समर्थन मूल्य से नीचे बिक रही फसलें, किसानों को हो रहा नुकसान
(राजीव कुशवाह, नागझिरी)।
इसे किसानों की नियति कहें या व्यवस्था की विसंगति, कि अन्नदाता समर्थन मूल्य से नीचे अपनी फसलें बेचने को विवश हैं। दिल्ली में दो माह से जारी किसान आंदोलन के बीच ऐसे हालात बहुत कुछ सोचने को मजबूर करते हैं।
किसानों को जब मेहनत कर उगाई गई फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलता है, तो उन्हें बहुत नुकसान होता है। अपनी पीड़ा बयां करते हुए गांव के उन्नत कृषक श्री श्रीकृष्ण राठौड़ ने कहा कि 5 एकड़ में 102 क्विंटल मक्का का उत्पादन लिया, लेकिन 1000 रु. क्विंटल के भाव बिकी, जो समर्थन मूल्य (1950) से करीब आधी कीमत है। मेहरघट्टी के श्री मंगलसिंह परिहार को तो दोहरा नुकसान हुआ। ओलावृष्टि और कीट प्रकोप के कारण मक्का का औसत उत्पादन 5 क्विंटल /एकड़ मिला,वहीं दाम 1200 रु. क्विंटल का मिला, (जबकि समर्थन मूल्य 1950 रु./क्विंटल है) जिसने घाटे को और बढ़ा दिया। नागझिरी के श्री फत्तुलाल कुशवाह की ज्वार 1300 रु./क्विंटल बिकी, जबकि ज्वार का समर्थन मूल्य 2500 रु./क्विंटल है। किसान श्री कन्हैयालाल और श्री धर्मेंद्र सिंह के हालात भी जुदा नहीं है। कम उत्पादन और कम कीमत के कारण ये अपनी सोयाबीन और कपास फसल की लागत भी नहीं निकाल पाए। मोघन के श्री रामकरण कुशवाह की आजीविका का साधन मिर्च की फसल है, लेकिन इस साल वायरस के कारण फसल खराब हो गई। कई मिर्च उत्पादक किसान बर्बादी की कगार पर हैं। उधर, उदयपुरा के श्री बंशीलाल और श्री जगन्नाथ का कहना था कि यदि सरकार कृषि जिंसों को पंजीयन के माध्यम से खरीदती तो किसानों को लाभ होता। व्यापारियों की मनमानी से कम दाम पर फसल बिकने से किसान ठगे जा रहे हैं। किसानों ने खरीफ फसल का मुआवजा 50 हजार /एकड़ देने की मांग की है।
किसानों ने इस बात की ओर भी ध्यान आकृष्ट कराया कि जब किसान अपनी उपज बेच देते हैं, उसके बाद फसलों के भाव एकदम से बढ़ जाते हैं। पहले किसानों द्वारा एमएसपी से नीचे 2500 से 3500/क्विंटल तक सोयाबीन बेची गई,जो अब 5000 से भी ऊँचे भाव में बिक रही है। यही हाल कपास का भी है। पहले जो अच्छा कपास 4200-4300 रु. क्विंटल तक बिका वह अब 5500 रु. क्विंटल बिक रहा है। भले ही किसान इसे व्यापारी -अधिकारी गठजोड़ मानें या अन्य कारण भी हो, तो भी यह तो सच है कि समर्थन मूल्य से नीचे फसलें बिकने से किसानों को बहुत नुकसान हो रहा है।
श्री ए.के.जैन, महाप्रबंधक, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक, खरगोन ने बताया कि राज्य शासन द्वारा खरीफ अनाज को मंडी में खुले बाजार में बेचने का आदेश था। सीसीबी के तहत हमें सहकारी समितियों में पंजीयन कर एमएसपी के आदेश के अभाव में हमने नहीं खरीदा। गत वर्ष आदेश था। इस रबी में उत्पादित गेहूं की फसल की खरीदी के आदेश मिले हैं।