभाग की तरह प्रमोशन की मांग
हालांकि प्रमोशन पर रोक के बावजूद कई कर्मचारियों को अन्य विभागों में पदोन्नति का लाभ मिलता भी रहा। कर्मचारी संघ के मुताबिक जब उच्चतम न्यायालय में याचिका निर्णय के अधीन रखकर विधि विभाग में पदोन्नति दी जा सकती है, तो इसी तरह के निर्णय के तहत शासन के बाकी सभी विभागों में पदोन्नति दी जानी चाहिए।
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