राज्य कृषि समाचार (State News)फसल की खेती (Crop Cultivation)

मचान विधि से कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती एवं कीट- रोग नियंत्रण

16 सितम्बर 2024, भोपाल: मचान विधि से कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती एवं कीट- रोग नियंत्रण – विगत दिवस ग्राम महाराजपुरा, ब्रजपुरा एवं सूरजपुर के किसानों के प्रक्षेत्र पर कद्दूवर्गीय सब्जियों का भ्रमण के दौरान पाया गया कि लौकी, करेला, गिल्की, खीरा, आदि की फसल में मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिलड्यू) एवं रस चूसक कीटों के प्रकोप से फसल प्रभावित हो रही है। मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू) के नियंत्रण हेतु टेबुकोनाज़ोल + सल्फर का 2.5 ग्रा./ली. एवं रस चूसक तथा इल्लियों के लिए बीटासाइफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मिली./ली. पानी की दर से छिड़काव कर नियंत्रित किया जा सकता है। हमारे जिले में कुछ किसान भाई खरीफ मौसम में प्याज की खेती कर रहे हैं। प्याज की फसल में अत्यधिक खरपतवार होने के कारण फसल प्रभावित हो रही है, इसके नियंत्रण हेतु प्याज रोपण के 30-35 दिन के पश्चात ऑक्सीफ्लोरफेन 2 मिली./ली. एवं क्विज़ालोफॉप 1.5 मिली./ली. पानी की दर से छिड़काव कर खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है।

खरीफ मौसम में कद्दूवर्गीय की प्रमुख सब्जियों जैसे – लौकी, करेला, खीरा, गिल्की (लताओं वाली) की अगेती किस्मों को मचान विधि से किसान खेती कर अच्छी उपज प्राप्त कर रहे हैं। मचान विधि से तात्पर्य है कि कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती फसल प्राप्त करने हेतु नर्सरी तैयार करनी पड़ेगी तत्पश्चात मुख्य खेत में जड़ो को बिना नुकसान पहुँचाये रोपण किया जाता है यदि मुख्य खेत में कोई फसल लगी है तो इस बात का ध्यान रखना चाहिये की उपरोक्त फसल की कटाई कब होनी है उसके 12-15 दिन पूर्व 15&10 से.मी. के आकार की पालीथिन बैग में पौध तैयार करते है। मचान विधि से लौकी, करेला, खीरा, गिल्की आदि सब्जियों की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है इस विधि से खेती करने हेतु खेत में बाँस या तार का जाल बनाकर सब्जियों की बेल को जमीन से ऊपर पहुँचाया जाता है।

Advertisement
Advertisement

मचान विधि से खेती करने हेतु एक एकड़ क्षेत्रफल में मचान के लिए 8 फिट लम्बाई के 600 बाँस, 20 कि.ग्रा. रेशा धागा, 15 कि.ग्रा. पतला तार तथा 10 कि.ग्रा. पतली रस्सी, मचान हेतु 10&10 फीट की दूरी पर बाँस लगायें। बाँस के पास थाला बनाकर पौध का रोपण करें, बाँस तीन वर्ष तक उपयोगी होता है। इस विधि से खेती करने से गुरूत्वाकर्षण बल के कारण लौकी, करेला, गिल्की, खीरा आदि के फल अच्छे आकार, स्वस्थ, स्वच्छ एवं शीघ्र तैयार हो जाते हैं। मचान पर कद्दूवर्गीय सब्जियाँ और नीचे प्याज, धनियाँ लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है। उपरोक्त विधि से खेती करने में लगभग रूपये 20,000/- प्रति एकड़ व्यय होता है और लाभ 80,000 से 1,00,000 तक होता है।

  • डॉ. बी.एस. किरार प्रधान वैज्ञानिक प्रमुख
  • डॉ. एस.के. सिंह द्य डॉ. यू.एस. धाकड़
  • डॉ. एस.के. जाटव द्य डॉ. आई.डी. सिंह
  • जयपाल छिगारहा वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Advertisement8
Advertisement

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

Advertisement8
Advertisement

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.en.krishakjagat.org

Advertisements
Advertisement5
Advertisement