बायोफार्टिफाइड गेंहू है जलवायु परिवर्तन के अनुकूल
21 दिसम्बर 2022, पटना: (संदीप कुमार):बायोफार्टिफाइड गेंहू है जलवायु परिवर्तन के अनुकूल – बिहार के एक लाख से अधिक किसान बायाफोटिफाइड गेंहू प्रभेद आयरन व जिंकयुक्त गेहूं की खेती कर रहे हैं। इस प्रभेद गेंहू की खेती करने से मुनाफा अधिक होगा । क्योंकि वर्तमान समय की जरूरत है। इसमें बीमारियां भी कम लगती हैं। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विवि, पूसा के वैज्ञानिकों के द्वारा विकिसत किये गये गेहूं के इस नए प्रभेद राजेन्द्र गेहूं-3 को सेन्ट्रल वेराइटी रिलीज कमेटी ने अनुशंसित किया है। इससे यह बीज उत्पादन की श्रृंखला में शामिल हो गया। साथ ही राज्य के किसान इसका उत्पादन भी कर रहे हैं। विवि के वैज्ञानिक के अनुसार 125-130 दिनों में तैयार होने वाली जिंक व आयरनयुक्त है। इसकी उपज क्षमता 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। वहीं डब्ल्यू बी-02 की प्रजाति में 42 पीपीएम जिंक की मात्ना है। यदि उपज की बात करें तो प्रति हेक्टेयर 51.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगा। वहीं एचपीबीडब्ल्यू-01 में जिंक की मात्ना 40 पीपीएम है। वहीं उपज की बात करें तो प्रति हेक्टेयर 51.7 क्विंटल है। यह गेहूं जिंक व आयरन की कमी से होने वाले कुपोषण को दूर करने की क्षमता रखता है। यह व्यक्ति कत्पादनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाता है। यह व्यक्ति के स्वास्थय के लिए फायदेमंद है। यह पोषक तत्वों अधिक होता है। साथ रोगों य प्राकृकित तनाव के प्रति बहुत ही सहनशील है। बाजारों में जो भी प्रभेद उपलब्ध है उससे अधिक उपज है। साथ ही दानों में 30 से 40 प्रतिशत अधिक जिंक की मात्र होती है। दानों का आकार भी पुष्ट होता है। जलवायु की परिस्थितयों में भी इसके उत्पादन में कोई अंतर नही होता है। एक तरह से कहा जाए तो यह प्रभेद जलवायु के अनुकूल है। साथ ही पोषण से कुपोषण को दूर करने में महत्यपूर्ण भूमिका निभाता है। बिहार में लगभग आधी आबादी को अपने आहार में सूक्ष्म पोषक तत्वों, प्रोटीन, विटामिन और अन्य आवश्यक तत्वों की कमी का सामना करना पडता है।कुपोषण मानव की क्षमता के विकास में बाधक तो है ही उसके साथ-साथ ये देश में खासकर औरतों एवं बच्चों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास को भी रोकता है। मनुष्यों को उनकी सेहत के लिए कम से कम 22 खनिज तत्वों की आवश्यकता होती है। उपयुक्त आहार द्वारा इसकी आपूर्ति की जा सकती है।एक अनुमान के अनुसार दुनिया के 60 अरब लोगों में से 60 प्रतिशत में लौह तत्व की कमी है, 30 प्रतिशत से अधिक में जिंक तत्व की कमी, 30 प्रतिशत में आयोडीन और 15 प्रतिशत जनसंख्या में सेलेनियम की कमी है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के परिणामस्वरूप उच्च रु ग्णता, उच्च मृत्यु दर, कम संज्ञानात्मक क्षमता, कार्य क्षमता में कमी, और विकास क्षमता में कमी जैसी समस्या होती है।
खाद्य फसलों में खनिज सांद्रता को बढाने के लिए ही नहीं बल्कि कम उपजाऊ मिट्टी पर पैदावार में सुधार के लिए इसका ज्यादा महत्व है।
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