State News (राज्य कृषि समाचार)

दाल मिल एसोसिएशन ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को दिए महत्वपूर्ण सुझाव

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03 जून 2023, इंदौर: दाल मिल एसोसिएशन ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को दिए महत्वपूर्ण सुझाव – कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय) भारत सरकार द्वारा आगामी रबी फसलों के मूल्य निर्धारण एवं समर्थन मूल्य पर खरीदी के संबंध में विचारार्थ देश के प्रमुख व्यापारिक संगठनों की बैठक गत दिनों कृषि भवन नई दिल्ली में सम्पन्न हुई , जिसकी अध्यक्षता कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के चेयरमेन श्री विजयपाल शर्मा ने की। बैठक में आयोग के मेम्बर सेक्रेटरी श्री अनुपम मित्रा एवं ऑफिशियल मेम्बर डॉ. नवीनप्रकाश सिंह विशेष रूप से उपस्थित रहे | ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन की ओर से अध्यक्ष श्री सुरेश अग्रवाल एवं अकोला के श्री रूपेश राठी बैठक में सम्मिलित हुए | दाल मिल एसोसिएशन ने किसानों के हित में आयोग को कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए।

ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री सुरेश अग्रवाल ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति मे बताया कि भारत सरकार द्वारा 31 मार्च 2024 तक देश में दलहनों के आयात की घोषणा की गई है, जिसके कारण तुअर में तंजानिया, मलावी, जिम्बाब्वे और म्यांमार (बर्मा) तथा उड़द में म्यांमार (बर्मा) के किसानों को अधिक मूल्य प्राप्त हो रहा है तथा बाहर से आने की वजह से उनकी कृषि उपज की कम कीमत किसानों को मिलेंगी, किसान अन्य फसलों की ओर परिवर्तित होते जा रहे हैं, जिससे देश में तुअर और उड़द के उत्पादन में कमी आ रही है | पिछले 3 वर्षों से भारत के किसान दलहन के उत्पादन के स्थान पर सोयाबीन,सरसों, कपास, गन्ना व अन्य फसलों के उत्पादन की ओर ध्यान दे रहे हैं , दलहन का उत्पादन कम होने से पिछले 4 वर्षों में कनाड़ा और ऑस्ट्रेलिया से मसूर का काफी आयात हुआ है, जो देश के किसानों के लिए नुकसानदायक है |

श्री अग्रवाल ने आयोग को बताया कि तुअर के प्रति किसानों का रुझान कम होने का कारण यह है कि 240 दिन अर्थात 8 महीने तुअर के उत्पादन में किसान को समय लगता है | जबकि दूसरी फसलों के उत्पादन में 4 माह का समय लगता है | किसान दो फसल उगा लेता है, तो तुअर के मुकाबले उसे ज्यादा कीमत प्राप्त होती है, इसलिए किसान तुअर की खेती कम कर रहे हैं | तुअर, उड़द का उत्पादन कम रहने पर हमें विदेशों से दलहन मंगवाना पड़ता है, आज विदेशों से तुअर, उड़द, मसूर आयात करके भारत में कमी को पूरा किया जा रहा है, जबकि तुअर, उड़द, मसूर का उत्पादन भारत में बढ़े ऐसी नीति सरकार को बनानी चाहिए। किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिलना चाहिए। खेती में लगने वाली दवाई ,खाद , गोबर खाद सभी महंगे हो गए हैं। इसके अलावा गांव में कृषि मजदूरी काफी महंगी हो गयी है, क्योंकि ज्यादातर ग्रामीण मजदूर शहर में काम करने लग गए हैं । गांव से अधिक मजदूरी उन्हें शहर में मिलती है। गांव में मजदूरों की दिन प्रतिदिन कमी हो रही है।

दलहन – तुअर एवं उड़द का जो समर्थन मूल्य है, वह कम है, जबकि कृषि कार्य में रासायनिक खाद, बीज, मजदूरी, बिजली, ईंधन , खेत की निंदाई – गुड़ाई, फसल की कटाई की मजदूरी व अन्य वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है।साथ ही बिजली की दरों और पेट्रोल – डीज़ल की कीमतों में भी काफी बढ़ोतरी हुई है, इस वजह से देश के किसानों को खेती कार्य करना अब अधिक महंगा हो रहा है। किसानों की मेहनत तथा उनका जीवनयापन का खर्च निकल सके,इसलिए तुअर, उड़द, का समर्थन मूल्य 90 रुपए, चना का 65 रुपए और मसूर का 75 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य किया जाना चाहिए। इससे किसान दलहन उत्पादन की ओर अग्रसर होंगे | साथ ही तुअर, उड़द, मसूर का उत्पादन बढ़ाने के निरंतर प्रयास करने होंगे। तुअर की खेती मेहनत वाली है , क्योंकि इसका बीज हाथ से लगाना पड़ता है। इसमें ट्रैक्टर व अन्य उपकरण से मदद नहीं मिलती है, फसल की सफाई व कटाई भी मजदूरों से करवाना पड़ती है। देश के किसानों को उनकी कृषि उपज के लागत मूल्य से अधिक मिलने पर ही उनकी उन्नति और समृद्धि संभव है।

एक अन्य समस्या की ओर आयोग का ध्यान दिलाया गया कि नेफेड द्वारा खरीदी गई कृषि उपज को लगभग 2 साल तक भण्डारण करके रखा जाता है,जिससे कृषि उपज की गुणवत्ता खराब होती है, उपज का रंग बदलता जाता है, चना, तुअर, उड़द डंकी होने लगते हैं और अधिक समय तक भंडारण एवं बारिश में नमी के कारण बारीक कीटाणु भी पैदा होने की संभावना रहती है। अतः सरकारी एजेंसी द्वारा ख़रीदे गये दलहन (कृषि उपज) को एक वर्ष में विक्रय किया जाना चाहिए। सरकारी एजेंसियों के द्वारा दलहनों की बिक्री समर्थन मूल्य से नीचे ना हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रायः देखा गया है कि सभी राज्यों की सरकारें समर्थन मूल्य पर खरीदी करके, उसी दलहन को कम भाव में विक्रय कर देती है, जिससे राज्य सरकार को नुकसान भी होता है | सभी तरह के दलहन, खाद्यान्न जो कि समर्थन मूल्य पर खरीदे जाते हैं , उनकी गुणवत्ता सरकारी एजेंसियों के द्वारा प्रमाणित होना चाहिए और बिक्री अथवा डिलीवरी के समय माल की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु का उल्लेख करते हुए बताया कि सभी प्रकार के दलहनों की एफएक्यू क्वालिटी खेत में एक जैसी उत्पन्न नहीं होती है। बड़ा दाना, छोटा दाना, डैमेज दाना, कम डैमेज दाना तुअर, मसूर व उड़द अलग – अलग प्रकार का पैदा होता है। हल्की क्वालिटी की कृषि उपज कम भाव में बाजार में बिकती है। ऐसे में उत्तम बीज की व्यवस्था भी होनी चाहिए। देश के किसानों की उन्नति के लिए
तुअर, उड़द एवं मसूर के समर्थन मूल्य में अधिकतम वृद्धि करने हेतु अनुरोध किया गया।

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