राज्य कृषि समाचार (State News)

जलवायु के अनुकूल तकनीकों से खेती में आई क्रांति

09 मई 2025, छिंदवाड़ा: जलवायु के अनुकूल तकनीकों से खेती में आई क्रांति – छिंदवाड़ा जिले के मोहखेड़ विकासखंड के एक प्रगतिशील कृषक श्री संजू माटे ने जलवायु-अनुकूल कृषि तकनीकों को अपनाकर न केवल अपनी खेती को रूपांतरित किया, बल्कि अपनी मिट्टी के स्वास्थ्य को भी पुनर्जीवित किया। उनकी सफलता अन्य किसानों के लिए आशा की किरण और टिकाऊ कृषि पद्धतियों की शक्ति का प्रमाण  

पूर्व की स्थिति – कृषक श्री संजू माटे ने अपने अतीत के कृषि अनुभवों को साझा करते हुए बताया, “पहले तो किसानी बस एक बोझ सी लगती थी। पुरानी फसल के अवशेष जलाओ, खेत जोतो, बीज डालो और फिर कुदरत के भरोसे बैठे रहो। लागत बढ़ती जाती थी और मुनाफा दिखता नहीं था। मिट्टी भी बेजान होती जा रही थी और पानी की किल्लत अलग। लगता था जैसे कुछ बदलने वाला नहीं।” उनकी निराशा उस पारंपरिक कृषि पद्धति को दर्शाती थी, जिसमें अनिश्चितता और घटते प्रतिफल किसानों के लिए एक आम चुनौती थी।

नई तकनीक की ओर कदम – उनकी कृषि यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनका संपर्क बोरलॉग इंस्टीट्यूट  फॉर साउथ एशिया (BISA), जबलपुर के वैज्ञानिकों और कृषि विभाग छिंदवाड़ा के अधिकारियों से हुआ। जहां उन्होंने जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट रेजिलिएंट) कार्यक्रम से  जोड़कर  नई तकनीकों के बारे में बताया एवं  नई किस्मों के बारे में समझाया। पहले तो थोड़ा डर लगा कि ये सब नया कैसे कर पाऊंगा, पर उन्होंने हौसला दिया।” वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों के मार्गदर्शन ने उन्हें आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने का विश्वास दिया। उन्होंने विशेष रूप से DBW-187  गेहूं  की किस्म को अपनाया और फिर जीरो टिलेज (शून्य जुताई) की क्रांतिकारी तकनीक को आजमाया। कृषक श्री माटे ने स्वीकार किया कि पहले उन्हें “बिना खेत जोते सीधी बुवाई  सुनकर अजीब लगा था, पर करके देखा तो कमाल हो गया।”

नई तकनीक से मेहनत का मिला मीठा फल – नई तकनीकों को अपनाने का परिणाम श्री माटे के लिए आश्चर्यजनक रहा। वे उत्साहपूर्वक बताते हैं कि “छिड़काव वाली खेती में  जहां  18 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार होती थी, वहीं जीरो टिलेज से 23 क्विंटल निकली, जो पहले की तुलना में 5 क्विंटल प्रति एकड़ अधिक है। साथ ही 2000-2500 रुपए प्रति एकड़ लागत भी कम लगी, समय भी बचा और सबसे बड़ी बात, उनकी मिट्टी फिर से सांस लेने लगी।” उपज में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ-साथ लागत में कमी और समय की बचत ने उनकी आर्थिक स्थिति को काफी हद तक सुधार किया है। इसके अतिरिक्त, पराली जलाने की प्रथा समाप्त होने से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है, क्योंकि अब वह खेत में ही खाद के रूप में उपयोग की जाने लगी है।

अन्य किसानों के लिए प्रेरणा  स्रोत  – आज कृषक श्री माटे की सफल खेती अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का  स्रोत  बन गई है। वे गर्व से कहते हैं, “आज मेरी खेती देखकर दूसरे किसान भी पूछते हैं। मुझे खुशी होती है जब मैं उन्हें अपने अनुभव बताता हूँ, उन्हें दिखाता हूँ कि कैसे वैज्ञानिक तरीके अपनाकर हम अपनी किस्मत बदल सकते हैं।” उनका अनुभव न केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी है बल्कि ज्ञान और सही मार्गदर्शन के माध्यम से ग्रामीण समुदायों के उत्थान की संभावना को भी दर्शाता है। श्री माटे का विजन स्पष्ट है: “मेरा सपना है कि मेरा गाँव, मेरा पूरा समुदाय तरक्की करे। मेहनत और सही राह दिखाने वाला मिल जाए ,तो हर किसान आगे बढ़ सकता है।” उनकी  सफलता की  कहानी इस विश्वास को पुष्ट करती है कि दृढ़ संकल्प, नवीन तकनीकों को अपनाने की इच्छा और उचित मार्गदर्शन से किसान न केवल अपनी आजीविका में सुधार कर सकते हैं बल्कि मृदा और पर्यावरण की रक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

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