गाजर घासः समस्या एवं निदान
28 अगस्त 2024, इंदौर: गाजर घासः समस्या एवं निदान – गाजर घास जागरूकता सप्ताह (16 से 22 अगस्त 2024) के दौरान कृषक जगत किसान सत्र के अंतर्गत राष्ट्रीय कृषि अखबार कृषक जगत और भाकृअप खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनों ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया गया। जिसके प्रमुख वक्ता निदेशक डॉ. जे. एस. मिश्र, प्रधान वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) डॉ. पी. के. सिंह और वैज्ञानिक कीट विज्ञान डॉ. अर्चना अनोखे, खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर थे। इस वेबिनार में डॉ. अजय गोगोई ने विशेष रूप से गौहाटी से शिरकत की। गाजर घास की समस्या और उसके निदान पर विस्तृत चर्चा की गई। इस वेबिनार में मप्र के अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब के लोग शामिल हुए। प्रश्नोतरी में वक्ताओं द्वारा पूछे गए संबंधित सवालों का समाधानकारक जवाब दिया गया। कृषि ज्ञान प्रतियोगिता के 4 विजेताओं को खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर द्वारा गाजर घास से संबंधित पुस्तक पुरस्कार में देने की घोषणा की गई। वेबिनार का संचालन कृषक जगत के संचालक श्री सचिन बोन्द्रिया ने किया।
24 केंद्रों के माध्यम से खरपतवार नियंत्रण आरंभ में डॉ. सिंह ने कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से सम्बद्ध खरपतवार अनुसंधान निदेशालय द्वारा पूरे देश में अपने 24 केंद्रों के माध्यम से फसली, गैर फसली और जलीय खरपतवारों को विभिन्न विधाओं के माध्यम से नियंत्रण के प्रयास किया जा रहे हैं। गाजर घास पर इसलिए जोर दिया जा रहा है, क्योंकि यह फसलों को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इससे न केवल ग्रामीण बल्कि शहरी और अन्य आमजन भी प्रभावित होते हैं। इससे जैव विविधता पर भी असर पड़ रहा है। इसलिए यह हम सबके लिए चुनौती बनी हुई है। श्री सिंह ने बताया कि गाजर घास जिसका अंग्रेजी नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है यह अमेरिका के मेक्सिको शहर से गेहूं के माध्यम से हमारे देश में आया, इसे गाजर घास कांग्रेस घास, चटक चांदनी आदि नाम से भी जाना जाता है। पहली बार इसे भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे में 1955 में देखा गया था। गाजर घास सड़क के किनारों खेतों की मेड़ों, आवासीय क्षेत्र, पशुओं के चारागाह, सामुदायिक भवनों के परिसर में दिखाई देता है। गाजर घास का तीन से चार माह का जीवन चक्र रहता है। यह दूसरी वनस्पतियों को पनपने नहीं देता है, क्योंकि इसकी जडों से एक विषैला पदार्थ निकलता है। गाजर घास से चर्म रोग, अस्थमा आदि रोग जहां मानव को प्रभावित करते हैं, वहीं पशुओं में चकत्ते होना, बाल झड़ना दूध में कसैलापन आना आदि लक्षण दिखाई देते हैं। खरपतवार अनुसंधान निदेशालय प्रतिवर्ष गाजर घास जागरूकता सप्ताह का आयोजन राष्ट्रीय स्तर पर करता है, जिसमें देश के 750 के कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालय, स्कूली छात्र, नगर पंचायत इन सब के सहयोग से जागरूक करने का प्रयास किया जाता है।
गाजर घास का देश में 35 मिलियन हे. में फैलाव गाजर घास के नियंत्रण के लिए मेक्सिको से ही एक तकनीक की खोज की गई थी जिसे मैक्सिकन बीटल कहा जाता है। इस पर 20 साल के शोध के बाद सरकार ने इस कीट के प्रयोग की अनुमति देकर इसे बढ़ावा देने की अनुमति दी है। मैक्सिकन बीटल कीट जिसका अंग्रेजी नाम जाइगोरामा बाइकोलोराटा है, सिर्फ गाजर घास को ही खाता है। यह अन्य वनस्पति के लिए मित्र की भांति है, जो उन्हें नुकसान नहीं पहुंचता है। मैक्सिकन बीटल का सार्वजनिक स्थानों पर प्रयोग करने की यह अच्छी तकनीक है, जिसे प्रशिक्षण देकर बढ़ाया जा सकता है इसकी जनसख्या को बढ़ाने के लिए पल्स पोलियो अभियान की तरह इसे लागू करने की जरूरत है। गाजर घास को नियंत्रित करना बहुत आवश्यक है. क्योंकि यह देश में करीब 35 मिलियन हेक्टेयर में फैल चुका है। आठ राज्यों के अध्ययन में यह सामने आया है कि मैक्सिकन बीटल कीट 8 से 9 लाख मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच चुका है।
गाजर घास को राष्ट्रीय खरपतवार घोषित करें इस वेबिनार में जबलपुर खरपतवार अनुसंधान निदेशालय में पूर्व में कार्यरत डॉ. अजय गोगोई गुवाहाटी (असम) से शामिल हुए। उन्होंने भी गाजर घास की समस्या पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस पर नियंत्रण आवश्यक है। भविष्य में इससे जैव विविध विविधता को खतरा है। इसलिए अनुरोध है कि गाजर घास खरपतवार को राष्ट्रीय खरपतवार घोषित करने के प्रयास किए जाने चाहिए। आपने सिटीजन साइंटिस्ट कांसेप्ट का उलेख करते हुए कहा कि देश में ऐसे कई वॉलिंटियर्स हैं जिनको इस क्षेत्र में आगे बढ़कर काम करना होगा, तभी यह गाजर घास समाप्त हो पाएगा। इस संबंध में आपने विशेष जानकारी देते हुए कहा कि देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग- अलग समय पर इसके फूलों की वृद्धि होती है। इसके डाटा को आईटी के माध्यम से मैप और कैलेंडर बना कर जानकारी एकत्रित कर नियंत्रण के लिए प्रयास किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में देखा गया है कि जब तापमान बढ़ता है तब गाजर घास में वृद्धि अधिक होती है। अब यह फसल को भी प्रभावित करने लगा है अत: किसान खेत में देखते ही इसे खत्म कर दें।
विश्व में बढ़ने वाला सातवां महत्वपूर्ण खरपतवार डॉ. मिश्रा ने दृश्य अव्य माध्यम से अपना प्रेजेंटेशन देते हुए कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का यह प्रमुख संस्थान 1979 में शुरू हुआ था 35 सालो से यह संस्थान खरपतवार प्रबंधन के क्षेत्र में फसली, गैर फसली और जलीय खरपतवार के लिए तकनीक का विकास कर इसके उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध है। तीन-चार दशकों में गाजर घास देश में हर जगह दिखने लगा है यहां तक कि अब यह हमारी मक्का, बाजरा, सोयाबीन, मूंगफली कपास आदि फसलों में भी फैल चुका है यह विश्व में बढ़ने वाला सातवा महत्वपूर्ण खरपतवार है। यह जहां फसलों के उत्पादकता को कम करता है, वहीं मानव और पशुओं को भी कई रोग देता है। यह दूसरी वनस्पतियों को उगने नहीं देता जानवरों में भी बीमारियां फैलती है। गाजर घास की जड़ पत्ती में विषैला पदार्थ होता है। एक प्राक्कलन के अनुसार गेहूं में 40%, मक्का में 60% और ज्वार में 97% पैदावार में कमी पाई गई है। इसके बीज फसलों पर उड़कर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं।
जैविक और अजैविक तनाव से अप्रभावित इनके संपर्क में आने खाने से दुधारू पशुओं में विषैला तत्व पहुंच जाता है जिसके कारण दूध का स्वाद भी कसैला हो जाता है। गाजर घास की पत्तियों से खुजली, चर्म रोग, दाने निकलना, पशुओं के बाल झड़ना और आम आदमियों पर भी इसके रैशेज के प्रभाव खतरनाक होते हैं। इसका कोई प्राकृतिक शत्रु नहीं होता इसलिए यह आसानी से फैलता है। इसमें C3 और C4 दोनों तरह के गुण पाए जाते हैं। इसलिए सब परिस्थितियां इसके अनुकूल होती है। यह जैविक और अजैविक तनाव से भी अप्रभावित रहता है। इसके बीजों में सुषुप्तावस्था नहीं होती, इसलिए नमी मिलने पर यह फैलने लगता है और पूरे साल उगता रहता है। निदेशालय के खुले अध्ययन में पाया कि इसका विकास बहुत तेजी से होता है और इसकी बीज उत्पादन की क्षमता बढ़ जाती है। बीजों के द्वारा इसका फैलाव होता है। इसके एक पौधे में पांच बीज होते हैं, जो हवा के साथ रेलवे के किनारे के खेतों में अधिक फैलते हैं। जलवायु परिवर्तन में भी इसका विकास हो रहा है। डॉ. मिश्रा ने कहा कि वर्षा का समय इसके लिए बहुत अनुकूल रहता है। नमी के कारण जुलाई से सितंबर में इसकी संख्या बढ़ती है I
समेकित प्रयास जरूरी श्री मिश्रा ने कहा कि मैक्सिकन बीटल एक जीवित जीव है, जो बारिश में अधिक सक्रिय रहता है और ठंड गर्मी में इसकी सक्रियता कम हो जाती है। ऐसे में गाजर घास उन्मूलन के लिए एकीकृत प्रयास करने होंगे जिसमें कीट हर्बीसाइड प्रतिस्पधी पौधे और दूसरी विधियों का प्रयोग करना चाहिए समय के अनुरूप से इसका प्रयोग करने से नियंत्रण अच्छा होगा। गाजर घास से वर्मी कंपोस्ट खाद भी बनाई जा सकती है। लेकिन इसे फूल आने से पहले उखाड़ कर लाएं और इसकी एक-एक परत गड्ढे में रखकर खाद तैयार करें। खुद के उपयोग के अलावा इसे बेचकर भी अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। इसका बायोगैस में भी उपयोग किया जा सकता है।
प्रश्नोतरी – श्री कुलदीप शर्मा ग्राम बनारसी (संगरूर) ने पूछा कि 50 के दशक खोज लिए जाने के बाद भी गाजर घास के लिए कोई हर्बीसाइड या पुस्तक उपलब्ध नहीं है। डॉ. मिश्रा ने जवाब दिया कि हर फसल के लिए हर्बोसाइड उपलब्ध है किस तकनीक से इनका प्रयोग करना है वह वैज्ञानिकों की सलाह से करें। डॉ. सिंह ने कहा कि इसके समाधान के लिए अपनी ओर से क्या सहयोग दिया जा रहा है इस पर भी ध्यान देना जरूरी है। कर्नाटक में एक कानून बनाया है जिसके तहत सरकारी कार्यालय के परिसरों को गाजसर घास मुक्त करने का आदेश दिया गया है। इसी तरह पंजाब के मंसूरा गांव के लोगों ने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से अपने गांव को गाजर घास मुक्त कर दिया है और आसपास के 20-25 गांव में भी यह मुहिम चलाई जा रही है। गाजर घास प्रबंधन के लिए निदेशालय में किताबें, फोल्डर, पत्रिका आदि निःशुल्क उपलब्ध हैं। वेबसाइट पर भी इसे देखा जा सकता है। श्री महेंद्र स्वामी, फंदा भोपाल ने पूछा कि इस खरपतवार का कोई औषधि उपयोग करके व्यवसायीकरण किया जा सकता है क्या? डॉ. मिश्रा ने कहा कि इसके मेडिकल उपयोग के लिए अभी तक कोई निर्माता आगे नहीं आए हैं, हां वर्मी कंपोस्ट बनाकर इसे बेचा जा सकता है I
कृषि ज्ञान प्रतियोगिता – इसमें पहला सवाल पूछा गया कि गाजर घास की उत्पत्ति कहां हुई थी ? इसका सही और सटीक जवाब श्री विनोद चौहान खरगोन ने मेक्सिको बताया। दूसरा प्रश्न था गाजर घास भारत में पहली बार कब और कहां देखा गया था? इसका सटीक जवाब श्री रामकुमार बीएचयू वाराणसी ने दिया कि 1955 में पुणे में इसे पहली बार देखा गया था। तीसरा प्रश्न था कि गाजर घास को खाने वाले कीट का नाम क्या है? इसका संयुक्त रूप से सही जवाब श्री शकील हुसैन, बिलासपुर (छग) और श्री रवि यादव ग्राम थोई, जिला नीम का थाना राजस्थान ने जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा बताया। इन्हें खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर की ओर से खरपतवार प्रबंधन संबंधी पुस्तक पुरस्कार में दी जाएगी।
प्रबंधन का तरीका डॉ. मिश्रा ने कहा कि सस्थान द्वारा गाजर घास नियंत्रण को मिशन मोड पर 19 वर्षों से राष्ट्रीय स्तर पर चला रहे हैं। सभी कृषि विज्ञान केंद्र स्कूल आदि को शामिल कर जागरूक किया जा रहा है। गाजर घास के प्रति जन भागीदारी को स्वच्छता मिशन की तरह लागू किया जाना चाहिए। गाजर घास को मैकेनिकल, मैन्युअल, एनेक्टमेंट केमिकल आदि के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। इसे फूल आने से पहले जड़ से उखाड़ना चाहिए अन्यथा यह फिर फल-फूल सकता है। इसके गैर फसली के लिए जो रसायन हैं उन्हें फसल में नहीं डालते हैं। इस संबंध में केवीके के वैज्ञानिकों से सलाह लेकर अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग रसायन हैं जैसे गैर फसली क्षेत्र के लिए ग्लाइफोसेट पैरा कॉट का उपयोग कर सकते हैं 2-4 डी भी डाल सकते हैं। लेकिन इसमें दूब घास को बचाना आवश्यक है। अनुसंधान में पाया कि प्रतिस्पर्धी पौधों से भी गाजर घास नियंत्रित होती है। इसके बीजों का छिड़काव करें। चकोड़ा (कैसिया टोरा) इसमें लाभप्रद है। इसके अलावा गेंदा के बीज कारगर साबित होते हैं जैविक नियंत्रण के तहत मैक्सिकन बीटल जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा को गहन अनुसंधान में अच्छा पाया गया है। यह 1500 से 3000 अंडे एक माह में देता है, जो प्यूपा/लार्क में बदलकर कीट बन जाता है। इसका जीवन चक्र भी गाजर घास की भांति 3 से 4 माह का होता है। यह सिर्फ गाजर घास की पत्तियों को खाकर उसे ठूंठ बना देता है। गैर फसली क्षेत्र में भी अच्छे नतीजे मिले हैं।
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