खाली हाथ किसानों की तनी हुई मुठ्ठियाँ
इंदौर। प्रदेश का अन्नदाता गत 8 -10 माह से आर्थिक अभाव के साथ अपमान का घूंट पीकर कशमकश में जी रहा है। दो लाख तक की ऋण माफ़ी की सरकारी वादा खिलाफी के बीच अतिवृष्टि से खरीफ फसल पर पानी फिरने के बाद फसल बीमा से भी कोई राहत राशि नहीं मिली है। अब रबी में सहकारी समितियों से खाद -बीज पाने के लिए पुराना कर्ज चुकाने के लिए उन पर दबाव बनाया जा रहा है। लगातार जारी विपरीत हालातों से प्रदेश का किसान अंदर ही अंदर कसमसा रहा है और उसके खाली हाथों की तनी हुई मुठ्ठियाँ कभी भी विद्रोही रवैया अख्तियार कर सकती है। इसे समय रहते नियंत्रित करने की जरूरत है, अन्यथा स्थिति विस्फोटक होने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
कर्जमाफी और समितियों का दबाव: गत वर्ष राज्य विधान सभा चुनाव में किसानों के दो लाख तक के ऋण माफ़ करने के मुद्दे पर सत्तासीन हुई कांग्रेस पार्टी अब तक किसानों के दो लाख तक के ऋण माफ़ नहीं कर पाई है। पहले चरण में किसानों के सिर्फ 50 हजार तक के ऋण माफ़ हुए हैं। जबकि कई किसानों ने दो लाख तक के खर्च माफ़ होने की उम्मीद में अपना सहकारी समितियों का कर्ज नहीं चुकाया। अब यही समितियां किसानों को खाद देने से इंकार कर पिछला कर्ज चुकाने का दबाव बना रही है। यही नहीं इन समितियों ने किसानों को कालातीत ऋणी बताकर उन पर 14 प्रतिशत की दर से ब्याज भी लगा रही है। जबकि कर्जमाफ़ी नहीं होने के लिए किसान नहीं सरकार जिम्मेदार है। सर्व विदित है कि इस वर्ष राज्य में अतिवृष्टि से खरीफ फसलें सोयाबीन, उड़द, मूंग आदि बुरी तरह खऱाब होने से किसान खाली हाथ रहे। अब रबी में खाद -बीज का इंतजाम कैसे करे।
फसल बीमा और बोनस ने किया निराश: फसल बीमा की प्रक्रिया में किसानों के गले में अपराधियों की तरह पट्टी लटका कर उनका अपमान करने के बाद भी अब तक मुआवजा नहीं मिलने और बची खुची फसल समर्थन मूल्य पर नहीं बिकने से किसान नाराज हैं। इसके अलावा गत रबी सीजन में मप्र राज्य सरकार द्वारा की गई गेहूं की सरकारी खरीदी पर 160 रु, प्रति क्विंटल की बोनस राशि भी किसानों को अभी तक नहीं मिली है। साथ ही खरीफ वर्ष 2018 में तत्कालीन भाजपा सरकार की सोयाबीन पर 500 रु. प्रति क्विंटल बोनस राशि देने की घोषणा का क्रियान्वयन नहीं होने से भी किसानों का गुस्सा गर्माता जा रहा है।
उर्वरक और बिजली संकट: इस वर्ष खरीफ फसल में बड़ा नुकसान सहने के बाद भी किसान फिर हिम्मत जुटाकर रबी में गेहूं -चना आदि का विपुल उत्पादन करके अपनी हानि की भरपाई करना चाहता है। लेकिन सहकारी समितियों से उर्वरक नहीं मिलने से इसकी व्यवस्था के लिए साहूकारों से अधिक ब्याज पर कर्ज लेने को मजबूर हैं। रबी में सिंचाई के लिए बिजली जरुरी है। लेकिन बिजली की आँख मिचौनी के बीच किसानों को सिंचाई के लिए दस घंटे बिजली देने का जो शेड्यूल जारी किया है, जिससे किसानों की नींद पूरी नहीं हो पाएगी। पिछली सरकार की बिजली ट्रांसफार्मर योजना को भी बंद कर दिए जाने से किसानों पर आर्थिक भार बढ़ गया है। स्मरण रहे कि तत्कालीन भाजपा सरकार में मात्र 30 हजार के किसान अंशदान पर बिजली ट्रांसफार्मर लगा दिया जाता था। लेकिन अब इसके लिए किसानों से डेढ़ लाख रुपए मांगे जा रहे हैं। आर्थिक तंगी से गुजर रहे किसान इतनी बड़ी राशि देने में असमर्थ हैं। ऐसे में सिंचाई के अभाव में रबी की फसल भी प्रभावित होने से किसान चिंतित हैं। दरअसल सरकार की अस्पष्ट नीतियों से भ्रम पैदा हो रहा है। खाली खजाना होने से सरकार भी न कुछ कह पा रही है और न कुछ कर पा रही है। इसीलिए खाली हाथ किसानों की मुठ्ठियाँ धीरे -धीरे तनती जा रही है। इस विद्रोह के विस्फोट से पहले सरकार को सतर्क रहकर किसानों से किए गए वादे पूरे करने की जरूरत है।