State News (राज्य कृषि समाचार)

थोड़ी हकीकत, ज्यादा फसाना

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  • विनोद के. शाह,
    मो. 9425640778
    Email: shahvinod69@gmail.com

16 मई 2023, भोपाल । थोड़ी हकीकत, ज्यादा फसाना – रबी फसल की कटाई से कुछ दिन पूर्व हुए मौसम परिवर्तन से देश के अ_ारह राज्यों में खेत में खड़ी फसलें वर्षा एवं ओलावृष्टि से बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। देश में इस वर्ष गेहंू की बोवनी 343.2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुई थी। जो अभी तक का सर्वाधिक रिकॉर्ड है। सरकार के पूर्वानुमान भी गेहंू के रिकॉर्ड उत्पादन का संकेत दे रहे थे। लेकिन देखते ही देखते कास्तकारों की आय पर मौसम ने ऐसा डाका डाला है कि किसान की अर्थव्यवस्था एक बार पुन: छिन—भिन्न हुई है। गेहंू उत्पादक राज्य पंजाब, हरियाणा, उप्र, मप्र, राजस्थान से तीन लाख हेक्टेयर की फसलें पूरी तरह से नष्ट हुई हैं। अन्य राज्यों में चना, मसूर, सरसों, मसाला एवं सब्जी—फल फसलों में अत्याधिक नुकसान के समाचार हैं। नष्ट होने से बची फसलों की गुणवत्ता बुरी तरह से प्रभावित हुई है। फसलों की गुणवत्ता प्रभावित होने से किसानों की आय में 40 फीसदी तक की गिरावट के साथ उत्पादन भी कम आया है। प्रभावित राज्यों की सरकारों ने पचास फीसदी से अधिक फसलों के नष्ट होने पर अपने राजस्व फंड से 20 हजार से लेकर 50 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर मदद का ऐलान किया है। लेकिन यह मदद उन क्षेत्र के लिए है जहां फसलें पचास फीसदी से अधिक नष्ट हुई हैं। गुणवत्ता प्रभावित होने एवं उत्पादन कम आने पर यह राहत उपलब्ध नहीं है।

सन् 2016 में केन्द्र सरकार ने राज्यों के साथ मिलकर फसल नुकसान एवं मौसमी प्रकोप से उत्पादन कम आने पर प्रधानमंत्री फसल बीमा की शुरुआत की थी। इसमें भी उत्पादन में पचास फीसदी से अधिक के नुकसान पर क्षति का प्रावधान किया गया है। गुणवत्ता प्रभावित होने से किसान आय के नुकसान की भरपाई का इसमें कोई प्रावधान नहीं है।

नुकसान से कम भरपाई

बीमा कम्पनी की क्षति शर्तें, आकलन विधि सिर्फ बीमा कम्पनियों के लिए ही फायदेमंद रही है। पीडि़त किसानों को तो उसके लागत मूल्य की क्षति प्राप्त करना मुश्किल होता है। गत वर्षों में जब अलग—अलग राज्यों में फसले बड़े पैमाने पर नष्ट हुई थी, बीमा दावा अदा करने के बाद भी उक्त बीमा कम्पनियां मुनाफे में रही हंै। बीमा दावों की बात करें तो 2019 में मप्र राज्य के किसानों को पचास फीसदी से अधिक फसल के नुकसान के बाद उनके खातों में 2 रूपये  से लेकर रु. 200 तक की राशि अदा की गई थी।

बीमा कम्पनियां फायदे में

प्रधानमंत्री फसल बीमा के क्षतिपूर्ति दावों का विश्लेषण करने पर योजना की असलियत किसानों के लिए लागत मूल्य के कुछ अंश की क्षतिपूर्ति, बीमा कम्पनियों का भारी मुनाफा एवं क्षति आकलन करने वाली सरकारी एजेंसियों को भ्रष्टाचार करने का सुलभ मौका उपलब्ध कराता है। बीमा कम्पनियां क्षति आकलन एजेंसियों को क्षति कम दर्शाने का प्रलोभन देती है तो पीडि़त किसान नुकसान को सटीक लिखने के लिए एजेंसी को रिश्वत  देता है।

 किसानों का  मोहभंग

बीमा दावों से फसल नुकसान की पर्याप्त भरपाई न होने से परेशान किसानों ने स्वैच्छिक आधार पर फसल बीमा की प्रीमियम अदा करना बंद कर दिया है। देश के सात राज्य आंध्रप्रदेश, झारखंड, तेलांगना,बिहार,गुजरात,पंजाब,पश्चिम बंगाल ने अपने—अपने राज्यों में प्रधानमंत्री फसल बीमा का राज्य अंशदान देना बंद कर दिया है। जिससे इन राज्यों में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बंद हो चुकी है। देश में कृषि से जुड़े किसानों की संख्या 10.20 करोड़ के लगभग है, लेकिन वर्ष 2022-23 में प्रधानमंत्री फसल बीमा में पंजीकृत किसानों की संख्या मात्र 93.44 लाख रही है। जो कि वर्ष 2021-22 की तुलना में 19 फीसदी कम है। जिससे चालू वर्ष में केन्द्र एवं राज्य सरकारों की प्रीमियम अदायगी में गत वर्ष की तुलना में 1154 करोड़ की बचत हुई है। जो कि देश के किसानों का प्रधानमंत्री फसल बीमा से मोहभंग होने का संकेत  है। फसलों के नुकसान की तुलना में बहुत कम क्षति की अदायगी, समय से बीमा दावों का भुगतान न होना एवं राजस्व सर्वे इकाईयों का भ्रष्टाचार प्रधानमंत्री फसल बीमा में किसानों के विश्वास को कमजोर करता है।

राज्य सरकारों की अंशदान में लेटलतीफी

किसानों के लिए बीमा प्रीमियम खरीफ फसल के लिए उनके बीमाधन का दो फीसदी, जबकि रबी एवं तिलहनी फसलों के लिए 1.5 फीसदी, बागवानी एवं फलोद्यान के लिए 05 फीसदी ही अदा करना होता है। शेष प्रीमियम राशि की अदायगी केन्द्र एवं राज्य सरकार आधा-आधा करती है। लेकिन राज्य सरकारें अपने हिस्से की राशि कभी भी तय समय पर अदा नहीं करती है। जिससे पीडि़त किसानों को समय पर बीमा दावा नहीं मिल पाता है। सन् 2021 में केन्द्रीय कृषि मंत्री ने संसद में स्वीकार किया था कि तत्कालीन समय से तीन वर्ष पुरानी 3372 करोड़ की फसल बीमा दावा राशि के भुगतानों में विलंब का कारण, राज्य सरकारों का अंशदान नहीं जमा होना था। सन् 2016 से पूर्व फसल बीमा किसान की ऋण साख के आधार पर हुआ करता था। सहकारी बैंकों में किसान क्रेडिट कार्ड सीमा अधिकतम रुपये ढाई लाख प्रति किसान है। जिससे पीडि़त किसान को इस अनुपात से ज्यादा बीमा दावा मिलने का प्रावधान नहीं था। बाद में सन् 2016 के प्रधानमंत्री फसल बीमा में उक्त प्रावधान में सुधार लाकर बीमा धन किसान पर उपलब्ध कृषि भूमि के रकबे के आधार पर किया गया है। लेकिन अब भी प्राकृतिक नुकसान के आकलन की इकाई व्यक्तिगत खेत को न मानकर राजस्व हलके में शामिल गांवों के कुल नुकसान का औसत निकालकर किया जा रहा है।

जिससे वास्तविक नुकसान पीडि़त किसान को उसकी क्षति से बहुत कम की भरपाई हो पा रही है। दूसरी तरफ व्यक्तिगत आगजनी जैसी घटनाओं पर किसान को 72 घंटे में बीमा दावा आवेदन के माध्यम से बीमा कम्पनी को सूचना देनी होती है। गांव का अशिक्षित किसान 72 घंटों में कैसे सूचना प्रेषित कर सकता है? गांवों में ईमेल तकनीकी सहित विद्युत जैसी सुविधाओं का अभाव है। सरकार एवं नौकरशाही जानती है कि गांव के किसान के पास त्वरित संचार तंत्र नहीं है। उसे अपने फसल बीमा का पालिसी नंबर तक नहीं मालूम क्योंकि बीमाधारी किसान को लिखित बीमा बांड उपलब्ध कराने की अनिवार्य बाध्यता बीमा कम्पनियों को नहीं दी गई है।  व्यक्तिगत फसल क्षति के साठ फीसदी से अधिक दावे सिर्फ दावा पेश करने की समय मर्यादा दिखाकर बीमा कम्पनियों द्धारा निरस्त कर दिये जाते हंै।        

बीमा कम्पनी के आकलन में 40 फीसदी से अधिक का अंतर

प्रतिवर्ष फसल उत्पादन का आकलन राजस्व रेंडम आधार पर प्रत्येक राजस्व हल्के से चुनिंदा किसानों के खेत में एक तय क्षेत्रफल में खड़ी फसल से कटाई प्रयोग करती है। प्रत्येक हल्के से चार—छ: सेम्पल के औसत परिणामों से हल्का का अधिकतम उत्पादन प्रतिवर्ष तय कर लिया जाता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया किसानों को सूचना दिये बगैर सम्पन्न हो जाती है। अंत तक हल्के का किसान साल के अधिकतम उत्पादन से अनजान ही बना रहता है। जिस वर्ष फसल में प्राकृतिक नुकसान होता है, उस वर्ष में उत्पादन न्यूनतम स्तर पर होता है। लेकिन आगामी तीन वर्षो तक यह न्यूनतम उत्पादन आंकड़ा  किसान के फसल उत्पादन के आंकड़े को प्रभावित करता रहता है। इसलिए वास्तविक अधिकतम उत्पादन का आंकड़ा कभी भी दर्ज नहीं होता है। जबकि औसत उत्पादन की गणना फसल क्षतिपूर्ति का निर्धारण करती है। यही फसल बीमा पालिसी का वह प्रावधान जो फसल नुकसान का आकलन वास्तविकता से बहुत कम करता है। वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर प्रत्येक कृषि भूमि पर उस पर लगाई जाने वाले बीज की गुणवत्ता, उस पर सिंचाई की मात्रा,बौनी समय,हकाई—जुताई का तरीका फसल उत्पादन को तय करता है। जो अलग-अलग किसान द्धारा अपनाई तकनीक पर आधारित होता है। इसलिए एक हल्के से कुछ किसानों में  फसल कटाई प्रयोग द्धारा अधिकतम उत्पादन तय करने की पद्धति व्यवहारिक नहीं है। यह पद्धति किसान के फसल नुकसान की वास्तविक क्षतिपूर्ति कभी भी नहीं कर सकती है। कृषि वैज्ञानिक सिंचित भूमि में प्रति हेक्टेयर गेहंू का अधिकतम उत्पादन 60 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तय करते हैं। लेकिन प्रधानम़ंत्री फसल बीमा आकलन में बीमा कम्पनियों ने विगत छ: वर्षो में औसत के आधार पर तय निर्धारण में गेहंू का अधिकतम उत्पादन 45 क्विंटल से अधिक रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं किया है। वास्तविक गेहंू उत्पादन एवं बीमा कम्पनी के आकलित उत्पादन में 40 फीसदी से अधिक का अंतर है। आकलन का यह अंतर दलहनी एवं तिलहनी फसलों मेंं इसी प्रकार का है। इन हालातों में बीमा कम्पनियों से पीडि़त किसान की वास्तविक फसल क्षति पूति की अपेक्षा काल्पनिक है।

ड्रोन सर्वेक्षण भी बेमानी

फसल नुकसान आकलन में विगत वर्ष सरकार रिमोट सेंसिंग तकनीक एवं ड्रोन सर्वेक्षण के प्रयोग प्रारंभ हुए हैं। लेकिन इस तकनीक के इस्तेमाल क बाद उप्र राज्य के किसानों ने शिकायत की थी कि ड्रोन द्धारा नुकसान आकलन नष्ट फसलों के स्थान पर हरी—भरी फसलों की तस्वीर लगाकर बीमा कम्पनियां दावा अदा करने से बचती रही थी। बीमा एजेंट के रुप में राष्ट्रीय एवं सहकारी बैंक फसल की किस्म लिखते समय अनाज एवं दलहनी फसल प्रत्येक किसान के खाते में साठ एवं चालीस फीसदी के अनुपात में लिखते है। भले ही किसान किसी अन्य अनुपात में लगाता हो या इसके अतिरिक्त अन्य किस्म लगाता हो। राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज फसल से बीमा एजेंट बीमा द्वारा दर्ज यह अन्य फसल क्षतिपूर्ति के समय अदालतों में पीडि़त किसान के दावा को निरस्त कर देता है। बीमा एजेंट बैंकों द्वारा दर्ज फसल की किस्म में अन्तर के कारण रिमोट सेंसिग सर्वेक्षण एवं ड्रोन सर्वेक्षण भी बेमानी साबित हो रहे हैं। फसल बीमा होने के बावजूद राज्य सरकारों द्वारा अपने राजस्व कोष या आपदा प्रबंधन कोष से किसानों को क्षतिपूर्ति राहत देने के लिए कदम उठाना भी प्रधानमंत्री फसल बीमा की उपयोगिता पर सवालिया निशान ही खड़ा करता है।

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