ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी है मिट्टी ज़िंदा रहे
लेखक: शशिकांत त्रिवेदी, लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार
09 नवंबर 2024, नई दिल्ली: ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी है मिट्टी ज़िंदा रहे – आज, लगातार खेती के कारण ऊपरी मिट्टी के कटाव की दर मिट्टी के निर्माण की दर से ज़्यादा हो गई है। इसके अलावा, देश गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है, लगभग 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अति-शोषित के रूप में वर्गीकृत किया गया है
आजकल प्रायोगिक साक्ष्य एकत्रित हो रहे हैं कि क्या मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करके, फसलों को सूखे और चरम मौसम के प्रति अधिक लचीला बनाया जा सकता है ? सरकारें उन किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करें जो जलवायु- में बदलाव बे प्रभावित नहीं होती। खेती की ऐसी पद्धतियों में मिट्टी के माइक्रोबायोम को बढ़ावा देना शामिल है. मतलब यह कि सूक्ष्मजीवों के जरिये खेती एक ही खेत में बार-बार एक ही फसल लगाने के बजाय, खेतों के बीच फसलों को बदल बदल कर खेतों में ऐसे पौधों की खेती करना जिन्हें जरूरी नहीं कि काटा जाए, लेकिन उन पौधों को उगाया जाए जो मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और मिट्टी के पोषक तत्वों को बढ़ाते हैं। ऐसी खेती को रिजेनेरटिव, पुनर्योजी या सुधार करने वाली खेती कहते हैं.
शोधकर्ताओं और किसानों का कहना है कि तरह की खेती कारगर तो है, लेकिन खेतों को लाभ मिलने से पहले इसे लागू करने में कुछ साल लग सकते हैं। अमेरिका में तो वैज्ञानिक, किसान बार बार बदल बदल कर की जाने वाली खेती के लिये और अधिक सब्सिडी की मांग कर रहे हैं. भारत जैसे विशाल देश में इस सम्बन्ध में कोई कानून नहीं है ताकि किसानों को इस तरह की खेती के लिए प्रशिक्षित किया जा सके और मुसीबत में मदद की जा सके.
अच्छी उपज वाली फैसले जैसे मक्का (मकई) या गेहूं जैसी एकल फसलें पैदा करने के लिए उर्वरकों, कीटनाशकों और यांत्रिक उपकरणों पर निर्भर करती है। इन फसलों पर रसायनों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी में पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बाधित करता है साथ ही भारत जैसे देश में जल प्रदूषण की समस्या का एक प्रमुख कारण है. कॉटन कनेक्ट जैसे कार्यक्रम मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कपास के किसानों को इस तरह की खेती में बहुत मदद कर रहे हैं, क्योंकि मिट्टी के कटाव और क्षरण को रोकना एक बहुत बड़ी समस्या है. मुंबई के कोलाबा में तो एक रेस्त्रां अराकू केवल पुनर्योजी खेती (रिजेनेरेटिव) के लिए ही समर्पित है. ताकि मिट्टी को ज़िंदा रखने वाले किसानों को प्रोत्साहन मिल सके।
राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो के अनुसार, भारत में लगभग 30% मिट्टी क्षरित हो चुकी है। इसमें से लगभग 29% समुद्र में चली जाती है, 61% एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती है, तथा 10% जलाशयों में जमा हो जाती है। कृषि के लिए ज़रूरी ऊपरी मिट्टी, जो कार्बनिक पदार्थों और सूक्ष्मजीवों से भरपूर होती है, को सिर्फ़ एक इंच बनने में लगभग 500 से 1,000 साल लगते हैं।
आज, लगातार खेती के कारण ऊपरी मिट्टी के कटाव की दर मिट्टी के निर्माण की दर से ज़्यादा हो गई है। इसके अलावा, देश गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है, जहाँ 91% मीठे पानी का इस्तेमाल कृषि उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। लगभग 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अति-शोषित के रूप में वर्गीकृत किया गया है, क्योंकि उनका वार्षिक भूजल निष्कर्षण वार्षिक निष्कर्षण योग्य भूजल संसाधन से ज़्यादा है।
यहाँ तक कि एक अनुमान के मुताबिक 2013 और 2017 के बीच अमेरिकी जैसे देश में भी खेती की जमीन पर 8,50 करोड़ टन ऊपरी मिट्टी कटाव के कारण नष्ट हो गई है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने चेतावनी दी है कि 2050 तक पृथ्वी की 90% से अधिक मिट्टी के खराब होने का खतरा है; इससे कई देशों में अकाल का संकट आ सकता है.
कई खेती और मिट्टी से जुड़ी संस्थाओं के वैज्ञानिकों का कहना है कि बदल बदल कर सही फसलों का चुनाव करना और उनकी खेती करने का एकमात्र लक्ष्य स्वस्थ मिट्टी को ज़िंदा करना है. इसकी शुरुआत मिट्टी के माइक्रोबायोम को पोषण देने और पौधों के लिए पोषक तत्वों का बार बार उपयोग करने करने के लिए जीवित जड़ों और खाद सहित कार्बनिक पदार्थों के अनुपात को बढ़ाने से होती है।
इस तरह की खेती नहीं नहीं है बल्कि कुछ ऐसी प्रथाओं पर वापस लौटना जिन पर हमारे किसान सदियों निर्भर हैं।
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