State News (राज्य कृषि समाचार)

समग्र शाश्वत विकास के लिए जैव-विविधता आज की परम आवश्यकता – डॉ. कर्नाटक

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23 मई 2023, उदयपुर: समग्र शाश्वत विकास के लिए जैव-विविधता आज की परम आवश्यकता – डॉ. कर्नाटक – महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में अनुसंधान निदेशालय द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस के अवसर पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन 23 मई को किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि पृथ्वी पर सूक्ष्म जीव से लेकर सबसे बडे़ जीव ब्लू व्हेल तक समस्त जीव एवं प्रजातियां जैव-विविधता में समाहित की गई है। अतः इसके संरक्षण से ही समग्र विकास की परिकल्पना की जा सकती है। कृषि में उत्पादन बढ़ाने एवं खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जैव-विविधता का संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है। समृद्ध जैव-विविधता से ही कृषि में बाहरी आदानों पर निर्भरता कम की जा सकती है। प्राचीन समय में मानव भोजन में लगभग 7,000 प्रजातियां का  समावेश होता था जो कि वर्तमान समय में मात्र 30 प्रजातियों पर सिमट कर रह गया है। जिसका प्रतिकूल प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर प्रदर्शित भी होने लगा है। लगभग एक तिहाई पशु नस्लें भी विलुप्त होने की कगार पर है। उत्पादन प्रक्रिया में अत्यधिक उर्वरक व रसायनों का प्रयोग भी जैव-विविधता के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है। अतः भविष्य में जैव-विविधता संरक्षण हेतु विवेकपूर्ण व सुदृढ़ निर्णय लेने होंगे।

वेबिनार के मुख्य वक्ता डॉ. जे. सी. राणा, राष्ट्रीय समन्वयक, द अलाइंस आफ बायोडाइवर्सिटी एण्ड सी.आई.ए.टी., नई दिल्ली ने अपने वक्तव्य में जैव-विविधता के उद्भव, सार्थकता, संरक्षण पर विस्तृत चर्चा की। वर्तमान समय में खाद्य प्रणाली में से 66 प्रतिशत विविधता विलुप्त हुई है। जिसके कारण सभी देशों में कुपोषण, बिमारियां व खराब स्वास्थ्य सामान्य हो गया है। अधिक उत्पादन देने वाली फसलें, अधिक मांस उत्पादन वाली पशु नस्लों के प्रचलन से क्षेत्रीय विविधता का संरक्षण नहीं हो पाया एवं वे विलुप्त प्राय हो गयी है। जैव-विविधता के संरक्षण के लिए चरणबद्ध प्रयास करने होंगे जिसमें विविधता के सर्वे से लेकर उसके विधिवत् संरक्षण के प्रयास करने होंगे।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉ. अरविन्द वर्मा, आयोजन सचिव एवं अनुसंधान निदेशक ने अतिथियों का स्वागत करते हुए जैव-विविधता के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारत देश जैव-विविधता में समृद्ध है। विविध प्रकार की जलवायु उपलब्ध होने के कारण यहां पर पादपों की 48,000 व पशुओं की लगभग 96,000 प्रजातियां पाई जाती है। विगत 25 से 50 वर्षों में जैव-विविधता में अधिक मात्रा में कमी चिन्हित की गयी है। जिसका संरक्षण वर्तमान समय की प्राथमिक आवश्यकता है।

डॉ. एस. एस. शर्मा, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने सभी अतिथि एवं प्रतिभागियों को धन्यवाद प्रेषित किया एवं डॉ. लतिका शर्मा, सह आचार्य, ने वेबिनार का संचालन किया।

डॉ. पीयूष चैधरी ने वेबिनार का तकनीकी समन्वयन किया।

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