जैविक सब्जी उत्पादन से बदली आशा बाई की आर्थिक दशा
12 सितम्बर 2025, कटनी: जैविक सब्जी उत्पादन से बदली आशा बाई की आर्थिक दशा – ढीमरखेड़ा ब्लॉक के बांध गाँव की महिला किसान, आशा बाई का पाँच सदस्यों का परिवार खेती और मजदूरी पर निर्भर था। उनके पास तीन एकड़ ज़मीन थी, जिस पर वे पहले रासायनिक खेती करती थीं। इस खेती में लागत बहुत ज़्यादा आती थी, और उत्पादन का सही दाम नहीं मिल पाता था, जिस कारण उनकी आर्थिक स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हो रहा था।
बदलाव की शुरुआत – आशा बाई की ज़िंदगी में असली मोड़ तब आया जब उनकी मुलाक़ात मानव जीवन विकास समिति की कार्यकर्ता अदिति वैष्णव से हुई। अदिति ने उन्हें जैविक खेती, जैविक खाद और दवाइयां बनाने के बारे में जानकारी दी और प्रशिक्षण में शामिल करवाया।
समिति ने उन्हें सब्जी उगाने में मदद की – मानव जीवन विकास समिति ने आशा बाई को आधा एकड़ ज़मीन के लिए 150 बैंगन, 150 टमाटर, और 150 मिर्च के पौधे दिए। साथ ही, जैविक खाद बनाने के लिए वर्मी बेड और जरूरी चीजें भी उपलब्ध करवाईं। समिति ने उन्हें जैविक खाद और दवाइयां तैयार करने की विधि के साथ-साथ सब्जी लगाने का तरीका भी सिखाया।
सफलता की ओर कदम – आशा बाई ने पूरी लगन से काम किया और जैविक तकनीक का इस्तेमाल करके बैंगन और टमाटर की फसल तैयार की। उन्होंने अपनी फसलों में किसी भी तरह के रासायनिक कीटनाशकों या खादों का उपयोग नहीं किया, जिससे उनकी सब्ज़ियाँ सेहतमंद और स्वादिष्ट पैदा हुईं। जब फसल तैयार हुई, तो आशा बाई ने अपने गाँव और आस-पास के बाज़ारों में अपनी सब्ज़ियाँ बेचीं। उन्हें इस काम में अच्छा मुनाफा मिला, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार आया। उन्होंने कुल 35 हजार रुपये की सब्जियां बेची, जिसमें से 10 हजार रुपये की लागत काटकर उन्हें 25 हजार का शुद्ध मुनाफा हुआ।
प्रेरणा और खुशहाली – आशा बाई अपनी इस कामयाबी के लिए मानव जीवन विकास समिति के सचिव एवं पर्यावरणविद् श्री निर्भय सिंह को धन्यवाद देती हैं। आशा बाई और उनका परिवार इस बदलाव से बहुत खुश है। उनकी सास भी गाँव में घूम-घूमकर सब्जियां बेचती हैं। आशा बाई की सफलता को देखकर गाँव की दूसरी महिला भी प्रेरित हुईं। उन्होंने भी अब सब्जी बेचना और जैविक खाद व दवाइयां बनाना शुरू कर दिया है।
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