फसल बीमा योजना: किसानों का सुरक्षा चक्र या कंपनियों के लिए लाभ कवच ?
आलेख: विनोद के. शाह, Shahvinod69@gmail.com
06 नवंबर 2025, भोपाल: फसल बीमा योजना: किसानों का सुरक्षा चक्र या कंपनियों के लिए लाभ कवच ? – फसल बीमा योजना का मूल उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान की संपूर्ण भरपाई देना है। किंतु जमीनी हकीकत इस उद्देश्य से काफी भिन्न दिखाई देती है। फसल बर्बाद होने के बाद किसान राहत की उम्मीद में भटकता है, राज्य सरकारें केंद्र से सहायता पैकेज की मांग करती हैं, जबकि बीमा कंपनियां निश्चिंत रहती हैं — यह तर्क देकर कि “बीमा की शर्तों” के अनुसार प्रारंभिक या आंशिक नुकसान पर भुगतान नहीं बनता।

अतिवृष्टि और फसल विनाश की त्रासदी
इस खरीफ सीजन में पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के अनेक जिलों में अतिवृष्टि और बाढ़ से फसलें बुरी तरह प्रभावित हुईं। ऐसे समय में फसल बीमा किसानों के लिए आशा की किरण बनना चाहिए था, किंतु यह राहत के बजाय असंतोष का कारण बन रहा है। सरकारें अरबों रुपये का प्रीमियम बीमा कंपनियों को देती हैं, परंतु अंततः राहत राशि उन्हें स्वयं किसानों को बाँटनी पड़ती है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: उद्देश्य और निवेश
वर्ष 2016 में शुरू हुई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) में हर वर्ष किसान हितग्राहियों की संख्या बढ़ी है। इसका एक कारण यह है कि बैंक ऋण लेने पर बीमा अनिवार्य है, और दूसरा — सरकारी प्रचार कि मात्र दो प्रतिशत प्रीमियम पर किसानों को संपूर्ण फसल सुरक्षा मिलेगी।
वित्त वर्ष 2024–25 में देशभर के लगभग 9.41 करोड़ किसान (4.19 करोड़ ऋणी और 5.22 करोड़ गैर-ऋणी) इस योजना से जुड़े हैं। किसान केवल 2% तक प्रीमियम देता है, जबकि शेष 98% हिस्सा केंद्र और राज्य सरकारें समान रूप से वहन करती हैं। इस वर्ष केंद्र सरकार ने ₹14,600 करोड़ और राज्यों ने लगभग इतनी ही राशि बीमा कंपनियों को दी है।
लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इतने भारी सरकारी निवेश के बावजूद प्रभावित किसानों को उनकी फसलों के वास्तविक नुकसान का दस प्रतिशत से भी कम मुआवजा मिला है।
आकलन की खामियाँ और उपग्रह प्रणाली की सीमाएँ
पूर्व में फसल नुकसान का मूल्यांकन “फसल कटाई प्रयोग” (Crop Cutting Experiment) के माध्यम से किया जाता था, जिसमें तीन वर्ष के औसत उत्पादन के आधार पर क्षतिपूर्ति तय होती थी। लेकिन इस पद्धति में राजस्व अमले और बीमा कंपनियों की मिलीभगत से आंकड़े अक्सर किसानों के प्रतिकूल जाते थे।
इसी खामी को दूर करने के लिए कृषि मंत्रालय ने उपग्रह आधारित फसल आकलन प्रणाली लागू की है। इसके तहत प्रत्येक खेत की उपग्रह छवियों से फसल की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है। इसी प्रणाली के आधार पर अगस्त 2025 में 30 लाख किसानों को ₹3,200 करोड़ का भुगतान किया गया — जिसमें राजस्थान के किसानों को ₹1,120 करोड़, मध्यप्रदेश को ₹1,156 करोड़, छत्तीसगढ़ को ₹150 करोड़ और अन्य राज्यों को ₹778 करोड़ मिले।
परंतु यह राहत किसानों के लिए “मरहम” से अधिक “नमक” साबित हुई। अनेक पीड़ित किसानों को मात्र ₹100 से ₹2,000 तक की राशि ही मिली। मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के कुंवरहटा गांव में सभी किसानों के खातों में कुल ₹17 का भुगतान हुआ, जबकि महाराष्ट्र के शिलोत्तर गांव के एक किसान को 11 एकड़ धान फसल के नुकसान पर मात्र ₹2.30 मिले।
यह विडंबना इसलिए भी गहरी है क्योंकि उपग्रह तस्वीरों में खेतों की हरियाली दिखती है, लेकिन अंतिम उत्पादन — “भूसा अधिक, दाना कम” — का वास्तविक आकलन नहीं हो पाता। यह बांझपन या फसल का आंतरिक नुकसान ही वह पहलू है, जिसे उपग्रह तकनीक पहचान नहीं सकती।
बीमा शर्तों में राहत का अभाव
बीमा कंपनियाँ केवल अंतिम उत्पादन में गिरावट को आधार बनाकर सामूहिक नुकसान का भुगतान करती हैं, जबकि हाल की अतिवृष्टि से नुकसान फसल की प्रारंभिक अवस्था में हुआ है। इस कारण कंपनियाँ भुगतान से बच रही हैं। कई राज्य सरकारें, जैसे पंजाब और महाराष्ट्र, अपने स्तर पर राहत दे रही हैं या केंद्र से सहायता पैकेज मांग रही हैं। पंजाब ने 23.81 लाख किसानों को ₹1,623.51 करोड़ और महाराष्ट्र ने 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में नुकसान मानते हुए ₹1,356.30 करोड़ की राहत राशि दी है।
यह स्थिति एक गम्भीर प्रश्न उठाती है — जब सरकारें अरबों रुपये का प्रीमियम पहले ही बीमा कंपनियों को दे चुकी हैं, तब उन्हें अलग से राहत पैकेज देने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? क्या यह योजना किसानों की नहीं, बल्कि बीमा कंपनियों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है?
कृषि बीमा की दिशा में आवश्यक सुधार
यदि फसल बीमा योजना को वास्तव में किसान हितैषी बनाना है, तो निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं —
- व्यक्तिगत खेत स्तर पर आकलन: नुकसान का निर्धारण केवल उपग्रह से नहीं, बल्कि भौतिक सत्यापन और उपज परीक्षण के माध्यम से हो।
- बीमा कंपनियों की जवाबदेही तय हो: अनुचित या विलंबित भुगतान पर आर्थिक दंड का प्रावधान हो।
- पारदर्शिता के लिए राज्य स्तरीय पोर्टल: प्रत्येक किसान अपने नुकसान और भुगतान की स्थिति ऑनलाइन देख सके।
- न्यूनतम मुआवजा गारंटी: प्रीमियम के अनुपात में न्यूनतम मुआवजा राशि की कानूनी गारंटी हो।
- आपदा कवरेज का विस्तार: प्राकृतिक आपदा या प्रारंभिक फसल क्षति को भी बीमा कवरेज में शामिल किया जाए।
फसल बीमा का उद्देश्य किसानों को संकट से उबारना है, न कि उन्हें बीमा कंपनियों की जटिल शर्तों में उलझाना। जब करोड़ों रुपये का प्रीमियम चुकाने के बाद भी किसान को न राहत मिलती है, न भरोसा, तब यह केवल एक “नीति” नहीं, बल्कि “सुधार की आवश्यकता” बन जाती है।
अब समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर इस योजना की समीक्षा और पुनर्रचना करें — ताकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना वास्तव में किसानों की ढाल बने, न कि बीमा कंपनियों का लाभ कवच।
लेखक कृषि व उपभोक्ता मामलों के जानकार हैं, अंबिका, हास्पीटल रोड, विदिशा – 464001, मो. 9425640778
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